कई बार कुछ बातें सिर्फ़ कहने के लिए कही जाती है,जिनका कोई मतलब नहीं होता। लेकिन कई बार कुछ बातों का नही होते हुए भी मतलब होता है।
गुरुवार, 6 मई 2010
एकता में बल है।
एकता में बल है। बचपन से सुनते आ रहे हैं। मास्टर साब मुट्ठी बनाकर बताते भी थे कि उंगलियों से कुछ नहीं होता, लेकिन जब मुक्का बनता है तो ताकत आती है। तब केवल थप्पड़ और मुक्के का फर्क समझ में आता था, कभी पिटने में कभी पीटने में। जब कॉलेज पहुंचे तब छात्रों की एकता देखता रहता था। कक्षा में ब्रााहृण और सवर्ण छात्रों की एकता थी आगे बैठने के लिए, खेल के मैदान में बाबू साहब कहे जाने वाले छात्रों की एकता देखता था पिछड़ों और दलितों को बाहर रखने के लिए। हॉस्टल में इन सबकी एकता देखने को मिलती थी जब कोई लड़की हॉस्टल के बाहर की सड़क से गुजरती थी। ऐसे ही नहीं कहा गया कि एकता में शक्ति है। वाकई है। हाल ही में कुछ दिनों के लिए महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट दिखाई दिया। हकीकत में था नहीं, सिर्फ दिखाई दिया। दिखना भी जरूरी है, सरकार पर दबाव बनता है। महंगाई पर एकजुट लोग उस तरह से एकजुट नहीं दिखे हमारे नेता जैसे खुद की सैलरी बढ़ाए जाने के प्रस्ताव पर होते हैं। आखिर एकता में बल है, मानना पड़ता है। सरकार गिराने के लिए विपक्ष एकजुट होता दिखाई देता है, लेकिन सरकार बचाने के लिए या कहिए येन केन प्रकारेण खुद को बचाने के लिए धुर विरोधी नेता भी एकजुट दिखने लगते हैं। नहीं तो आप ही बताएं कि उत्तर प्रदेश में धुर विरोधी रहने वाले मायावती और मुलायम सिंह कट मोशन पर सरकार का साथ कैसे देते?एकता का ताजातरीन उदाहरण खेलसंघों के शीर्ष पदों पर बैठे क्षत्रपों का है। कांग्रेस सांसद सुरेश कलमाड़ी, बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय कुमार मल्होत्रा, एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल जिनका नाम आईपीएल विवाद में भी कथित रूप से आ चुका है, एकसाथ दिखाई दिए। खेल मंत्रालय के फैसले के बाद अपनी मलाईदार सीट बचाए रखने के लिए इन लोगों ने प्रधानमंत्री से सामूहिक मुलाकात की। और बाहर निकलकर बताया कि प्रधानमंत्री ने मौजूदा कार्यकाल तक बने रहने का आ·ाासन दिया है। लेकिन यकीन मानिए, प्रधानमंत्री के सामने ये लोग गिड़गिड़ाए भी होंगे। घड़ियाली आंसू बहाए होंगे। बहुत मेहनत और पसीना बहाने के रोने रोए होंगे। ताकि इन्हें कुछ मोहलत मिल जाए और ये जितना बटोर सकते हैं बटोर लें। इन नेताओं की एकजुटता पर गौर करने की जरूरत है। ये कभी महंगाई के मुद्दे पर इस तरह एकजुट नहीं होते। ये कभी गरीबों की मदद के लिए एकजुट नहीं होते। बाढ़-सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदा के समय एकजुट नहीं होते। भूखमरी और पानी की समस्या के खिलाफ एकजुट क्यों होते? सवाल चाहे जितने हों, लेकिन बात सिर्फ इतनी ही है कि जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक चाहे समस्याओं का अंबार लगा हो, हमारे नेता एकजुट नहीं होते। ये तभी एकजुट होते हैं जब इनको सीधा फायदा हो रहा हो, या इनके फायदे को नुकसान पहुंच रहा हो। जैसे सांसदों की वेतन वृद्धि के पक्ष में ये सभी एकजुट होते हैं। सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं के लिए एकजुट होते हैं। दिल्ली में नये बने खेल गांव में बन रहे करोड़ों के फ्लैटों के आवंटन के लिए भी दिल्ली के सभी सत्तर विधायक एकजुट हैं। और अब खेल महासंघों पर मंत्रालय के डंडे के डर से सभी एकजुट हैं।
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