गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

नवोदय और सरकारी स्कूल

गांधी जयंती पर, जब पूरा देश छुट्टी मना रहा था, दिल्ली के झंडेवालान का एक सेमिनार हॉल गुलजार था। देश के तमाम नवोदय विद्यालयों से निकले छात्र इकट्ठा हुए थे। पहले बैच से लेकर इस साल पास आउट करने वाले भी। ज्यादातर सेटल्ड। कोई नौकरी कर रहा था, तो कोई व्यापार। मेडिकल, इंजीनियरिंग, वकालत, एकाउंटेंसी, पत्रकारिता हर क्षेत्र में नवोदय के छात्रों की पहुंच है, पकड़ है। तमाम पेशे से जुड़े नवोदय के इन पुराने  छात्रों के एकजुट होने का एक मकसद था। नवोदय में पढ़ रहे या इस साल 12वीं पास आउट करने वाले छात्रों की कॅरियर काउंसलिंग। नेक विचार है। अगर ईमानदार भी हो ? जिस संस्था से आप बरसों जुड़े रहे हों, वहां तमाम सुविधाओं का फायदा उठाकर अपना कॅरियर बनाया हो, वहां के छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचना, सोच कर ही अच्छा लगता है। 

नवोदय विद्यालयों में पढ़ाई के साथ-साथ रहने, खाने से लेकर खेल-कूद तक हर तरह की सुविधा दी जाती है। ऐसे में जब इस मीटिंग के अगले ही दिन तीन अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों को सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाने का आदेश दिया तो अनायास ही अपने नवोदय विद्यालय की याद ताजा हो गई। जहां हर तरह की सुविधा मिलती थी। 

एक तरफ तो सरकारी स्कूलों में पीने का पानी, शौचालय, किचन शेड, बिजली, और चारदीवारी तक की व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों की कमी है। जो हैं, उनके पास पढ़ाने के अलावा और कई दूसरे काम हैं। ये दो तस्वीरें हैं सरकारी शिक्षा व्यवस्था की। एक तरफ सरकारी स्कूलों में जहां पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं है, वहीं दूसरी ओर नवोदय विद्यालय में नहाने और कपड़े धोने का साबून, तेल, टूथेपस्ट, ब्रश, कपड़े, तमाम चीजें मुफ्त मिलती थीं। यहां विद्यालय परिसर में ही शिक्षक भी रहते थे, जो 24 घंटे मदद के लिए तैयार रहते थे। मुझे जवाहर नवोदय विद्यालय, सुपौल, (बिहार) से निकले हुए 13 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी लगता है कि जैसे कल ही बात हो। काश! सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हो, और नवोदय जैसी सुविधाएं तमाम सरकारी स्कूलों में भी मिलें तो कितना अच्छा हो ? 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

100 रुपये में मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई



शनिवार को दिल्ली में दो नेत्रियों ने दहाड़ लगाई। दोनों अपने-अपने राज्य की मुखिया। एक तरपफ ममता थी तो दूसरी तरफ शीला। ममता फूफकार रही थी तो शीला चुप करा रही थी। मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के विरोध में पश्चिम बंगाल से जंतर-मंतर पहुंची ममता बनर्जी ने जनता को आवाज लगाई और केंद्र सरकार को चेताया भी कि जंतर-मंतर की भीड़ में बंगाल से लाए हुए लोग नहीं हैं। अगर दो रेलगाड़ी भी भर कर ले आती तो क्या हाल होता? क्या ममता सच कह रही हैं? पश्चिम बंगाल से कोई नहीं आया? चलिए मान लेते हैं। 


दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के आवास पर जो मोर्चा निकाला गया, उसमें भी काफी संख्या में लोग दिखाई दिए। शोर-शराबा। धक्कमपेल। हंगामा। शीला को लोगों से चुप रहने की अपील करनी पड़ी। ये मोर्चा मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के समर्थन में था। 28 अक्टूबर को होने वाली रैली की योजना के लिए था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस रैली की अगुवाई करेंगी। बानगी दिखानी थी। भीड़ जुटानी थी। मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के प्रति लोगों की दीवानगी दिखानी थी। लोगों को लाया गया। भाड़े पर। शनिवार की देर रात जब घर वापसी पर बुराड़ी पहुंचा तो चैराहे पर भीड़ थी। मस्त युवा। नशे में पस्त युवा। 100 रुपये नकद भी मिले थे। किसने दिये? नहीं पता। क्यों दिए? शीला के घर जाने के लिए। और क्या चाहिए? बेरोजगार और निठल्ले लोगों को 100 रुपये और मुफ्त की शराब मिल जाये तो कहने ही क्या? 


शीला की मानें तो मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई लागू करने वाला दिल्ली पहला राज्य हो सकता है। मनीष तिवारी भी कहते नहीं अघाते कि चीन ने 1992 में मल्टीब्रांड रिटेल में 100 पफीसदी एफडीआई दे दी थी। लेकिन हमारे नेताजी ये क्यों नहीं देखते कि चीन में कितनी बेरोजगारी है? एक आम चीनी नागरिक को जीने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ रहा है? नेताओं की मौज तो वहां भी वैसी ही है, जैसी अपने यहां है। प्रधानमंत्री की एक थाली 7,723 रुपये की!


शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

गुदड़ी का लाल-सनत

सुपौल के एक छात्र ने कोसी क्षेत्र का नाम रोशन किया है। सनत आनंद (16) को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में काउंसिल फार साइंस एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) की तरफ से बुधवार को 70वें स्थापना दिवस समारोह में सम्मानित किया गया। सनत को 2011 का स्कूली बच्चों को नयी वैज्ञानिक खोज के लिए दिए जाने वाले सम्मान से सम्मानित किया गया है।

 प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुए समारोह में केंद्रीय मंत्री व्यालार रवि और सी.एन.आर. राव ने सनत को सर्टिफिकेटट्रॉफीनकद 50 हजार रुपये और बेहद खास अंदाज में हाथ मिलाकर सम्मानित किया।   
                          
इस दौरान समारोह में मौजूद सनत के माता पिता के चेहरे पर गर्व का भाव देखने वाला था। इस दौरान सनत के स्कूल (वेलहैम ब्वॉयज स्कूल,देहरादून) के प्रिंसीपल की आंखे नम हो गई थी।
 
सनत ने एक ऐसी मशीन बनाई हैजो बिना किसी दूसरी मशीन  की सहायता के भी जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) जैसा काम करती है। उन्होंने इसका नाम रखा है स्टैंडअलोन जीपीएस सिस्टम। यानी ऐसा जीपीएस जो बिना किसी मदद के भी किसी की लोकेशन का पता लगा सके। 
गौरतलब है कि जीपीएस के लिए पूरी दुनिया सिर्फ अमेरिका पर ही निर्भर है। अमेरिका के 24 सेटेलाइट 24 घंटे काम करते हैं,जिसकी मदद से आज किसी भी आदमी की लोकेशन का पता पलक झपकते ही चल जाता है। अमेरिका के 24 सेटेलाइट पृथ्वी के चारों ओर मौजूद हैं। लेकिन सनत ने जो मशीन  बनाई जिसे किसी सेटेलाइट की जरूरत नहीं है। यह पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ पृथ्वी की घूर्णन गति और चुंबकीय क्षेत्र पर ही निर्भर है। इस जीपीएस मशीन  को किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं है।16 साल के सनत की ये मशीन भौगोलिक रूप से पिछड़े इलाकोंघने जंगलों और समुद्र में भी पता बता सकती है। इतना ही नहींइस नन्हें वैज्ञानिक के स्टैंडअलोन जीपीएस सिस्टम का ना तो पता लगाया जा सकता है और ना ही इसे जाम किया जा सकता है। 

सनत का जन्म सुपौल के प्रतिष्ठित गिरधारी लाल मोहनका परिवार में हुआ। गिरधारी लाल मोहनका के बड़े बेटे और मुंबई में पोस्टेड सीनीयर सीआईएसएफ कमाडेंट शिव कुमार मोहनका सनत के पिता हैं। सनत की शुरुआती पढ़ाई पटना के सेंट डोमिनिक सेवियो हाईस्कूल में हुई। बेगूसराय में पिता की पोस्टिंग के दौरान वे डीएवी स्कूल के भी छात्र रहे। पिता के बार बार तबादलों के बावजूद सनत ने अपनी शिक्षा का स्तर बनाए रखा। और एनसीईआरटी का नेशनल टैलेंट सर्च इक्जामिनेशन स्कॉलरशिप भी पाई। सनत को फिजिक्स के रहस्य और गणित से जूझने में मजा आता है। बेटे की इस उपलब्धि पर परिजन बेहद खुश हैं। शिव कुमार मोहनका को अपने बेटे की इस खोज पर गर्व है। अपने बेटे की उपलब्धि पर वे कहते हैं-पढ़ाई-लिखाई सनत को विरासत में मिली है। इसके दादा बीएसएस कॉलेजसुपौल के प्रिंसीपल रह चुके हैं। चाचा शरद मोहनका सुपौल में ही वकालत करते हैं। ऐसे में सनत तमाम ऊंचाईयों को छूएगा।
  
                                   

वेलहैम ब्वॉयज स्कूलदेहरादून में 11वीं में पढ़ने वाले सनत की चर्चा अमेरिका तक में हो चुकी है। विज्ञान में उनकी रूचि और क्षमता को देखते हुए अमेरिका के एक बड़े स्कूल वाचासे अकेडमी ने देहरादून में उनका इंटरव्यू किया और उन्हें सीधे11वीं में विज्ञान विषय लेने का ऑफर दिया। लेकिन देश से दूर नहीं जाने की इच्छा की वजह से सनत ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया। वो भी तब जबकि अकेडमी उन्हें अच्छी खासी छात्रवृत्ति भी दे रही थी। 
विज्ञान भवन में हुए इस समारोह में  11 युवा वैज्ञानिकों को विज्ञान और तकनीकि में विशेष योगदान के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार-2012 से सम्मानित किया गया। 

बुधवार, 26 सितंबर 2012

करोड़ों मांओं की चिंता



बात 1986 की है। ठेकेदारी के काम से पप्पा अक्सर बाहर ही रहते। एक दिन जब घर आए तो साथ में कुछ सामान था। लोहे के लाल लाल लंबवत दो बड़े बड़े बहुत भारी गोल डब्बे। और साथ में एगो चिपटा सा दिखने वाला चूल्हा। तीन मुहं वाला। बताए कि अब इसी पर खाना बनेगा। मां को लकड़ी और कोयले में आंख नहीं फोड़ना पड़ेगा। ललका डिब्बा को बोलते हैं सिलेंडर और ई है चूल्हा। एक बार में तीन चीज बन जाएगा। आधा घंटा में खाना तैयार होगा और राजन के मां को आराम मिलेगा। लेकिन ई चूल्हा चलेगा कैसे, 5वीं पास मां को पता ही नहीं चल रहा था। तब पप्पा ने अपने बैग से एक और डब्बा निकाला। डेढ़ मीटर लंबा हरा-हरा पाइप, लाल रंग का रेगुलेटर। और लाल प्लास्टिक से जुड़ा एगो छोटा सा स्टील का पाइप। पीछे बटन था। दबाने पर लुत्ती फेंकता था। सब को जोड़ जाड़ के चूल्हा तैयार किया और खास अंदाज में स्टील के पाइप को पकड़ कर बटन दबा दिया। चूल्हा भक्क से जला।  मां खुश।  अब मेहनत बचेगी। धुंआ में आंख नहीं फोड़ना पड़ेगा। चूल्हा जलते ही पप्पा ने आॅर्डर किया-चाय। मां ने तुरत-फुरत में बनाकर दे दी। मां चाय नहीं पीती। पप्पा के पास बैठकर पूछा- कितने का आया ई तामझाम। उन्होंने बताया- बाइस सौ (2200) में सब कुछा। 500-500 का सिलेंडर और 1200 का चूल्हा। मां की उत्सुकता खत्म नहीं हो रही थी। पूछा-जब इस पीपा का गैस खत्म हो जाएगा, तब ? जवाब मिला-‘सब हो जाएगा।’ फेर इसी में भर कर गैस आएगा। मां के हाथ नया - नया खिलौना लगा था। खूब जमकर खेली। 20 दिन में गैस खत्म। मां परेशान। राहत थी कि दूसरा सिलेंडर भरा था। पप्पा ने लगा दिया. तब सिलेंडर के लिए बुकिंग नहीं करवानी पड़ती थी। सिलेंडर इंडेन का था.  हमारे गांव जियाराम राघोपुर से 40 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय सुपौल से आना था सिलेंडर। लेकिन दिक्कत यही थी कि वहां से सिलेंडर आएगा कैसे ? कोई 10 दिन और बीत गये. सिलेंडर नहीं आया। अभी कुछ ही घरों में रसोई गैस की सुविधा आ पाई थी। पांच परिवारों ने मिलकर एक रिक्शेवाले को सुपौल जाने के लिए राजी किया। उन दिनों 60 या 63 रुपये में एक सिलेंडर मिलता था। रिक्शेवाले ने मांगे 80 रुपये। अपना किराया-भाड़ा जोड़ कर। सबने खुशी खुशी दिये भी। फिर तो नियम बन गया। वो सुबह 5 बजे निकलता और शाम 7 बजे तक सिलेंडर लेकर वापस आ जाता। वापसी में बिना नागा पव्वा लगाना नहीं भूलता। तब कौन जानता था कि राहत की ये गैस एक दिन जेब जलाने लगेगी। जबसे मां को पता चला है कि पुराने दर (399 रु.) पर अब साल में सिर्फ 6 सिलेंडर ही मिलेंगे, बाकी बाजार भाव से (करीब 750 रु.) लेने होंगे, तब से उसकी परेशानी बढ़ गयी है। वो अब हिसाब लगाने में लगी है कि वो कितने सिलेंडर इस्तेमाल करती है, और अब कितने सिलेंडर बाजार भाव से लेने पड़ेंगे। बढ़ते बजट को देखकर उसकी चिंता बढ़ गई है। और ये चिंता सिर्फ मेरी मां की ही नहीं, बल्कि देश की करोड़ों मांओं की है। 

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

सूखे पर बादल की कलाकारी


एक तरफ तो देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ की विभीषिका देखने को मिल रही है, वहीं दूसरी तरफ उत्तरी भारत के राज्यों में सूखे-से हालात बन रहे हैं। अनाज उत्पादन में देश के नंबर वन राज्य पंजाब की हालत बद से बदतर होती जा रही है। मानसून ने दगा दे दिया है। बादल घुमड़ते हैं, पर धरती की प्यास बुझाए बिना ही आगे बढ़ जाते हैं। राज्य सरकार परेशान है। राजनीति गर्म। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को धता बताते हुए लगातार दूसरी बार प्रदेश की कमान संभालने वाले प्रकाश सिंह बादल ने सोचा भी नहीं होगा कि इस बार मानसून ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश करने वाला है। देर से आए मानसून ने बादलके माथे पर बल ला दिये हैं। मानसून में उमड़-घुमड़ रहे बादल बिन बरसे ही चले जा रहे हैं, वहीं प्रकाश सिंह बादल के पसीने सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं। मामला प्राकृतिक है। जमीन वाले बादल कर भी क्या सकते हैं ? उन्होंने गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है।


पंजाब में अब तक 32 फीसदी बारिश ही हुई है, यानी 68 फीसदी कम। जबकि देश में यह आंकड़ा सिर्फ 22 फीसदी का है। परेशानी लाजिमी है। सूखे के आसार बनते देख प्रकाश सिंह बादल ने बहुत ही सेफ गेम खेला है। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि सूखे को प्राकृतिक आपदा घोषित किया जाए। और कृषि पर आधारित राज्यों को आर्थिक पैकेज देने की घोषणा करे। और केंद्रीय पूल में सबसे ज्यादा अनाज भेजने वाले राज्य के तौर पर पंजाब को विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाए।बादल की इस मांग से हरियाणा को भी खास ऐतराज नहीं होगा। क्योंकि हरियाणा में भी बारिश की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। यहां अब तक 30 फीसदी बारिश ही हुई है। केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने की वजह से हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा विनम्र विनती ही कर सकते हैं, ऐसे में सूखे को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग से उन्हें भी राहत महसूस हुई होगी।

मानसून की सुस्त चाल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी परेशान कर दिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने सभी मंत्रालयों को हर हफ्ते हालात की समीक्षा करने के निर्देश दिये हैं। हकीकत चाहे जो हो, लेकिन पीएमओ का कहना है कि सरकार ने हालात से निपटने के लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर रखी है। हालांकि इन योजनाओं से कुछ होने-जाने की उम्मीद करना बेमानी है। क्योंकि जब बाढ़ आती है, तब भी केंद्र और राज्य सरकारों की तथाकथित तैयारियां धरी की धरी रह जाती हैं। और जब सूखे के हालात बन रहे हैं, तब भी सरकारें सिर्फ और सिर्फ बयानों और योजनाओं में ही डूबी दिखाई देती हैं। हम यवतमाल (महाराष्ट्र) और असम में बाढ़ का जानलेवा कहर देख चुके हैं। मध्यप्रदेश के कई इलाके बाढ़ की चपेट में हैं। हालांकि अब भी यहां बारिश सामान्य से नीचे ही है लेकिन जल भंडारण और वितरण की जो व्यवस्था है उसकी वजह से जीवन रूपी जल काल बनता जा रहा है। सरकारी तैयारियों की पोल खुल चुकी है। दरअसल, ये कथनी और करनी का फर्क है, जो जनता के लिए अक्सर जी का जंजाल बन जाता है। इस बीच सूखे से निपटने के लिए कम बारिश वाले छह राज्यों (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक) के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केंद्रीय कृषि सचिव आशीष बहुगुणा ने 23 जुलाई को बैठक की थी। जहां कम बारिश की वजह से बड़े हिस्से में धान की बुआई नहीं हो पाई है।

अप्रैल में मौसम विभाग ने बताया था कि इस बार भी मानसून सामान्य रहेगा और देश अनाज उत्पादन में रिकॉर्ड बनाएगा, लेकिन लेट-लतीफ मानसून ने उम्मीद पर संकट के बादल गहरा दिये हैं। देश में करीब 65 फीसदी खेती बारिश पर ही निर्भर है। इस बार अनाज उत्पादन 25 करोड़ 74 लाख टन के करीब रहने का अनुमान था। पिछले साल की तुलना में 1.27 करोड़ टन ज्यादा। लेकिन इस उम्मीद पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। अब मौसम विभाग उम्मीद जता रहा है कि अगस्त और सितंबर महीने में अच्छी बारिश होगी। लेकिन तब तक क्या बुआई का समय बचा रहेगा? मानसून की लेटलतीफी कहीं किसानों के लिए खतरे की घंटी तो नहीं है। क्योंकि कम बारिश का असर खेती पर पड़ने  लगा है। धान, दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की बुआई लक्ष्य से पीछे चल रही है। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने चेतावनी दी है कि कम बारिश की वजह से हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में धान की बुआई की संभावना कमजोर हो रही है।

कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर अनुराग का कहना है कि मानसून में देरी की वजह से खरीफ की प्रमुख फसलों की बुआई का समय निकल गया है। ऐसे में कुछ जगहों पर भूजल का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन जेनसेट के इस्तेमाल से लागत बढ़ जाएगी।हालांकि वे कहते हैं कि मूंग की दाल की कुछ किस्में 7 अगस्त तक लगाई जा सकती है। लेकिन अगैती या पछैती की पैदावार सामान्य खेती से कम होती है। ऐसे में पछैती की पैदावार कम होगी। किसान की स्थिति और खराब हो जाएगी।हालांकि डॉक्टर अनुराग अब सिर्फ पशुओं के चारे की खेती पर ही जोर देते हैं। उनका कहना है कि पशुओं के चारे से दूध का कारोबार करनेवाले किसानों को सीधे तौर पर फायदा होने की गुंजाइश है।

इस बार मानसून की शुरुआत ही 5 दिन देर से हुई। उसके बाद भी करीब एक हफ्ते तक मानसून तटीय इलाकों में ही रूका रहा। उत्तर-पूर्वी राज्यों, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के विदर्भ और आंध्र प्रदेश के तेलंगाना और रायलसीमा में अच्छी बारिश हुई है। लेकिन उत्तर भारत तक पहुंचते पहुंचते कमजोर पड़ गया और अब हालात सूखे जैसे बन गये हैं।

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब को केंद्रीय पूल से एक हजार मेगावाट ज्यादा बिजली देने की भी मांग की है। दसूहा विधानसभा इलाके में संगत दर्शन कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री से मिलकर पंजाब के लिए केंद्रीय पूल में से एक हजार मेगावाट अधिक बिजली देने की मांग की है।पंजाब बिजली संकट से गुजर रहा है। शहरों तक में अंधेरा पसरा है, गांवों की तो बात ही छोड़ दीजिए। ऐसे समय में जबकि पूरा देश बिजली की किल्लत से जूझ रहा है। नार्दर्न ग्रिड फेल हो चुका हो। प्रधानमंत्री भी चिंता जता चुके हों। ऊर्जा मंत्री खुद स्थिति पर नजर रखे हुए हैं, पंजाब को अतिरिक्त एक हजार मेगावाट बिजली देना केंद्र सरकार के लिए भी मुमकिन नहीं होगा। लेकिन केंद्रीय विद्युत मंत्री से मिलकर बादल ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब सूखे की स्थिति को लेकर ना तो किसान उन पर किसी तरह की लापरवाही का आरोप लगा सकते हैं और बिजली की किल्लत को लेकर न उद्योगपति। बहुत ही सेफ गेम है।

दरअसल, हरियाणा, पंजाब सहित उपरी राज्यों में भी बारिश नहीं के बराबर ही हुई है। जिसकी वजह से गोबिंद सागर में पानी उतनी मात्रा में नहीं है, जितना होना चाहिए। इसका असर बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ा है। भाखड़ा-नांगल पॉवर हाउस की क्षमता 1325 मेगावाट की है। यहां से पैदा की जाने वाली बिजली पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और गुजरात तक सप्लाई की जाती है। लेकिन घटते जलस्तर ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन को चिंता में डाल दिया है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड लगातार हालात पर नजर बनाए हुए है।

राजनीति से इतर ये मामला चिंतित करने वाला है। हालात वाकई सूखे जैसे बन रहे हैं, लेकिन सरकारें अपने बचाव में लगी हैं। पंजाब सरकार केंद्र के पाले में गेंद डाल कर निश्चिंत दिखाई दे रही है, वहीं केंद्र ने साफ कर दिया है कि हालात से निपटने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाई जा चुकी है। अगर योजनाएं तैयार हैं, तो अमल कब होगा ? इसका जवाब शायद कार्ययोजना बनाने वालों के पास भी नहीं है।


ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है.


शनिवार, 28 जुलाई 2012

मारूति, मजदूर और मौत


            किसी भी उद्योग की सबसे बड़ी पूंजी उसके कर्मचारी होते हैं। कंपनी का सबसे अहम हिस्सा। जिनकी मेहनत के बूते उद्योगपति या कंपनी के मालिक को फायदा होता है। ऐसे में अगर उद्योग या कंपनी से जुड़े कर्मचारियों के हितों की अनदेखी की जाएगी तो क्या परिणाम हो सकते हैं ? कयास मत लगाइए। 16 जुलाई को मानेसर (गुड़गांव) में मारूति सुजूकी के प्लांट में हुई एच आर महाप्रबंधक की हत्या इसका ताजा तरीन उदाहरण है। यहां ये साफ कर दें कि हम किसी तरह की हिंसा को सही नहीं ठहरा रहे और ना ही किसी की हत्या को। लेकिन इस घटना से जो संकेत मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि गरीब मजदूर कर्मचारियों में नौकरी को लेकर कितनी उद्विग्नता है। महंगाई के इस दौर में रोजी रोटी चलाना उनकी प्राथमिकता है। बहरहाल।
दरअसल, ये पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब प्लांट में एक सुपरवाइजर ने श्रमिक जिया लाल को थप्पड़ जड़ दिया। मामला तू-तू, मैं-मैं से शुरू हुआ था जो एचआर महाप्रबंधक की मौत के बाद ही शांत हुआ। प्रबंधन ने आनन-फानन में श्रमिक जिया लाल को निलंबित कर दिया जिसके बाद दूसरे कर्मचारी एकजुट हो गये। और मामले ने तूल पकड़ लिया। आरोप हैं कि सुपरवाइजर ने जातिसूचक गालियां भी दी थीं। 

मारूति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने बताया कि ‘मारूति की स्थापना से लेकर अभी तक कई आंदोलन हुए जिसका खट्टा मीठा अनुभव रहा है। इसमें उत्पादन भी ठप रहा और वर्करों ने हड़ताल भी की। लेकिन जो मानेसर प्लांट में हुआ है ऐसा कभी नहीं हुआ। अच्छे भले चल रहे उद्योग में औद्योगिक विवाद के बिना ही गुंडा तत्वों ने आग लगा दी। अधिकारियों पर जानलेवा हमला किया गया। जिसमें करीब सौ अधिकारी घायल हुए। एच आर के महाप्रबंधक अश्विनी कुमार देव की जान ले ली गई।’ अब भार्गव के इस बयान को समझने की जरूरत है। वे सीधे तौर पर कहीं भी मजदूर कर्मचारियों पर आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि सीधे तौर पर गुंडा तत्वों का हाथ होने की बात कह रहे हैं। सवाल उठता है कि हंगामें में जितने लोग शामिल थे, क्या सभी गुंडे थे? क्या सभी आउट साइडर थे? क्या सैकड़ों की भीड़ में कंपनी के प्रदर्शनकारी कर्मचारी शामिल नहीं थे? जाहिर है, थे। भार्गव का बयान सिर्फ लोगों को बरगलाने के लिए है। 

मारूति सुजूकी के मानेसर प्लांट में जानलेवा हिंसक प्रदर्शन के पीछे क्या कारण थे, ये भी समझने की जरूरत है। इसे कंपनी के सबसे निचले स्तर के कर्मचारी और सबसे ऊपर के कर्मचारी के बीच मेहनताने के फर्क से उपजे अवसाद से भी जोड़कर देखा जा सकता है। इनके रहन-सहन, खान-पान में जमीन-आसमान का अंतर है। मानेसर में करीब 50 हजार मजदूर रहते हैं, जिनकी उम्र 20 से 25 साल के बीच है। मारूति और इसके लिए कलपुर्जे बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम करने वाले हजारों मजदूर अलियार, ढाणा, नाहरपुर, कासन और खौ जैसे कई गांवों में भी बड़ी तादाद में रहते हैं। लेकिन इनके रहने के कमरों के बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। आठ बाइ आठ फीट के कमरे तीन से चार मजदूरों को किराए पर दिए जाते हैं, जिनमें ये लोग किसी तरह सिर्फ रात गुजारते हैं। इतना ही नहीं, मजदूरों को मिलने वाली सुविधाओं का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 300 लोगों पर सिर्फ 2 शौचालय हैं। खासी मशक्कत के बाद जब ये लोग फैक्ट्री पहुंचते हैं तो उनींदे होते हैं। परेशान भी। ऐसे में जब कंपनी का सुपरवाइजर किसी को जरा भी जोर से बोलता है तो ये फट पड़ते हैं। जबकि इन्हीं फैक्ट्रियों और कंपनियों के आला अधिकारी गुड़गांव और दिल्ली में तमाम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहे होते हैं। ये जो सामाजिक अंतर है, आर्थिक वर्ग भेद है, इसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यहां आपको याद दिला दें कि पिछले साल भी इस प्लांट में तीन बार हड़ताल हो चुकी है। 

मानेसर प्लांट में हुए हादसे के बाद कयास लगने लगे हैं कि मारूति सुजूकी प्लांट को गुजरात की तरफ शिफ्ट करने के बारे में भी सोच सकती है। हालांकि अभी कंपनी के चेयरमैन आर सी भार्गव कह चुके हैं कि ‘ये सब अफवाह है। मारूति मानेसर में ही रहेगी। हम अपना काम करेंगे लेकिन इसमें वक्त लग सकता है।’ हालांकि जानकारों का मानना है कि आनन फानन में शिफ्टिंग का फैसला नहीं होगा। कंपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से ऐसा करने की कोशिश करेगी। इन अफवाहों ने प्रदेश सरकार के कान खड़े कर दिये हैं। केंद्र सरकार भी मामले को संजीदगी से ले रही है। कॉर्पोरेट अफेयर मिनिस्टर वीरप्पा मोइली ने भी कह दिया है कि ‘मामले को सुलझाने के रास्ते निकालने के लिए वे शेयरधारकों के साथ साथ दूसरे मंत्रालयों से भी चर्चा करेंगे।’ हालांकि इसके लिए किस तरह के कदम उठाए जाएंगे, इस बारे में उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया है। वहीं रोहतक से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने इस घटना को दुखदायी बताते हुए कहा-‘मारुति उद्योग को हरियाणा पर पूरा विश्वास है। मारूति सुजूकी ने रोहतक में भी काफी निवेश किया है।’ विपक्ष की साजिश के आरोप पर उन्होंने कहा कि, ‘मामले की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।’ दरअसल इस मामले पर विपक्ष ने भी प्रदेश की कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया। इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने इस हिंसक घटना के लिए सीधे तौर पर हुड्डा सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा-‘उनकी सरकार के समय में ही मानेसर में डीजल कार बनाने वाले प्लांट की नींव रखी गई थी। लेकिन हुड्डा सरकार प्रदेश की साख बढ़ाने वाली कंपनियों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है। जिसकी वजह से भारी संख्या में उद्योग और कंपनियां यहां से पलायन कर रही हैं।’

 ये मामला राजनीतिक भी होता जा रहा है। ऐसे में कंपनी ने मानेसर प्लांट में अनिश्चितकाल के लिए तालाबंदी कर दी है। प्रबंधन का कहना है कि ‘प्लांट और कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी के बाद प्लांट में काम शुरू होगा।’ हर कंपनी में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच विवाद होते रहते हैं। लेकिन मारूति सुजूकी में हुई घटना ने एक बार मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के माथे पर भी बल ला दिया है। 

         कंपनी के आसपास के गांवों के सरपंचों ने आरोप लगाया है कि बीते कुछ वर्षों में राजनीतिक सिफारिश पर रोहतक, जींद, सोनीपत, झज्जर के लोगों को मारुति सुजूकी में काफी नौकरियां दिलाई गई हैं। राजनीतिक संरक्षण वाले ये लड़के काम कम और प्रबंधन पर दादागीरी ज्यादा करते हैं। यही वजह है कि जींद निवासी जिया लाल ने पहले तो सुपरवाइजर के साथ विवाद किया और बाद में उसके समर्थन में लोगों ने माहौल को हिंसक बना दिया। ये लोग कुछ प्रतियोगी कंपनियों पर भी इस राजनीतिक साजिश में शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं क्योंकि बीते दो साल में मारूति में हुई हड़ताल की वजह से इन्हें काफी फायदा मिला है। 

           आरोप और प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन हकीकत यही है कि इसका असर किसी एक कंपनी या इलाके तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि व्यापक होगा। मारूति ने 19 जुलाई को जारी एक बयान में कहा था कि ‘कंपनियों के प्रति लोगों में बढ़ रही नकारात्मकता का देश में निवेश और रोजगार के अवसरों पर विपरीत असर पड़ेगा।’ लेकिन क्या इसे मजदूरों के हित से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए ? देश के हजारों-लाखों मजदूरों की अनदेखी करके कोई भी कंपनी या उद्योग सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता।


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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

मीडिया से डरे मुख्यमंत्री


      इन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा डरे हुए हैं। डर है जनता का। डर है आगामी विधानसभा चुनाव का। डर है मीडिया का, साथ ही अपनी ही पार्टी के विधायकों का भी। हालांकि प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी दो साल से भी ज्यादा का समय बाकी है, लेकिन माननीय मुख्यमंत्री के पसीने छूटने लगे हैं। 

        राजधानी चंडीगढ़ में 7 जुलाई को प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस कप्तानों और विभागीय सचिवों की बैठक को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। ये बैठक करीब सात घंटे चली और हुड्डा पूरे समय तक बैठक में मौजूद रहे। मुख्यमंत्री के लिए ये बैठक कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने करनाल में पहले से निर्धारित कार्यक्रम भी रद्द कर दिया। ऐसे में इस मैराथन बैठक के क्या मायने हैं, इसे लेकर कयास लगने शुरू हो गये हैं। खुद कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों को ही इस बैठक की जानकारी नहीं थी। बैठक की खबर को गुप्त रखा गया था। किसी को कानोंकान खबर नहीं। दरअसल, हरियाणा के मुख्यमंत्री इन दिनों किसी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। ना तो अपने मंत्रियों पर, ना ही अपने विधायकों पर। ऐसे में प्रदेश के अधिकारी ही उनके आंख, नाक और कान बने हुए हैं। कांग्रेस के ही एक विधायक ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर ये बात बताई है। इनका तो यहां तक कहना है कि मुख्यमंत्री भले ही ‘नंबर वन हरियाणा’ का डंका पीट रहे हों, पिटवां रहे हों, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। आम आदमी बेहद परेशान है। लेकिन मुख्यमंत्री ये बात सुनने को तैयार नहीं हैं। उन्हें तो वही दिखाई और सुनाई देता है जो प्रदेश के चुनिंदा दो बड़े अधिकारी उनसे कहते हैं। मामला गंभीर हो उठता है, जब सत्तारूढ़ दल का ही कोई विधायक अपने मुखिया पर इस तरह के आरोप लगाता है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार निर्दलीयों और हजकां छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के भरोसे चल रही है। ऐसे में ये आरोप सच भी लगने लगते हैं। खास तौर से उन विधायकों को लेकर जो हजकां छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। जो नेता अपनी पार्टी के नहीं हुए वे कांग्रेस के क्या होंगे? और शायद मुख्यमंत्री हुड्डा को इसी बात का डर भी है।

     वहीं दूसरी तरफ विपक्षी विधायक मुख्यमंत्री को ‘घोषणाओं का मुख्यमंत्री’ बताते हैं। इन दिनों मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जहां भी जाते हैं, घोषणाओं की झड़ी लगा देते हैं। खास तौर पर कांग्रेसी विधायकों और सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों के हलकों में। शिक्षा संस्थान, अस्पताल, नहर, पीने के पानी और तमाम दूसरी योजनाओं के लिए वे सरकार का खजाना खोलने की बात कहते हैं। ये और बात है कि इन घोषणाओं पर अमल की तारीख तय नहीं होती और घोषणाएं वर्षों तक फाइलों में दबी रहती हैं। सोनीपत से बीजेपी विधायक कविता जैन का कहना है कि, ‘ सड़क, बिजली और पानी की दिक्कत झेल रहा समाज का हर तबका सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रहा है। इनमें व्यापारी, महिलाएं और किसान भी शामिल हैं। हुड्डा सरकार डरी हुई है। और इसी वजह से जनता को दबाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन घड़ा भर चुका है। जब भी चुनाव होंगे, जनता जवाब देगी।’ वे कहती हैं-‘जो सरकार आम आदमी को आधारभूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रही है, उसे बने रहने का कोई हक नहीं है। प्रदेश में कानून व्यवस्था बदहाल होने की वजह से कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है। महिलाएं डरी हुई हैं। खानपुर कलां की घटना आप देख चुके हैं।’ वहीं प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल इनेलो ने भी मुख्यमंत्री को डरा हुआ बताया। पटौदी से इनेलो विधायक गंगाराम ने कहा कि, ‘भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सबसे ज्यादा डर इंडियन नेशनल लोकदल का है। और इसी डर की वजह से वे जो भी काम करते हैं उसमें गड़बड़ हो जाती है। जनता तो नाराज है ही। इनेलो सिर्फ और सिर्फ जनता के हित में विकास चाहती है।’ 

       मुख्यमंत्री को मीडिया का भी डर है। खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्र बताते हैं कि जिन टीवी चैनलों पर हरियाणा को नंबर वन बताने वाले विज्ञापन चलते हैं, उन्हीं चैनलों पर चलने वाली खबरों ने मुख्यमंत्री को परेशान कर दिया है। जनसमस्याओं को सामने लानी वाली रिपोर्टों से मुख्यमंत्री आहत हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह की खबरें गढ़ीं जा रही हैं। प्रदेश के न्यूज चैनल जो दिखा रहे हैं, वो सच नहीं है। इस तरह की खबरें प्रायोजित हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री अपने दो बहुत करीबी अधिकारियों पर ही भरोसा करते हैं। वे जो कहते हैं, हुड्डा साहब उसे ही सच मानते हैं। वे प्रदेश की जैसी हालत बताते हैं, मुख्यमंत्री उससे इतर कुछ सुनना ही नहीं चाहते। निर्दलीय और हजका से आए विधायकों के साथ साथ उन्हें अपने विधायकों पर भी भरोसा नहीं रहा। ऐसे में मीडिया में दिखाई जाने वाली आम जनता की समस्याएं उन्हें प्रायोजित लगती हैं। उन्होंने डर का डंडा दिखा भी दिया है। अब हरियाणा में चलने वाले कई चैनलों की भाषा बदल गई है, उनका कंटेंट बदल गया है। 

       टीवी चैनलों का कंटेट भले बदल गया हो, लेकिन अब लगता है कि उन पर दिखाई गई जनसमस्याओं पर सीएम साहब ने कुछ ध्यान दिया है। शायद इसी का असर है कि मुख्यमंत्री को जुलाई के पहले हफ्ते में प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस कप्तानों और विभागीय सचिवों की बैठक बुलानी पड़ी। इस तरह की बैठक करीब एक साल बाद हुई है। इस मैराथन बैठक में मुख्यमंत्री ने सभी जिला उपायुक्तों को आपदा प्रबंधन पर जोर देने के निर्देष दिये हैं। बाढ़ से बचाव के लिए पुख्ता प्रबंध करने के आदेश दिए हैं। दरअसल, सीएम साहब गर्मी और बिजली की किल्लत से जूझ रही जनता की गुहार देख चुके हैं। पिछले साल बाढ़ से हुई बर्बादी भी उनके जेहन में होगी ही। ऐसे में आने वाले दिनों में वे किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते। 6 जुलाई को प्रदेष के कुछ इलाकों में हुई बारिश ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोल दी है। ऐसे में मानसून और उपरी इलाकों में बारिश का खौफ भी हरियाणा सरकार को डरा रहा है। सभी जिला उपायुक्तों से कहा गया है कि इलाके का दौरा करें, ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें और विकास कार्यों पर जोर दें। बैठक में शामिल सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश में ढीली हो रही कानून व्यवस्था को लेकर जिला प्रशासन की भी खिंचाई की। इतना ही नहीं, तहसील स्तर पर भी पटवारी को हफ्ते में दो दिन बैठने, सभी विभागों में सिटिजन चार्टर के मुताबिक काम करने को सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।

      बैठक में राज्य के सभी बोरवेल को लेकर सर्वे करवाकर इन्हें बंद करवाने के निर्देश दिये गये। गौरतलब है कि पिछले तीन हफ्तों में सिर्फ गुड़गांव में ही तीन बच्चे बोरवेल और खुले सीवर में गिर चुके हैं। जिनमें से दो को अपनी जान गंवानी पड़ी। सरकार और प्रशासन के खिलाफ लोगों की भावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री (डरे हुए) अब जरा भी लापरवाही बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं। सात घंटे तक चली प्रदेश के मुखिया और आलाधिकारियों की इस बैठक में सिर्फ निर्देश ही नहीं दिये गये, बल्कि निर्देशों का पालन करने और पत्रकारों के जरिए ही जनता को जानकारी देने की बात भी कही गई है। 

    एक मैराथन बैठक में इतनी हिदायतें ये बताने के लिए काफी हैं कि मुख्यमंत्री परेशान चल रहे हैं। विधायकों की वे सुनते नहीं हैं। अपना डर मीडिया पर थोप कर मुख्यमंत्री ने मीडिया से मिलने वाले फीडबैक को भी बंद कर दिया है। हुड्डा साहब चाहते तो मीडिया में दिखाई जाने वाली समस्याओं का समाधान करवा कर पार्टी को राहत दिलवा सकते थे। लेकिन लगता है कि उनके जो तथाकथित सिपाहसालार हैं, वे ऐसा नहीं चाहते। दरअसल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पास उपलब्धि के नाम पर गिनाने के लिए अपनी खेल नीति और साफ सुथरे नेशनल हाइवे के अलावा और कुछ है नहीं। क्योंकि उनके पॉवर प्लांट्स की पोल खुल चुकी है और विकास कार्य रोहतक लोकसभा सीट तक ही सिमटे हुए हैं। आप जानते हैं कि काठ की हांडी बार बार चढ़ नहीं सकती। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री की पेशानी पर बल पड़ना लाजिमी है। 

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शनिवार, 14 जुलाई 2012

लक्ष्य चंडीगढ़: वाया परमाणु संयंत्र


                चढ़ता पारा। बढ़ती गर्मी। मस्त नेता। त्रस्त जनता। गर्माती राजनीति। मुद्दा है फतेहाबाद के गोरखपुर में बनने वाला परमाणु संयंत्र। इससे बननी है बिजली, जो जनता को देगी राहत। इस संयंत्र को अमली जामा पहनाने की राज्य सरकार की योजना फिलहाल खटाई में पड़ती दिख रही है। किसानों ने आंदोलन की धमकी दी है। सर्वेक्षण करने पहुंची एक टीम की जमकर पिटाई भी कर दी। पहले तो किसान अधिग्रहित जमीन का मुआवजा बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे और अब रेडिएशन फैलने की बात कह रहे हैं। राजनीतिक दल भी किसानों के बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। इंडियन नेशनल लोकदल और हरियाणा जनहित कांग्रेस ने इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इनेलो तो मुखर होकर सामने आई है। पार्टी का मानना है कि दुनिया भर में नकारा घोषित किए जा चुके और आम लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन चुके परमाणु संयंत्रों को मुख्यमंत्री हुड्डा जानबूझ कर राजनीतिक द्वेष के चलते फतेहाबाद में लगाना चाहते हैं। पार्टी के प्रधान महासचिव और डबवाली से विधायक अजय सिंह चौटाला ने गोरखपुर में लगने वाले परमाणु संयंत्र को पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि, ‘इनेलो परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे किसानों का डटकर सहयोग करेगी और किसी भी कीमत पर गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु संयंत्र नहीं लगने दिया जाएगा।’ अजय चौटाला ने कहा, ‘जापान जैसे विकसित देश में परमाणु संयंत्र घातक साबित हुए हैं और गोरखपुर में घनी आबादी के साथ ऐसा परमाणु संयंत्र लगाना पूरी मानवता को आग में झोंकने के बराबर है।’ 

              हरियाणा जनहित कांग्रेस के सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई भी इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ आवाज बुलंद कर चुके हैं। कुल मिलाकर मामला राजनीति का है। इस संयंत्र के पूरा होने पर प्रदेश में 2800 मेगावाट बिजली का उत्पादन बढ़ेगा। इसमें से 1400 मेगावाट बिजली प्रदेशवासियों को मिलेगी। विपक्ष के तमाम आरोपों को कांग्रेस सरकार और उसके नेता आए दिन खारिज करते दिखते हैं। हर कांग्रेसी इस संयंत्र के बनने के बाद विश्व के नक्शे पर हरियाणा की अलग पहचान खोजता दिख जाता है। विकास की बयार की बात भी कही जाती है। पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस विधायक प्रो. संपत सिंह ने इस संयंत्र का विरोध करने वालों को प्रदेश का विरोधी करार दिया है। हाल ही में सोनीपत में उन्होंने कहा कि, ‘देवीलाल और भजनलाल ने भी मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्रियों को परमाणु संयंत्र लगाने के लिए खत लिखे थे।’ ये सच भी है। इन दोनों ने नेताओं ने मुख्यमंत्री रहते हुए बिजली की समस्या से निजात पाने के लिए परमाणु संयंत्र लगवाने की कोशिश की थी, लेकिन हरियाणा के दोनों ‘लाल’ अपनी कोशिश में नाकाम रहे। अब देवीलाल और भजनलाल के वारिस ही उनकी मांग को पलीता लगाने की तैयारी में हैं। मामला वोट बैंक का है। मामला नया वोटर बनाने का है। मामला कुर्सी पर कब्जा करने का है। जिसका रास्ता किसानों की दुखती रग से होकर ही जाता है। संपत सिंह ने कहा कि,‘बिजली की कमी को दूर करने के लिए सरकार तल्लीनता से कार्यरत है और उन्हें उम्मीद है कि साल के अंत तक बिजली की किल्लत से निजात मिल सकेगी।’ परमाणु संयंत्र को लेकर विपक्ष राजनीतिक रोटियां सेंकने की कवायद में है तो सरकार किसी भी तरह से इस मामले को हाथ से जाने नहीं देना चाहती। 

दरअसल, हरियाणा में बिजली की भारी किल्लत है। और पॉवर कट यहां की जनता की चुनिंदा दिक्कतों में से एक है। पूरे प्रदेश में ऐसा कोई भी शहर या गांव नहीं है जहां बिजली किल्लत की समस्या ना हो। हालांकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बिजली की समस्या को विरासत में मिली समस्या बताते रहते हैं, लेकिन पिछले साढ़े सात साल में उन्होंने इस समस्या से निजात दिलाने के लिए क्या किया है, ये समझ से परे है। प्रदेश में यमुनानगर, पानीपत, खेदड़ (बरवाला) और झाड़ली (झज्जर) सहित कई और भी पॉवर प्लांट हैं। लेकिन कोई भी प्लांट अपनी क्षमता के मुताबिक बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहा है। किसी प्लांट की एक यूनिट खराब है तो किसी की दो। पिछले दिनों तो खेदड़ प्लांट पूरी तरह से ठप हो गया था। बावजूद इसके प्रो. संपत सिंह सफाई देते दिखे। उनकी मानें तो 31 जुलाई तक ज्यादातर यूनिटें काम करना शुरू कर देंगी। हालत ऐसी है कि बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के शहर तक में बिजली आपूर्ति सही तरीके से नहीं हो पा रही है। मामला भटक गया। बात परमाणु संयंत्र की हो रही थी। विपक्ष के नेताओं के अपने तर्क हैं तो सत्ता पक्ष की अपनी ढपली और अपना राग। 
  परमाणु संयंत्र को लेकर वैज्ञानिक भी एक राय नहीं हैं। दिल्ली के प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. प्रवीर पुरकायस्त का कहना है कि,‘ जनहित को देखते हुए किसी भी स्थान पर परमाणु संयंत्र लगाया जाना सही नहीं है, क्योंकि यह किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है। बावजूद इसके भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो बिजली उत्पादन के अच्छे विकल्प तलाशने की बजाए, परमाणु संयंत्र का राग अलाप रहा है।’ डॉ. प्रवीर गोरखपुर मंे लगने वाले परमाणु संयंत्र के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि, ‘कोयले और परमाणु के प्लांट में काफी अंतर होता है। यदि इसे नियंत्रण करने में हल्की सी भी चूक  हो जाए तो पूरी मानव जाति के लिए खतरा साबित हो सकता है। इन संयंत्रों से निकलने वाली विकिरणों से कम से कम 40 किलोमीटर का क्षेत्र भयंकर गर्मी और बीमारियों की चपेट में आ जाता है। वहीं दूसरी तरफ न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डी के गोयल ने देश के सभी परमाणु बिजली संयंत्रों को पूरी तरह से सुरक्षित बताया है। उन्होंने कहा कि इसके आस पास रहने वालों के जीवन पर किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। रेडिएशन के जवाब में उन्होंने कहा कि, ‘मानव शरीर के साथ साथ दूध, चावल, मिट्टी, दाल, फल सहित सभी वस्तुएं रेडिएशन छोड़ती हैं।’ उन्होंने कहा -‘गोरखपुर में लगने वाले परमाणु बिजली संयंत्र के बारे में लोगों में अनेक भ्रांतियां हैं। यह संयंत्र अति आधुनिक तकनीक से बनाया जाएगा, जो कि पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है। इलाके की भौगोलिक और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रख कर संयंत्र का डिजाइन तैयार किया गया है। इस पर तेज भूकंप का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’ 

  फतेहाबाद के गोरखपुर में लगने वाला परमाणु बिजली संयंत्र शुरू होने से पहले ही सुर्खियां बटोर चुका है। संयंत्र के लिए जमीन देने वाले किसानों का लालच भी बढ़ रहा है। वे आंदोलन की धमकी दे रहे हैं। इनेलो उनका साथ दे रही है। बयानबाजी का दौर जारी है। अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी है। बिजली मिले ना मिले, पानी मिले ना मिले, राजनीतिक दलों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस वोट मिलने चाहिए। चाहे जो भी करना पड़े। 
  वैसे न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डी के गोयल परमाणु बिजली संयंत्र को अच्छा स्रोत मानते हैं। उनके मुताबिक हवा और सौर ऊर्जा ज्यादा महंगे साबित होंगे। लेकिन जनता ये जानना चाहती है कि किसी संकट की घड़ी में इस संयंत्र पर काबू कैसे पाया जाएगा। समुद्र के किनारे होने की वजह से जापान ने तो अपने संयंत्रों को ठंडा कर दिया था, लेकिन हरियाणा में...। जहां पीने का पानी भी अब मयस्सर नहीं है, भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है। संयंत्र को ठंडा करने के लिए पानी आएगा तो कहां से ? लोगों का कहना है-विनाश की पटकथा लिखी जा रही है। और राजनीतिक दल अभिनय कर रहे हैं। तमाशा जारी है। देखते रहिए। 


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रविवार, 10 जून 2012

चंद्रमोहन की ‘घर वापसी’


हरियाणा की राजनीति नई करवट ले रही है। कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले चंद्रमोहन ने पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने ‘घर वापसी’ की है। चंद्रमोहन ने कांग्रेस छोड़कर भाई कुलदीप बिश्नोई की पार्टी (हरियाणा जनहित कांग्रेस ) ज्वाइन कर ली है। पिता भजनलाल की पहली पुण्यतिथि पर मंडी आदमपुर में उन्होंने इस बात की घोषणा की। बड़े भाई चंद्रमोहन ने जैसे ही इस बात का सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया, छोटे भाई कुलदीप ने तुरंत बड़े भाई का जोर शोर से स्वागत किया। मंच पर ही चरण स्पर्श करके आशीर्वाद भी लिया। उन्होंने कहा कि, ‘अब संघर्ष में पिता तुल्य भाई का साथ मिल गया है। कोई भी बाधा अब नहीं रोक पाएगी।’ समर्थक पहले से यह प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह से दोनों भाई एक हो जाएं। इस ‘भरत मिलाप’ के पीछे पूर्व सांसद धर्मपाल मलिक का भी योगदान माना जा रहा है।

चंद्रमोहन के इस फैसले ने ठण्डी पड़ी हरियाणा की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। दोनों भाइयों के एक मंच पर आने से जहां परिवार की दूरियां कम हुईं, वहीं राजनीतिक तौर पर भी इसे एक बड़ी कामयाबी मानी जा रही है। भजनलाल के दो ही सपने थे। एक तो परिवार एकजुट हो और दूसरा कुलदीप प्रदेश का मुख्यमंत्री बने। चंद्रमोहन की ‘घर वापसी’ से भजनलाल का एक सपना तो पूरा हो गया है। लेकिन दूसरा अभी बाकी है। जिसके लिए चंद्रमोहन ने कुलदीप की पूरी मदद का भरोसा दिलाया है। चंद्रमोहन ने कहा कि, ‘परिवार के सदस्यों और प्रदेश की जनता के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए वे हजकां में शामिल हुए हैं। पिताजी का सपना था कि कुलदीप हरियाणा का मुख्यमंत्री बनकर लोगों की सेवा करें। अब वे अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए कुलदीप बिश्नोई को हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए जी तोड़ मेहनत करेंगे।’ यानी अब दोनों भाइयों का लक्ष्य एक है। प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी। विरोधी एक हैं। पंचकूला इलाके में चंद्रमोहन की पकड़ भी है। कुछ न कुछ असर प्रदेश के दूसरे इलाकों में भी होगा। और जो सबसे बड़ी बात होगी वो है परिवार की एकजुटता। ऐसे में विरोधी राजनीतिक परिवारों में हलचल है।

लोगों को एक बार फिर अनुराधा बाली और चांद मोहम्मद का प्रेम प्रसंग याद आ रहा है। 2008 के आखिरी दिनों में चंद्रमोहन, अनुराधा बाली ऊर्फ फिजा की वजह से खासी सुर्खियों में थे। लोग उन्हें प्रदे”ा के उपमुख्यमंत्री होने की वजह से कम और प्रेमी के तौर पर ज्यादा जानते थे। चूंकि चंद्रमोहन “ाादी”ाुदा थे, ऐसे में वे बाली के साथ विवाह नहीं कर सकते थे। ऐसे में साल 2008 के आखिरी दिनों में चंद्रमोहन और अनुराधा ने धर्म परिवर्तन किया और क्रम”ाः चांद मोहम्मद और फिजा बनकर निकाह कबूल कर लिया। इस निकाह के बदले चंद्रमोहन ऊर्फ चांद मोहम्मद को राजनीतिक और पारिवारिक तौर पर भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। अनुराधा बाली ऊर्फ फिजा तब हरियाणा सरकार की सहायक अधिवक्ता थीं। सरकार ने बाली को भी चलता कर दिया। स्थितियां प्रतिकूल थीं। तब भी चंद्रमोहन ने फिजा का साथ देने की ही बात कही थी। ‘राजनीति से ज्यादा मेरे लिए मेरा प्यार जरूरी है। राजनीतिक ओहदे तो आते-जाते रहते हैं। लेकिन किसी से किया गया वायदा निभाना महत्वपूर्ण है।’

साल 2009 चुनावी साल था। ऐसे में पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। चंद्रमोहन से फौरन उपमुख्यमंत्री का पद छीन लिया गया। हालांकि वजह दूसरी बताई गई। मुख्यालय और कार्यालय से लंबी गैरहाजिरी को हटाने का कारण बताया गया था। हालांकि चंद्रमोहन को पार्टी से नहीं निकाला गया था। लेकिन विधानसभा चुनाव के समय चंद्रमोहन को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा। पंचकूला सीट से चार बार विधायक बनने वाले चंद्रमोहन का टिकट काट दिया गया था। 2005 में हरियाणा में कांग्रेस की भारी जीत के बाद पिता भजनलाल को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से कुलदीप बि”नोई नाराज चल रहे थे। केंद्र के नेताओं पर लगातार हमले कर रहे थे। ऐसे में पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। तब भजनलाल ने 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई और 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान इनेलो के संपत सिंह और कांग्रेस के जयप्रकाश को हरा कर संसद पहुंचे। इसके बावजूद चंद्रमोहन ने कांग्रेस में आस्था दिखाते हुए पार्टी में बने रहने की बात कही थी। कुलदीप के पार्टी बनाने पर उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि, ‘मेरे पिता भजनलाल और भाई कुलदीप बिश्नोई ने नई राजनीतिक पार्टी बना ली है। मेरा उनसे राजनीतिक तौर पर कोई संबंध नहीं है। अगर मेरे क्षेत्र की जनता चाहेगी तो मैं फिर चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा भी।’ लेकिन अब जबकि विधानसभा का आधा समय बीत चुका है। चंद्रमोहन को आशंका है कि अगली बार भी उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं, इसलिए वे एक आधार चाहते थे। ऐसे में घर की पार्टी से अच्छी कौन सी पार्टी हो सकती थी?

2009 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई सहित हरियाणा जनहित कांग्रेस के 6 सदस्यों ने जीत दर्ज की थी। लेकिन इनमें से 5 कांग्रेस सरकार बनने के बाद उसमें शामिल हो गये। दलबदल का मामला विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा के पास चल रहा है। पिता के निधन के बाद कुलदीप ने हिसार लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की थी। और उनकी खाली सीट पर पत्नी रेणुका बिश्नोई ने विजय पताका फहराई थी। यानी मौजूदा समय में हजका से सिर्फ विधायक और एक सांसद हैं। और दोनों पति पत्नी हैं।

फिजा और चांद मोहम्मद का प्रकरण भी ज्यादा लंबा नहीं चला। चार महीने तक सुर्खियों में रहने के बाद फिजा और चांद ने दूरी बना ली। दोनों के बीच दरार की खबरें भी आईं। और फिर ज्यादा भद्द पिटने के बाद चांद ने फिजा को तलाक दे दिया। तब वो बीमारी का इलाज करवाने के लिए लंदन में थे। और वहीं से फोन पर तलाक दे दिया था। चंद्रमोहन भी अपने परिवार में लौट आए हैं। विरोधी राजनीतिक परिवारों में हलचल है। हुड्डा परिवार, चैटाला परिवार और चैधरी बंसीलाल सहित प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति करने वाले तमाम परिवार इस घटनाक्रम पर नजरें बनाए हुए है। क्योंकि कुलदीप बि”नोई के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, चंद्रमोहन भी खाली हाथ हैं। लेकिन हिसार और पंचकूला में दोनों भाइयों का जनाधार विरोधियों के लिए चिंता का सबब है। क्योंकि दोनों भाई मिलकर कुछ भी हासिल करेंगे तो नुकसान इन्हीं कुछ परिवारों को हो सकता है।



ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है. 

शनिवार, 26 मई 2012

शर्मसार हरियाणा


        बलात्कार और भ्रूण हत्या। दोनों पाप। दोनों हो रहे हैं। दुखद हैं। चुनौतीपूर्ण भी। हाशिाए पर जा रही हैं महिलाएं। युवतियां। बच्चियां। कोख में पल रही बेटियां भी जन्म लेने से पहले ही मार दी जाती हैं। शर्मसार हो रहा है हरियाणा। बदनामी किसे अच्छी लगती ह, लेकिन हकीकत यही है। बलात्कार और भ्रूण हत्याओं की खबरें पूरे प्रदेशा से आ रही हैं। कहीं छात्रा से बलात्कार तो कहीं शादीशुदा महिलाओं से। दरिंदगी की हद। वृद्ध महिलाएं भी वासना के भूखों की शिकार बन रही हैं। छुट्टा घूम रहे हैं मनचले। कोई रूकावट नहीं।




       देश के समृद्ध राज्यों में से एक है हरियाणा। यहीं खुला था देश का पहला महिला विश्वविद्यालय। भक्त फूलसिंह महिला विश्वविद्यालय, खानपुर कलां, सोनीपत। इन दिनों ये विश्वविद्यालय सुर्खियों में है। किसी उपलब्धि को लेकर नहीं, बल्कि एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार की वजह से। बीए एलएलबी की एक छात्रा के साथ गैंग रेप किया गया है। विवविद्यालय में मेस चलाने वाले अमित मलिक उर्फ मीता पर दो दोस्तों के मिलकर इस शर्मनाक घटना को अंजाम देने का आरोप है। मामला 16 मई का है, जब छात्रा विवविद्यालय के गेट पर किसी काम से गई थी। अमित मलिक ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसे जबरन उठा लिया। खेतों में ले जाकर उसके साथ बारी बारी से रेप किया। हवस की आग बुझाने के बाद छात्रा को यूनिवर्सिटी के गेट पर फेंक कर चले गये।

छात्रा सदमे में थी। किसी से कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। अगले दिन 17 मई को उसने अपने साथ हुए दुराचार की बात अपनी दोस्तों को बताई। एक कान से दूसरे कान होते होते बात पूरे विवविद्यालय में आग की तरह फैल गई। छात्राएं एकजुट हो गईं। आवाज उठाई। विवविद्यालय प्रशासन मामले को दबाकर साख बचाने में जुट गया। इसकी भनक मिलते ही छात्राओं ने विरोध की रणनीति अपनाते हुए गोहाना-गन्नौर रोड पर जाम लगा दिया। दबाव बढ़ा। चीफ वार्डन साहिब कौर से त्याग पत्र ले लिया गया। लेकिन लड़कियों को न्याय चाहिए था। आवाज और बुलंद हुई। चंडीगढ़ तक पहुंची। गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा ने इस शर्मनाक हरकत की निंदा की और छात्राओं को कार्रवाई का भरोसा दिलाया। गोपाल कांडा ने कहा, ‘इस घटना की पूरी तहकीकात की जाएगी। और इस शर्मनाक घटना के पीछे जो भी दोषी पाया जाएगा उसे सरकार बख्शेगी नहीं। गृह राज्यमंत्री के बयान के बाद पुलिस पर दबाव बढ़ गया था। आनन फानन में तीनों आरोपियों को दबोच लिया गया। लड़कियां इतने से ही मानने वाली नहीं थीं। उन्होंने आरोपियों को देखने की जिद की। पुलिस को मानना पड़ा। विवविद्यालय के बाहर प्रदर्ान कर रही छात्राओं में से कुछ को दो गाडि़यों में ले जाकर आरोपियों को दिखाया गया। पुलिस को इस बात का डर भी था कि अगर तीनों आरोपी उग्र लड़कियों के हाथों में पड़ गये तो मुसीबत हो जाएगी। वहीं, अलग अलग बयानों की वजह से पुलिस भी सवालों के घेरे में है। पहले कहा गया कि तीनों को खानपुर कलां गांव से ही पकड़ा गया है। बाद में कहा - हरिद्वार से गिरफ्तार किया गया।


हालांकि आरोपियों को दिखाने के बाद प्रशासन ने छात्राओं से आंदोलन खत्म करने की अपील की। लेकिन लड़कियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। चीफ वार्डन के इस्तीफे के बाद अब इन्होंने कुलपति को भी हटाने की मांग की है। शुक्रवार-शनिवार (18-19 मई) की रात लड़कियां सड़क पर ही जमी रही।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने आंदोलन करने वाली इन लड़कियों को दबाने की पूरी कोशिश की। बात नहीं बनी। लड़कियों को रात का खाना नहीं दिया गया। शर्त रखी गई कि जब वे हाॅस्टल में आएंगी तभी खाना मिलेगा। लड़कियों ने शर्त ठुकरा दी। रात में सड़क पर भूखे प्यासे रह कर पीडि़त छात्रा को न्याय दिलाने के लिए आवाज बुलंद करती रहीं। भक्त फूल सिंह महिला विवविद्यालय के हाॅस्टल में रहने वाली तीन छात्राएं फरवरी और मार्च महीने में फंदा खुदकुशी कर चुकी हैं। लेकिन इसकी वजह क्या थी, इसका पता नहीं चल पाया है। ऐसे में एक के बाद एक घटनाओं ने विपक्ष को एक और मौका दे दिया। मुख्य विपक्षी दल इनेलो के प्रधान महासचिव अजय चैटाला 19 मई (शनिवार) को महिला विश्वविद्यालय पहुंच गये। सरकार पर हमले किये। छात्राओं को साथ देने का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा, ‘अगर महिला विश्वविद्यालय की छात्राओं के साथ बलात्कार हो, आत्महत्या करने की घटना घटे, तो बजाए इंसाफ दिलवाने के, बजाए दोषी लोगों को सजा देने के उन्हीं से जांच करवाई जाती है और उनको बचाने का काम किया जाता है। अब बच्चियों ने सीधे तौर पर कहा है कि वीसी के रहते इस तरह की कई घटनाएं घटी हैं। रजिस्ट्रार, वीसी और हाॅस्टल वार्डन की जरूरत नहीं है।अजय चैटाला ने मामले की जांच हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से करवाने की भी मांग की।
वहीं, इस मामले में जब हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन सुशीला शर्मा से बात की गई तो उन्होंने प्रशासन की तारीफ में कसीदे ही पढ़े। उन्होंने कहा, ‘आरोपियों को पकड़ लिया गया है। प्रशासन ने तत्परता दिखाई है। आज समाज के हर तबके से कहना चाहेंगे कि जितनी नैतिकता की जरूरत है, उसे बचाए और बनाए रखने की कोशिश करें। जो उद्दंडता समाज में आ गई है उसे दूर करने की जरूरत है। युवाओं को नैतिकता और सद्गुण के पाठ पढ़ाए जाने चाहिए। समाज के सभी वर्ग के लोगों को दल, जाति, धर्म से उपर उठकर इसके लिए कोशिश करनी चाहिए। ताकि इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकें।बजाए इसके कि वे ठोस कार्रवाई की मांग करतीं, समाज से उम्मीद कर रही हैं। उस समाज से जो रोज अपने प्रतिनिधियों से नित नये सबक सीख रहा है।

दरअसल, हरियाणा में छात्राओं से बलात्कार का ये कोई पहला मामला नहीं हैं। आए दिन प्रदेषा के किसी न किसी इलाके से बलात्कार की खबरें आती रहती हैं। आप यकीन नहीं कर पाएंगे लेकिन ये सच है। जनवरी के आखिरी सप्ताह में 80 साल की एक वृद्ध महिला के साथ बलात्कार किया गया। रेवाड़ी से 12 किलोमीटर दूर नांगल गांव में 35 साल के एक शादीशुदा युवक की इस हरकत ने प्रदेष को शर्मसार कर दिया। मार्च में भिवानी में पड़ोसी ने ही एक नाबालिग की अस्मत तार-तार कर दी। अप्रैल में ही पानीपत में 5 साल की बच्ची से दुकर्म किया गया। मई के पहले हफ्ते में ही फतेहाबाद में 7 साल की एक बच्ची के साथ 60 साल के बुजुर्ग ने बलात्कार किया। एक के बाद एक कई खबरें आईं। लेकिन किसी में भी कार्रवाई नहीं हुई। हां, गुड़गांव में एक युवती से सामूहिक बलात्कार के सभी 6 आरोपियों को पुलिस ने 15 दिनों के भीतर जरूर पकड़ लिया था। ये मार्च के दूसरे हफ्ते की घटना है। युवती गुड़गांव के एक माॅल के बाहर टैक्सी में सवार हो रही थी। तभी कुछ युवकों ने उसे उठा लिया और एक फ्लैट में ले जाकर गैंग रेप किया। इस घटना के बाद भी गुड़गांव पुलिस सचेत नहीं हुई थी। क्योंकि इसके अगले ही दिन एक और महिला के साथ बलात्कार की खबर आई।

ये तो हुई छात्राओं, युवतियों और महिलाओं की बात। जो प्रदेषा सरकार की पोल खोलने के लिए काफी है। प्रदेष में बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं। खास तौर से वे बच्चियां जो किसी अनाथ आश्रम में रहती हैं। ऐसे ज्यादातर अनाथ आश्रम कोई न कोई एनजीओ चलाता है। इन अनाथ आश्रम में रहने वाली बच्चियों का जमकर यौन शोषाण किया जाता है। गुड़गांव के वजीराबाद गांव में चल रहे अनाथ आश्रम सुपर्णा का आंगनमें रहने वाली अनाथ नाबालिग बच्चियों का यौन शोषण उनके केयर टेकर रचित राज ने ही किया था। जबकि सीएम सिटी रोहतक में अपना घरनाम से चलने वाली एक और संस्था में बच्चियों और युवतियों के संरक्षण के नाम पर यौन शोषण, शारीरिक उत्पीड़न का सनसनीखेज मामला पिछले हफ्ते ही सामने आया है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण परिषद की टीम ने छापा मारा तो कई अनियमितताएं देखने को मिलीं। यहां रहने वाली बच्चियों ने जरा सी सहानुभूति पाई तो फट पड़ीं। जबरन काम करवाना तो समझा जा सकता है। लेकिन अधिकारियों को यकीन ही नहीं हुआ जब बच्चियों ने जिस्मफरोशी करवाने की शिकायत भी की। ये भी बताया कि कुछ युवतियों को छापे से एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंचाया गया है।

संचालिका जसवंती, उसकी बेटी सिमी, दामाद जय भगवान और उसके ममेरे भाई सतीश को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन दोनों ही मामलों में क्या सिर्फ गिरफ्तारी से बात खत्म हो जाएगी? नहीं। आखिर प्रशासन की भी लापरवाही है। ऐसे में रोहतक प्रशासन को राष्ट्रीय बाल संरक्षण परिषद की टीम ने तलब कर लिया।
मामला दिल्ली तक पहुंच गया था। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को इतनी फुरसत नहीं थी कि अपना घरका परायापन देख आते। देख आते कि इस तरह के आश्रम चलाने वाले एनजीओ को सरकार जो पैसा दे रही है, उसका सही इस्तेमाल हो भी रहा है या नहीं। सिर्फ हुड्डा साहब को ही क्यों दोष देना। किसी भी राजनीतिक दल के नेता ने यहां कदम रखना उचित नहीं समझा। तब समझ में आया कि महिला विश्वविद्यालय की छात्रा से गैंग रेप के बाद गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा ने क्यों बयान दिया। इनेलो के प्रधान महासचिव अजय चैटाला क्यों खानपुर कलां पहुंच गये। मामला छात्राओं का था। उनके परिजनों के रूप में वोट बैंक है। लेकिन अनाथ आश्रमों में रहने वालों के पीछे कौन है ? जनवादी महिला समिति ने अगर मोर्चा नहीं खोला होता तो रोहतक का मामला ठंडा भी पड़ गया होता। समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमती सांगवान ने अपना घरको ग्रांट देने में शामिल होने वाले अधिकारियों की भी न्यायिक जांच की मांग की है ताकि असलियत सामने आ सके।

बच्चियों, युवतियों, या फिर वृद्ध महिलाओं के साथ बलात्कार की वजह क्या है? हरियाणा समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष सुमित्रा चैहान का मानना है कि प्रदेश में असंतुलित लिंगानुपात की वजह से कई समस्याएं जन्म ले रही हैं। लड़कियों की कम संख्या के कारण बलात्कार और आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। प्रदेश के किसी न किसी हिस्से में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए लगातार कार्यक्रम चलते रहते हैं। सरकारी स्तर पर और सामाजिक स्तर पर भी। लेकिन कुछ खास फायदा होता नहीं दिखाई देता। 2001 के मुकाबले 2011 में बच्चियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

दरअसल, हरियाणा का लिंगानुपात देश के लिंगानुपात से काफी पीछे है। 2011 की जनगणना के हिसाब से प्रदेश में 1000 लड़कों के पीछे सिर्फ 877 लड़कियां हैं। हालांकि हरियाणा में लिंगानुपात 2001 के मुकाबले बेहतर हुआ है। 2001 में 1000 लड़कों पर सिर्फ 861 लड़कियां थीं, जिनकी संख्या बढ़कर 877 हो गई है। लेकिन बच्चों के लिंगानुपात में भारी गिरावट दर्ज की गई है। 2001 में 1000 बच्चों (0-6 साल तक) में 964 बच्चियां थीं, जबकि 2011 में इनकी संख्या 830 तक पहुंच गई है।

यानि अभी भले ही 1000 लड़कों पर 877 लड़कियां हों, लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में स्थिति भयावह हो सकती है। क्योंकि 0 से 6 साल तक के बच्चों के मामले में लड़कियों की संख्या चिंताजनक है। पिछले 30 वर्षों में देश भर में कन्या भ्रूण हत्या की वजह से बच्चियों की संख्या में भारी गिरावट आई है।

एक तरफ प्रदेशा अपनी बेटियों पर गर्व करता नहीं अघाता। हरियाणा की बेटियां सेना के तीनों अंगों में जा रही हैं। पुलिस सेवा में भर्ती हो रही हैं। देश और राज्य की सेवा-सुरक्षा कर रही हैं। खेल की दुनिया में भी इन्होंने अपना दबदबा बनाया है। राजनीति में भी रसूख रखती हैं। राज्य में तो मंत्री बनीं ही हैं, केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी हरियाणा की बेटियों की दखलअंदाजी है। अंतरिक्ष और एवरेस्ट पर तिरंगा फहरानी वाली बेटियां भी हरियाणा की ही हैं। इस साल आई ए एस की परीक्षा में टाॅप करनी वाली लड़की भी यमुनानगर की है। यानी किसी भी क्षेत्र में यहां की बेटियां पीछे नहीं हैं। फिर भी यहां कन्या भ्रूण हत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। पिता का सिर उंचा करने वाली बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है। वंश चलाने के लिए एक बेटे की चाहत में पता नहीं कितने लोग इतना बड़ा पाप करते हैं। लेकिन सोचते नहीं कि अगर बेटियों से ये भेदभाव किया गया तो बहू कैसे आएगी ? वंश कैसे चलेगा ? इस दिशा में कौन सोचेगा? क्या अकेला बेटा ही वंश चला पाएगा ? सुमित्रा महाजन कह चुकी हैं कि असंतुलित लिंगानुपात की वजह से ही बलात्कार और आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे में आंकड़ों के बरक्स उठने वाले सवालों का जवाब भी आंकड़े ही देंगे। जब स्थिति पहले जैसी हो जाएगी। बेटियों के साथ भेदभाव छोड़ कर उन्हें पैदा होने दिया जाएगा। वहीं बलात्कार से बचने के लिए लड़कियों को भी खुद को मजबूत करना होगा। आत्मरक्षा के उपाय सीखने होंगे। प्रशिक्षण लेना होगा। ताकि कभी विकट स्थिति आने पर खुद ही उससे निपट सकें। उन्हें किसी का मोहताज नहीं होना पड़े।



ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है.

मंगलवार, 22 मई 2012

फिर सड़ने के लिए तैयार है गेहूं

                  ‘मेहनत की कमाई है, बेकार कैसे जाएगी।’ ये बात आपने भी जरूर सुनी होगी। लेकिन हरियाणा पहुंचते ही ये बात गलत साबित होने लगती है। गेहूं की फसल के लिए प्रदेश के किसान जमकर मेहनत करते हैं। कड़ी धूप में पसीना बहाते हैं। और जब चमकदार कनक लेकर अनाज मंडियों में पहुंचते हैं तो उनकी मेहनत पर पानी फिरने लगता है। अनाज मंडियों की अव्यवस्था उनका गला घोंटने को तैयार दिखाई देती है। कभी समय पर खरीद शुरू नहीं होती। अगर खरीद हो जाए तो भुगतान नहीं होता। खरीद होने के बाद अनाज उठान की भी बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से बाद में अनाज लेकर मंडी पहुंचने वाले किसानों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। कई बार तो पूरा हफ्ता इंतजार में बीत जाता है। किसानों के लिए समस्या तब और विकट हो जाती है, जब मौसम उनके प्रतिकूल हो जाता है। प्रदेश की कई अनाज मंडियों में किसानों के बैठने के लिए शेड तक नहीं होती, ऐसे में अनाज रखने की व्यवस्था कैसी होगी ये बताने की जरूरत नहीं है। अगर दो चार बूंदे भी पड़ गयी तो किसानों के लिए लागत निकालना भी मुशि्कल हो जाता है।
    किसानों को अनाज उपजाने से लेकर मंडियों तक पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं होती। असल दिक्कत मंडी पहुंचने के बाद ही शुरू होती है। जब उन्हें वहां खरीद के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इस बार भी सरकार ने 1 अप्रैल से अनाज खरीद की घोषणा की थी। किसान अपनी उपज लेकर मंडियों में पहुंचने लगे थे लेकिन 7 दिनों तक सरकारी खरीद एजेंसियों का रवैया लापरवाही वाला ही रहा। हालांकि छह सरकारी एजेंसियां गेहूं खरीद रही हैं। इनमें खाद्य और आपूर्ति विभाग, हैफेड, कॅान्फेड, हरियाणा वेयर हाउसिंग काॅरपोरेशन, हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज काॅरपोरेशन और फूड काॅरपोरेशन अॅाफ इंडिया शामिल हैं। इसके बावजूद किसान बार बार गेहूं नहीं खरीदे जाने की बात कहते हैं। समस्या सिर्फ यही नहीं है। जिन किसानों के गेहूं खरीद लिये गये हैं, उन्हें भुगतान नहीं हुआ है। और जो किसान बाद में मंडी पहुंच रहे हैं, उनके सामने खरीद की ही समस्या है। क्योंकि पहले खरीदे गये अनाज का समय पर उठान नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह से मंडियों में अनाज रखने की जगह ही नहीं बची है। प्रदेश में तमाम तरह के गोदामों को मिला कर कुल 90 लाख टन अनाज रखने की क्षमता है। लेकिन यहां के गोदामों में पहले से ही 50 लाख टन अनाज पड़ा है। ऐसे में इस बार खरीद होने के बाद अनाज कहां रखा जाएगा ये सबसे अहम सवाल है। देश के प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य हरियाणा में इस बार गेहूं की बंपर पैदावार हुई है। इस बार यहां 70 लाख टन गेहूं पैदा होने की उम्मीद है। 

                        पिछले दो तीन वर्षौं से हम हरियाणा में ही कई जगहों पर अनाज की बर्बादी की कहानी देख और सुन चुके हैं। बारिश और बाढ़ की वजह से रानियां, पानीपत और करनाल सहित कई जगहों पर गेहूं सड़ गया था। इसके बावजूद सरकार नहीं चेती। खरीद के बाद भंडारण की व्यवस्था करने की बजाए जैसे तैसे खरीद बढ़ाने पर जोर दे दिया गया। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि, ‘‘सरकारी खरीद के मामले में हरियाणा का सिस्टम सबसे बेहतरीन सिस्टम है। 27 अप्रैल तक करीब 60 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। जगह बनते ही किसान का एक एक दाना खरीद लिया जाएगा। किसान का हित सरकार के लिए सर्वोपरि है।’’ सरकार और उसके मंत्री अपनी ही पीठ थपथपाने में लगे हैं। दौरे पर दौरे हो रहे हैं। सहकारिता मंत्री सतपाल सांगवान तोशाम अनाज मंडी जा रहे हैं तो उन्हें ” शिकायतें सुनने को मिल रही हैं। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री करनाल की अनाज मंडी में लिफ्टिंग में तेजी लाने का आदेश दे रहे हैं। कई और मंत्री दौरे पर दौरा कर रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफर है।

                       मंडियों में खुले में पड़े अनाज के उठान के लिए कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं दिखाई पड़ता। कुछ जगहों पर अनाज रखने के लिए शेड तो हैं लेकिन इनकी संख्या काफी कम है। जिसकी वजह से खरीद का ज्यादातर हिस्सा खुले में ही पड़ा है। बारिश से बचाने के लिए गेहूं के बोरों पर तिरपाल डाल दी जाती है। लेकिन हर जगह ऐसा कर पाना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा है। सरकार को किसानों की चिंता है। एक एक दाना खरीदे जाने की बात बार-बार कहती है। लेकिन खरीदे गये गेहूं की फिक्र जरा भी नहीं दिखाई देती। और इंडियन ने”ानल लोकदल इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती। पार्टी के प्रधान महासचिव अजय चैटाला कहते हैं, ‘‘मंडियों में अव्यवस्था फैली है। जिसकी वजह से किसानों का गेहूं भीग रहा है। इस (हुड्डा) सरकार को किसानों के हितों का जरा भी ख्याल नहीं है। सरकार किसानों को बर्बाद करने पर तुली हुई है।’’
हालांकि खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं- ‘‘हरियाणा सरकार का मार्केटिंग सिस्टम सबसे बढि़या है इसलिए यूपी का किसान भी अपना गेहूं यहां लाना चाहता है। लेकिन हमारा कर्तव्य है कि यहां के किसान के गेहूं को पहले खरीदें।’’ दरअसल उत्तर प्रदेश के किसान दाम में अंतर की वजह से अपना गेहूं यहां लाते हैं। यूपी में जहां गेहूं का समर्थन मूल्य 1140 रुपये क्विंटल है, वहीं हरियाणा में 1285 रुपये। और जब हरियाणा की सीमा कई जगहों पर ( सोनीपत, पानीपत, करनाल) यूपी से लगती है तो किसान इसका फायदा क्यों नहीं उठाना चाहेगा। हालांकि हरियाणा सरकार ने फिलहाल यूपी से आने वाले गेहूं की खरीद पर रोक लगा रखी है।

अगर सरकार की मानें तो अब तक 60 लाख टन अनाज खरीदा जा चुका है। लेकिन स्टोरेज की व्यवस्था नहीं होने से खुले आसमान के नीचे पड़ा है। मानों बारिश का ही इंतजार कर रहा हो। एक तरफ तो देश की आधी से ज्यादा आबादी को दो जून की रोटी नसीब नहीं है। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा में स्टोरेज की कमी की वजह से लाखों टन गेहूं सड़ने के लिए तैयार है।



नोट -
देश के कुल गेहूं उत्पादन में हरियाणा का योगदान 13;3 प्रतिशत है। जबकि गेहूं उत्पादन भूमि का सिर्फ 8;9 फीसदी हिस्सा ही प्रदेश के पास है।


ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है