गुरुवार, 19 जुलाई 2012

मीडिया से डरे मुख्यमंत्री


      इन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा डरे हुए हैं। डर है जनता का। डर है आगामी विधानसभा चुनाव का। डर है मीडिया का, साथ ही अपनी ही पार्टी के विधायकों का भी। हालांकि प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी दो साल से भी ज्यादा का समय बाकी है, लेकिन माननीय मुख्यमंत्री के पसीने छूटने लगे हैं। 

        राजधानी चंडीगढ़ में 7 जुलाई को प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस कप्तानों और विभागीय सचिवों की बैठक को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। ये बैठक करीब सात घंटे चली और हुड्डा पूरे समय तक बैठक में मौजूद रहे। मुख्यमंत्री के लिए ये बैठक कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने करनाल में पहले से निर्धारित कार्यक्रम भी रद्द कर दिया। ऐसे में इस मैराथन बैठक के क्या मायने हैं, इसे लेकर कयास लगने शुरू हो गये हैं। खुद कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों को ही इस बैठक की जानकारी नहीं थी। बैठक की खबर को गुप्त रखा गया था। किसी को कानोंकान खबर नहीं। दरअसल, हरियाणा के मुख्यमंत्री इन दिनों किसी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। ना तो अपने मंत्रियों पर, ना ही अपने विधायकों पर। ऐसे में प्रदेश के अधिकारी ही उनके आंख, नाक और कान बने हुए हैं। कांग्रेस के ही एक विधायक ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर ये बात बताई है। इनका तो यहां तक कहना है कि मुख्यमंत्री भले ही ‘नंबर वन हरियाणा’ का डंका पीट रहे हों, पिटवां रहे हों, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। आम आदमी बेहद परेशान है। लेकिन मुख्यमंत्री ये बात सुनने को तैयार नहीं हैं। उन्हें तो वही दिखाई और सुनाई देता है जो प्रदेश के चुनिंदा दो बड़े अधिकारी उनसे कहते हैं। मामला गंभीर हो उठता है, जब सत्तारूढ़ दल का ही कोई विधायक अपने मुखिया पर इस तरह के आरोप लगाता है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार निर्दलीयों और हजकां छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के भरोसे चल रही है। ऐसे में ये आरोप सच भी लगने लगते हैं। खास तौर से उन विधायकों को लेकर जो हजकां छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। जो नेता अपनी पार्टी के नहीं हुए वे कांग्रेस के क्या होंगे? और शायद मुख्यमंत्री हुड्डा को इसी बात का डर भी है।

     वहीं दूसरी तरफ विपक्षी विधायक मुख्यमंत्री को ‘घोषणाओं का मुख्यमंत्री’ बताते हैं। इन दिनों मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जहां भी जाते हैं, घोषणाओं की झड़ी लगा देते हैं। खास तौर पर कांग्रेसी विधायकों और सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों के हलकों में। शिक्षा संस्थान, अस्पताल, नहर, पीने के पानी और तमाम दूसरी योजनाओं के लिए वे सरकार का खजाना खोलने की बात कहते हैं। ये और बात है कि इन घोषणाओं पर अमल की तारीख तय नहीं होती और घोषणाएं वर्षों तक फाइलों में दबी रहती हैं। सोनीपत से बीजेपी विधायक कविता जैन का कहना है कि, ‘ सड़क, बिजली और पानी की दिक्कत झेल रहा समाज का हर तबका सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रहा है। इनमें व्यापारी, महिलाएं और किसान भी शामिल हैं। हुड्डा सरकार डरी हुई है। और इसी वजह से जनता को दबाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन घड़ा भर चुका है। जब भी चुनाव होंगे, जनता जवाब देगी।’ वे कहती हैं-‘जो सरकार आम आदमी को आधारभूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रही है, उसे बने रहने का कोई हक नहीं है। प्रदेश में कानून व्यवस्था बदहाल होने की वजह से कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है। महिलाएं डरी हुई हैं। खानपुर कलां की घटना आप देख चुके हैं।’ वहीं प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल इनेलो ने भी मुख्यमंत्री को डरा हुआ बताया। पटौदी से इनेलो विधायक गंगाराम ने कहा कि, ‘भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सबसे ज्यादा डर इंडियन नेशनल लोकदल का है। और इसी डर की वजह से वे जो भी काम करते हैं उसमें गड़बड़ हो जाती है। जनता तो नाराज है ही। इनेलो सिर्फ और सिर्फ जनता के हित में विकास चाहती है।’ 

       मुख्यमंत्री को मीडिया का भी डर है। खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्र बताते हैं कि जिन टीवी चैनलों पर हरियाणा को नंबर वन बताने वाले विज्ञापन चलते हैं, उन्हीं चैनलों पर चलने वाली खबरों ने मुख्यमंत्री को परेशान कर दिया है। जनसमस्याओं को सामने लानी वाली रिपोर्टों से मुख्यमंत्री आहत हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह की खबरें गढ़ीं जा रही हैं। प्रदेश के न्यूज चैनल जो दिखा रहे हैं, वो सच नहीं है। इस तरह की खबरें प्रायोजित हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री अपने दो बहुत करीबी अधिकारियों पर ही भरोसा करते हैं। वे जो कहते हैं, हुड्डा साहब उसे ही सच मानते हैं। वे प्रदेश की जैसी हालत बताते हैं, मुख्यमंत्री उससे इतर कुछ सुनना ही नहीं चाहते। निर्दलीय और हजका से आए विधायकों के साथ साथ उन्हें अपने विधायकों पर भी भरोसा नहीं रहा। ऐसे में मीडिया में दिखाई जाने वाली आम जनता की समस्याएं उन्हें प्रायोजित लगती हैं। उन्होंने डर का डंडा दिखा भी दिया है। अब हरियाणा में चलने वाले कई चैनलों की भाषा बदल गई है, उनका कंटेंट बदल गया है। 

       टीवी चैनलों का कंटेट भले बदल गया हो, लेकिन अब लगता है कि उन पर दिखाई गई जनसमस्याओं पर सीएम साहब ने कुछ ध्यान दिया है। शायद इसी का असर है कि मुख्यमंत्री को जुलाई के पहले हफ्ते में प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस कप्तानों और विभागीय सचिवों की बैठक बुलानी पड़ी। इस तरह की बैठक करीब एक साल बाद हुई है। इस मैराथन बैठक में मुख्यमंत्री ने सभी जिला उपायुक्तों को आपदा प्रबंधन पर जोर देने के निर्देष दिये हैं। बाढ़ से बचाव के लिए पुख्ता प्रबंध करने के आदेश दिए हैं। दरअसल, सीएम साहब गर्मी और बिजली की किल्लत से जूझ रही जनता की गुहार देख चुके हैं। पिछले साल बाढ़ से हुई बर्बादी भी उनके जेहन में होगी ही। ऐसे में आने वाले दिनों में वे किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते। 6 जुलाई को प्रदेष के कुछ इलाकों में हुई बारिश ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोल दी है। ऐसे में मानसून और उपरी इलाकों में बारिश का खौफ भी हरियाणा सरकार को डरा रहा है। सभी जिला उपायुक्तों से कहा गया है कि इलाके का दौरा करें, ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें और विकास कार्यों पर जोर दें। बैठक में शामिल सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश में ढीली हो रही कानून व्यवस्था को लेकर जिला प्रशासन की भी खिंचाई की। इतना ही नहीं, तहसील स्तर पर भी पटवारी को हफ्ते में दो दिन बैठने, सभी विभागों में सिटिजन चार्टर के मुताबिक काम करने को सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।

      बैठक में राज्य के सभी बोरवेल को लेकर सर्वे करवाकर इन्हें बंद करवाने के निर्देश दिये गये। गौरतलब है कि पिछले तीन हफ्तों में सिर्फ गुड़गांव में ही तीन बच्चे बोरवेल और खुले सीवर में गिर चुके हैं। जिनमें से दो को अपनी जान गंवानी पड़ी। सरकार और प्रशासन के खिलाफ लोगों की भावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री (डरे हुए) अब जरा भी लापरवाही बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं। सात घंटे तक चली प्रदेश के मुखिया और आलाधिकारियों की इस बैठक में सिर्फ निर्देश ही नहीं दिये गये, बल्कि निर्देशों का पालन करने और पत्रकारों के जरिए ही जनता को जानकारी देने की बात भी कही गई है। 

    एक मैराथन बैठक में इतनी हिदायतें ये बताने के लिए काफी हैं कि मुख्यमंत्री परेशान चल रहे हैं। विधायकों की वे सुनते नहीं हैं। अपना डर मीडिया पर थोप कर मुख्यमंत्री ने मीडिया से मिलने वाले फीडबैक को भी बंद कर दिया है। हुड्डा साहब चाहते तो मीडिया में दिखाई जाने वाली समस्याओं का समाधान करवा कर पार्टी को राहत दिलवा सकते थे। लेकिन लगता है कि उनके जो तथाकथित सिपाहसालार हैं, वे ऐसा नहीं चाहते। दरअसल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पास उपलब्धि के नाम पर गिनाने के लिए अपनी खेल नीति और साफ सुथरे नेशनल हाइवे के अलावा और कुछ है नहीं। क्योंकि उनके पॉवर प्लांट्स की पोल खुल चुकी है और विकास कार्य रोहतक लोकसभा सीट तक ही सिमटे हुए हैं। आप जानते हैं कि काठ की हांडी बार बार चढ़ नहीं सकती। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री की पेशानी पर बल पड़ना लाजिमी है। 

ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है.

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