शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

सरकार पर भारी...



लो जी, राहुल जी का मुंह खोलना था कि पूरी सरकार साष्टांग दंडवत करने के लिए जमीन पर लोट गई। उन्होंने दागी नेताओं की नैया पार लगाने वाले अध्यादेश को बकवास क्या बताया, उन सभी नेताओं के सीने पर सांप लोट गया जो इसकी तारीफ करते नहीं अघाते थे। कुलांचे भरते थे। दूसरों को कोई कुछ समझ ही नहीं रहा था। वो तो भला हो भारतीय जनता पार्टी का, जिसने अध्यादेश पर सहमति जताने के बाद उतनी ही तेजी से कन्नी मारी जैसे अचानक तेज हवा चलने से पतंग मारती है। कन्नी मारी। सीधा राष्ट्रपति भवन। पार्टी अध्यक्ष से लेकर पुछल्ले तक, सभी जोश में थे। दादा से मिले। लौटे। बयानबाजी की। गेंद उनके पाले में। कांग्रेस किंकर्तव्यविमूढ़। गेंद को जाती देख रही थी। लेकिन वो कांग्रेस ही क्या जो राजनीति को अपने हिसाब से न चलाए। बन गई रणनीति। सज गई दुकान। राहुल जी ने मोर्चा संभाला। सीधे प्रेस क्लब। पूरे देश का मीडिया जुटता है यहां। कोई दिक्कत नहीं। राहुल के नाम पर कुछ और आ गये। रुके नहीं राहुल। आये। बोले। चले गये। बवाल पीछे छोड़ गये। बकवास अध्यादेश। फाड़ देना चाहिए। देश में बकवास अध्यादेश पर बवाल हो गया। अखबारों में पहले पन्ने पर खबर छापने की तैयारी हो रही थी। हर समाचार चैनल पर बहसबाजी हो रही थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा से मिल रहे थे। बकवास अध्यादेश पर बवाल सुना तो आवाज हलक में ही रह गई। वैसे भी, वे यहां तो बोलते नहीं हैं, लेकिन पहली बार हुआ कि बाहर भी बोलने में मुश्किल हो रही थी। लेकिन यहां कांग्रेसी नेता बेखौफ बोल रहे थे। राहुल की हां में हां मिला रहे थे। ना मिलाते तो करते क्या ? कांग्रेस पार्टी और सरकार में पद पाना और बात है। पद को बचाए रखना और बात। चापलूसी भी कोई चीज होती है ना! अगर वो नहीं आती तो राजनीति (!) कैसे करते ? रातोंरात राहुल हीरो हो गये। जनता का दिल जीत लिया। प्रधानमंत्री ने भी राहुल की बात को जनता की बात मान कर माथे से लगाया। याद आई लोकपाल के लिए अन्ना की लड़ाई की। तब तो लोग भी थे। नहीं सुनना था, नहीं सुनी गई। लेकिन राहुल के पीछे कौन लोग थे भाई ? जनता को कौन समझाए ? ये राजनीति की रणनीति है भैया। जो दिखता है, वो होता नहीं है और जो हो जाता है, उसका पता भी नहीं चलता। फिर राहुल को नेता भी तो बनाना है। अब तक तो सभी उन्हें बच्चा ही मानते थे। लेकिन उन्होंने बता दिया है कि गंभीरता से लेना सीख लो। कलावती को भूल गये तो क्या हुआ ? नियामगिरी की लड़ाई दिल्ली में नहीं लड़ सके तो क्या हुआ ? कुछ वादे करने के लिए भी किये जाते हैं। अब वे भी राजनीति सीख गये हैं। जी। अब राहुल सरकार से बड़े हो गये हैं। पार्टी ने उपाध्यक्ष बना कर पहले ही संकेत दे दिया था। लेकिन वे सरकार से बड़े हो जाएंगे, ये किसी ने नहीं सोचा था। विपक्ष के पाले से गेंद छीनकर अपनी ही सरकार को हिट विकेट कर दिया। सरकार बैकफुट पर। मुगालते में मत रहियेगा। अब बारी विपक्षी दलों की है। जिनने खुद भी कई दागी पाल रखे हैं। नंबर उनका भी आना है। बीजेपी के कई सांसद हैं, जिनके केस बीसियों साल से चल रहे हैं। समाजवाद का मुखौटा लगाए मुलायम सीधे तौर पर भले ही बच गये, लेकिन उनके भी कई चेले-चपाटी खतरे में हैं। सरकार की लंगड़ी कुर्सी को भले मायावती ने भी थाम रखा है, लेकिन नंबर उनके सांसदों का भी आना है। लालू यादव और राशिद मसूद साहब का हश्र आप देख चुके हैं। आजम खान हैं कि नेताओं को हो रही सजा पर भी दुख जता रहे हैं। दरअसल, ये हताशा है। निराशा है। आज कांग्रेस और उसकी गोद में बैठे लालू गये हैं। कल को औरों की भी बारी आ सकती है। लिस्ट कितनी भी लंबी हो सकती है। टू जी के तार चुराने का मामला हो, कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए भ्रष्टाचार का या कोयला खदानों से निकली कालिख का, जो अभी तक सही चेहरे पर नहीं लग पाई है। सरकार से उपर पहुंच चुके राहुल गांधी ने रास्ता तैयार करवा दिया है। बलि के बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी ?



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