गुरुवार, 17 मार्च 2011

बिहार, विकास और बीपीएल परिवार

बिहार में विकास की बयार बह रही है। विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता कहते नहीं अघाते थे कि बिहार विकास कर रहा है। खूब विकास कर रहाहै। 2008-09 में 11.44 प्रतिशत की दर से सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि के साथ ही बिहार गुजरात के बाद देश में दूसरे नंबर का राज्य हो गया है। खूब प्रचार कियागया, राजग ने विधानसभा चुनाव भी जीत लिया, भारी बहुमत से। विपक्षी दलों ने मुंह की खाई। जदयू और बीजेपी के साथ-साथ जनता ने भी कहा कि सुशासन बाबूके राज में सड़कें तो मिली हीं, सुरक्षा का आश्वासन भी मिला। राज्य में जिस रफ्तार से सड़कों का निर्माण हुआ, उससे जनता को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी होसकता था, लेकिन नीतीश कुमार ने कर दिखाया। बिहार विकास कर रहा है, सबने देखा, जो समझाया गया समझा और मान लिया। सूबे के विकास की वजह सेमुख्यमंत्री महोदय को सम्मानित भी किया गया। सूबे में विकास की गाथा गाते-गाते नहीं थकने वाले नेताओं ने भी जहां मौका पाया, अपना और अपने मुखिया कीतारीफ में कसीदे पढ़े। लेकिन कहते हैं ना, कि विकास तो हो लेकिन विनाश की शर्त पर ना हो, क्योंकि जब भी विनाश की शर्त पर विकास होगा, मामला बिगड़जाएगा।

एक तरफ गरीबी बढ़े और दूसरी तरफ विकास का सूचकांक भी उपर चढ़ता रहे, तो फिर मान लीजिए कि दाल में कुछ तो काला है! ऐसा ही हुआ हैबिहार में भी। ये कोई छुपी हुई या मनगढ़ंत बात नहीं है, बल्कि बिहार सरकार के ही एक मंत्री का विधानसभा में दिया गया बयान है। ग्रामीण विकास मंत्री नीतीशमिश्र ने सदन में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा कि बिहार में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या बढ़ रही है। यानी जिस राजग सरकार मेंविकास हुआ है, उसी सरकार ने राज्य के कुछ और लाख लोगों को गरीबी रेखा से नीचे पहुंचा दिया है। 2007 सात में जहां बीपीएल परिवारों की संख्या 1 करोड़, 13लाख, 40 हजार, 990 थी, वहीं दो साल बाद, 2009 में ये संख्या 1 करोड़, 26 लाख, 61 हजार, 632 हो गयी। मतलब सिर्फ दो साल में करीब तेरह लाख बीस हजार परिवार गरीबी रेखा से नीचे पहुंच गये। यानी हर दिन अठारह सौ से ज्यादा परिवार और गरीब हो गये। ये वे दो साल थे जब सूबे की जीडीपी छलांग लगा रही थी, जबबिहार विकास के मामले में देश का दूसरा राज्य बन गया था।

हालांकि सरकार का बचाव करते हुए उन्होंने जो वजह बताई, वो ये थी कि राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने के लिएबीपीएल परिवार टूटे हैं, ताकि योजनाओं का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जा सके। बहरहाल, चर्चाएं हो रही हैं। कहीं दबी जुबान तो कहीं खुलेआम। विकास के साथसाथ बीपीएल परिवारों की संख्या में इजाफा होना सवाल तो खड़े करता ही है। विकास का द्योतक बनी सड़कें हाथी के दांत तो नहीं ?

शनिवार, 12 मार्च 2011

जापान में भूकंप-सुनामी

जापान में भुकंप-सुनामी
सिर्फ त्रासदी ही नहीं,
यह पुकार है प्रकृति की, उन स्वार्थी स्वर्ण पुतलों के प्रति
जो अपनी धन लिप्सा की खातिर
तबाह कर रहे हैं प्रकृति को।
अरे, लालची लोगों,
प्रकृति से डरो,
कुछ तो खौफ खाओ
कल जो कुछ वहां हुआ,
तुम्हारे यहां भी हो सकता है!
और प्रकृति ने क्या हाल किया है?
देखो -
गौर से देखो।
मत लड़ो प्रकृति से,
अगर कुछ कर सकते हो,
तो मदद करो उन पीड़ितों की,
जो अपना सर्वस्व गंवा चुके हैं।
मैं को छोड़ो,
हम कहो-
फिर देखना,
जीने का अलग ही आनन्द होगा,
हर सुबह दिनकर नये उत्साह से उदित होगा,
और तुम्हें भी सुकुन मिलेगा
सुकुन मिलेगा
सुकुन मिलेगा।