बुधवार, 23 जनवरी 2013

सिस्टम का क्या करोगे ?



सिस्टम बहुत जरूरी है. कोई भी जगह हो, अगर सिस्टम नहीं होगा तो व्यवस्था ढह जाएगी. आप किसी भी मशीन को ले लीजिए. छोटी हो या बड़ी. अगर एक नट भी इधर से उधर हुआ नहीं कि मशीन चलने में दिक्कत आने लगेगी. जोर से आवाज होगी, मशीन कांपेगी और फिर काम करना बंद कर देगी. कुछ ऐसा ही हमारे समाज के साथ भी है. संपूर्णता में देंखे तो ये भी मशीन की तरह ही काम करता है. लेकिन हमारा समाज ऐसी मशीन में तब्दील हो चुका है जो चलती कम है, बंद ज्यादा रहती है. दरअसल, इसके सिस्टम में जंग लग चुका है. जो इसे धीरे-धीरे और खोखला बनाता जा रहा है. बानगी देखिए. मेरे पड़ोसी हैं जियो चेरियन. मूलतः केरल के रहने वाले हैं. पिछले दिनों उनका पर्स खो गया. वे शिकायत दर्ज करवाने बुराड़ी (दिल्ली) थाने पहुंचे. लेकिन थाने में मौजूद 8-10 पुलिसकर्मी बातचीत में मशरूफ थे. उनसे कहा गया कि शिकायत दर्ज करने वाला कर्मी अभी आने वाला है. 2 घंटे बीत गये. जियो शिकायत दर्ज करवाने के लिए डटे रहे. लेकिन किसी पुलिसकर्मी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया. उनका 6 साल का बेटा गाड़ी में पापा का इंतजार करता रहा. जब वो रोने लगा तो पिता जियो उसे लेकर घर लौट आये. ये महज एक वाकया है कि मशीन में खराबी कहां से शुरू होती है. सोचिए, जब दिल्ली पुलिस पर्स गुम होने की शिकायत दर्ज करने में इतनी आनाकानी करती है तो बड़ी वारदातों पर (जो मीडिया में नहीं आते) पर उसकी कैसी प्रतिक्रिया होती होगी?


सिर्फ पुलिस विभाग का ही सिस्टम बिगड़ा हो, ऐसा भी नहीं है. नेता जी भी हाथ धो रहे हैं. सर्दी में हुई बारिश के निशान आपको आज भी बाहरी दिल्ली के बुराड़ी इलाके में मिल जाएंगे. यहां के विधायक जी के आवास के बाहर के जोहड़ में पानी जमा हो गया. गांव का पानी लगातार आ ही रहा था. बदबू उठने लगी तो विधायक जी ने पंप सेट लगवा दिया. जोहड़ खाली करवाया जा रहा है और ये बदबूदार पानी बुराड़ी से स्वरूप नगर जाने वाली सड़क पर निकाला जा रहा है. विधायक जी के घर के बाहर जो बदबू उठती थी उसने अब पूरी सड़क पर कब्जा कर लिया है. उस रास्ते से गुजरने वाले हलकान हो रहे हैं. शिकायतों की सुनवाई कहीं नहीं हो रही है, आखिर विधायक जी का मामला है. ये भी एक सिस्टम है जो स्वार्थी हो चुका है.


दिल्ली से निकलिये. बिहार चलते हैं. सुपौल. जहां 2008 में जबरदस्त बाढ़ आयी थी. शिक्षा विभाग ने हैंडीकैप्ड बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए रिक्तियां निकाली थीं. पद से कम ही लोंगों ने आवेदन किया था. लेकिन इन लोगों को भी उस दिन बुलावा मिला जिस दिन भर्ती की आखिरी तारिख थी. आखिर ऐसा क्यों है \ सिस्टम ऐसा क्यों हो गया है\ मशीन में जंग लग जाए तो खराब हो जाती है... सिस्टम का क्या करोगे जिसमें भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है? 

बुधवार, 9 जनवरी 2013

खतरे में हरियाणा सरकार?



क्या बच पाएगी हरियाणा की कांग्रेस सरकार?  2009 में कांग्रेस की दोबारा सरकार बनवाने के लिए समर्थन देने वाले हजकां के 5 विधायकों के मामले में 13 जनवरी से पहले विधानसभा अध्यक्ष को फैसला सुनाना है. तब हजकां ने 6 सीटें जीती थी, जिनमें से 5 सरकार में शामिल हो गये. इन सभी को मंत्री या सीपीएस बना दिया गया. लेकिन अब जान सांसत में फंसी है. इनमें से 3 एक बार कांग्रेस की गोद में बैठे और 2 अलग-अलग. यानी पार्टी टूटने की बात भी सिरे नहीं चढ़ती. सारा दारोमदार विधानसभाध्यक्ष कुलदीप शर्मा पर है. उनके फैसले पर पूरे प्रदेश की निगाहें लगी हुई है. 13 जनवरी की तारीख ऐतिहासिक होने जा रही है. अगर कुलदीप शर्मा हजकां से टूट कर आये पांचों विधायकों के समर्थन को असंवैधानिक ठहराते हैं तब भी और उनके हक में फैसला सुनाते हैं तब भी. समर्थन को असंवैधानिक ठहराने पर प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर असंवैधानिक सरकार चलाने का आरोप अपने आप लग जाएगा और समर्थन को सही बताने पर दल-बदल कानून की धज्जियां उड़ना तय है.

अगर फैसला इन विधायकों के खिलाफ होता है तो सरकार के जाने का खतरा भी है. अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि इतने समय तक कांडा के जेल में रहने के पीछे भी मुख्यमंत्री हुड्डा का ही हाथ है. सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के निर्दलीय विधायक हुड्डा सरकार से खुश नहीं हैं. गोपाल कांडा जेल में हैं, लेकिन उनके जन्मदिन पर सिरसा में जुटे 3 निर्दलीय विधायकों ने अपनी उपस्थिति से संकेत दे दिया है कि वे गोपाल कांडा के साथ हैं. ऐसे में हुड्डा चाहते हैं कि कांडा अपने समर्थक विधायकों सहित सरकार को समर्थन की चिट्ठी सौंप दें. अगर ऐसा नहीं होता और कांग्रेस को समर्थन देने वाले हजकां के पांचों विधायकों का समर्थन असंवैधानिक ठहरा दिया जाता है तो सिर्फ 40 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के पास 3 और निर्दलीय विधायकों का ही समर्थन रह जाएगा. जबकि 90 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बचाने के लिए 46 सदस्यों का समर्थन जरूरी है.

ऐसे में इंतजार कीजिए विधानसभाध्यक्ष कुलदीप शर्मा के फैसले का. अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं. आखिर बलि के बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी?