सोमवार, 30 अगस्त 2010

खाऊओं का देश

सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार (खाने कमाने) के एक से एक तरीके हैं। एक बीडीओ ने एक तालाब बनवाया, कागज पर। इसमें उसने मजदूरी और औजारों का खर्च दिखाकर दो लाख रूपये बना लिए। उसका तबादला हो गया। उसकी जगह आए नये बीडीओ ने जब लोकेशन का मुआयना किया, तो पाया कि वहां तालाब है ही नहीं, होना भी नहीं था, वो तो बना ही कागज पर था। ऐसे में नये बीडीओ के माथे पर शिकन आ गई। वो परेशान हो गया कि अगर इसकी जांच हो गई तो वो फंस सकता है। ऐसे में उसने इसका उपाय भी खोज लिया। उसने पुराने बीडीओ के तालाब को भरवाने का आदेश दे दिया। वजह बताई कि एक ही रूका हुआ पानी गंदा हो गया है। अत: इसकी जरूरत नहीं है। उसने तालाब को भरवा दिया, कागज पर। पैसे भी बन गये, इज्जत भी बच गई। ऐसा ही हाल लोहारीनाग पाला परियोजना के साथ भी हुआ है। अब तक 670 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं, अब जबकि परियोजना बंद कर दी गई है, इसे समेटने में भी 800 करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है। बनाओ तो खाओ, हटाओ तो खाओ। खाने के लिए कुछ भी करेगा, क्योंकि ये खाऊओं का देश है। जिसे जहां मौका मिले, खाए जाओ, खाए जाओ... जनता देखने के सिवा कुछ नहीं कर सकती... क्योंकि सोचने की शक्ति कुंद हो चुकी है।

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

नामची से गंगटोक

पिछली पोस्ट में चार धाम का जिक्र किया था। वहां बनी शिव की प्रतिमा की तस्वीर आपके लिए है। नामची शहर से चार धाम के बीच में भारत के नामचीन फुटबॉलर बाइचुंग भूटिया के नाम पर एक स्टेडियम भी है। यहां के लोग कहते हैं कि बाइचुंग कभी इस ग्राउंड में प्रैक्टिस किया करते थे, और प्रैक्टिस करते करते वो पेज थ्री के स्टार बन गये। अब वे यहां नहीं आते। हालांकि अपने जैसे ही कुछ नौजवानों की आंखों में सपने जरूर भर गये हैं। कुछ युवा खिलाड़ी यहां फुटबॉल से उलझते दिखाई दे जाते हैं। इसके अलावा बाइचुंग के नाम पर बने स्टेडियम का इस्तेमाल दूसरे आयोजनों के लिए होता है, ठीक वैसे ही जैसे ‘चक दे इंडिया’ फिल्म में महिला हॉकी के ग्राउंड का इस्तेमाल रामलीला कमिटी वाले करते हैं। बहरहाल, चर्चा नामची की हो रही थी। चारों ओर खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा है नामची। अगर दो कमरों वाले फ्लैट में बालकनी हो और वो बाहर यानी पहाड़ की तरफ खुलती हो तो फिर कहना ही क्या? आप बालकनी में बैठकर प्रकृति को निहारते हुए बड़े ही आराम से दिन गुजार सकते हैं। कहीं जाने या किसी और मनोरंजन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। नामची गंगटोक से कोई तीन घंटे की दूरी पर है। यहां से महिंद्रा की ‘सवारी’ गाड़ी चलती है। इसमें सोलह लोगों की सीट होती है, लेकिन नामची से गंगटोक जाने वाले अपनी सीटें पहले ही रिजर्व करा लेते हैं, क्योंकि पहली और दूसरी कतार की सीटें ही आरामदायक होती हैं। पीछे की सीटों पर बैठकर तीन घंटों की पहाड़ी घुमावदार दूरी तय करने का कष्ट सफर करने वाला ही महसूस कर सकता है। अगर सही सीट मिल गई तो समझिए सफर का मजा है, नहीं तो सजा ही कहिए। चारों ओर दूर-दूर तक आंखों को लुभाने वाली खूबसूरत वादियां, दूर कहीं किसी पहाड़ी से झर-झर कर गिरती पानी की सफेद पतली सी लकीर आपका ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेगी, और जब तक आपकी गाड़ी अगले मोड़ पर मुड़ नहीं जाए, आप उसे ही देखते रहेंगे। पूरे रास्ते तीस्ता नदी आपके साथ-साथ बहती रहेगी। कल-कल, कल-कल का मधुर संगीत आपको सुनाई देता रहेगा। थोड़ा आगे बढ़ते ही रंगित नदी भी दिखाई देगी, जो आगे जाकर तीस्ता से मिल जाती है। टेढे़-मेढे़ रास्तों पर तीन घंटे के सफर के बाद पहाड़ की उंची चोटी पर बिखरा-बिखरा सा गंगटोक उगने लगता है। शहर की झलक मिलने के साथ ही मन उमगने लगता है। उत्साह भरने लगता है।

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

एक चिट्ठी कलमाड़ी ‘जी’ के नाम

आदरणीय सुरेश कलमाड़ी जी
नमस्कार
मैं एक अदना सा पत्रकार हूं। इतनी तनख्वाह मिलती है कि घर चल जाता है, लेकिन कॉमनवेल्थ की तैयारियों पर हो रहे खर्चे को लेकर लालच आ रहा है। सोचता हूं कि बहती नदिया में हाथ धुल जाता तो थोड़ा भला हो जाता। और इसके लिए आपको तहे दिल से भी शुक्रिया अदा करता, लेकिन आप तो इतने बड़े और रसूखदार हैं कि पहुंच ही आसान नहीं है। आपका फोन नंबर तो है, लेकिन अपने मोबाइल से फोन करने में डर लगता है। कल को बात उलटी ना पड़ जाए। वैसे जितने रसूखदार लोग आपके साथ खेलों की तैयारियों का खेल कर रहे हैं, उससे लगता नहीं है कि कल को कुछ उलटा होगा, और अगर हुआ भी तो आप तो संभाल ही लेंगे। आपके पास समय कम होगा, इसलिए सीधे मुद्दे पर आता हूं। दरअसल जितने किराए पर खेलों के लिए सामान जुटाया जा रहा है, उसने मुझे आकर्षित किया है। मेरे पास भी एक फ्रिज है, 165 लीटर का, जितने में आपने सौ लीटर का किराए पर लिया है, उतने पर ही मैं भी दे दूंगा। एक कंप्यूटर भी है, खेलों के दौरान डाटा एंट्री के काम आ सकता है, चाहें तो वो भी किराए पर ले सकते हैं, जो भी बनेगा दे दीजिएगा। हालांकि मैं एक लाख रूपये किराए की उम्मीद कर रहा हूं। एक टीवी भी है, जिसमें एयरटेल का कनेक्शन लगा है, आप चाहें तो खेल गांव में लग सकता है, ब्रांडेड है, यही कोई बाइस हजार का किराया दे दीजिएगा। इससे ज्यादा नहीं लूंगा। चाय बनाने के लिए गैस चूल्हा और सिलेंडर भी चाहिए तो वो भी तीस हजार तक में दे दूंगा। इसके अलावा अगर खिलाड़ियों के रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए सस्ते कपड़े चाहिए तो वो भी मेरे काम आ सकते हैं, सिर्फ अठाइस हजार रूपये के किराए पर दे सकता हूं। दो कमरे और एक हॉल वाला घर है, खिलाड़ियों को ठहराने के काम आ सकता है, इसके लिए मैंने चार लाख रूपये सोचे हैं, अगर जंचे तो बात कीजिएगा। जो कमीशन होगा, वो दिया जाएगा। इसमें शर्म की कोई बात नहीं है, भारत सरकार भी तो कमीशन देती है खरीद फरोख्त करने में तो फिर किराए पर लेने में कमीशन क्यों नहीं बनेगा। क्योंकि इसी से तो घर चलना है। सोचिएगा, बताईगा। मेरा नंबर है 09811343224। मैं सीरियस हूं। जंचे तो फोन करें।
राजन कुमार अग्रवाल