शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

मैं महंगाई हूं

इन दिनों मेरी चर्चा कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। चारों ओर, खेत खलिहान से लेकर घरों के दलान तक। शहर की गलियों से लेकर खेल के मैदान तक। हर तरफ मैं ही मैं हूं, दूसरा कोई नहीं। जब मैं अपने शबाब पर आती हूं तो देश की ज्यादातर आबादी को नानी याद आ जाती है। वे हाय हाय करते दिखाई देते हैं। फर्क नहीं पड़ता तो सिर्फ उनको जिनके पास अकूत दौलत है या फिर उनको जो सरकारी खजाने से अपना परिवार चलाते हैं।

जी हां, आपने बिलकुल ठीक समझा। मैं महंगाई हूं। इन दिनों पूरे देश में मेरा ही जलवा है। हर ओर मेरी ही चर्चा है। मैं सर्वत्र व्याप्त हूं। मैं कहीं भी पहुंच सकती हूं। और किसी पर भी काबिज हो सकती हूं। पिछले दिनों सब्जी के राजा कहे जाने वाले आलू को गुमान हो गया था कि उससे सस्ती कोई सब्जी नहीं, तो बस मैं उस पर काबिज हो गई। अब हाल देख लो। .... ऐसी ही कुछ सनक सिरफिरी दाल पर भी सवार हो गई थी, जिसे देखो वही कहता था- बस, दाल रोटी चल रही है। मैं ऐसा कब तक देख सकती थी। अगर देखती रहती तो मेरा वजूद ही खत्म हो जाता, बस मैं दाल पर सवार हो गई, अब बताओ कौन कहता है-‘दाल रोटी चल रही है।’ मैंने बच्चों को भी नहीं बख्शा। उनके दूध पर भी अपनी गिद्ध नजरें गड़ा दीं। अब गरीब माएं बच्चों को पानी मिलाकर दूध पिलाती हैं। मेरी खुद की आंखों में पानी भर आया। मुझे द्रोणाचार्य याद आ गए। किस तरह उन्होंने अश्वत्थामा को दूध की जगह आटे का घोल पिलाया था चीनी मिलाकर। लेकिन मैंने तो चीनी की मिठास में भी जहर घोल दिया है। आखिर, मुझे अपना वजूद बचाए रखना है। सरकारें तो अपना वजूद बचाने के लिए नरसंहार तक करवा देती हैं, न जाने कितनी मांओं की गोद सूनी करवा देती हैं। कितनी सुहागिनों को विधवा करवा देती हैं। इनके मुकाबले तो मैंने कुछ भी नहीं किया।

मैं कोने में गुमसुम पड़ी थी, चुपचाप। सब अपनी अपनी कर रहे थे। दिल्ली की सरकार आंखें मूंदे काॅमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में लगी थी, उसे भी मुझसे मतलब नहीं थी। सरकार में शामिल नेताओं, विपक्षी नेताओं को मेरे आने जाने से विशेष फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मुझे अपना वजूद बचाना था। इसलिए मैं हर दिन किसी न किसी जरूरी वस्तु पर सवार होती गई, यहां तक कि कम कमाने वाले लोगों के जीवन की गाड़ी करीब करीब पंचर हो गई, लेकिन ‘गरीबों की सरकार’ फिर भी नहीं चेती। बल्कि उसने और चीजों पर सवार करवा दिया। पहले बिजली के तारों पर सवारी करवाई, और बिजली के दाम बढ़ा दिए, फिर डीटीसी की नई नवेली बसों में सवारी करवा कर अपनी जेब गर्म की, और अब दिल्ली की पहचान बन चुकी मेट्रो में भी मुझे सवार कर दिया। लोग मेरी हाय-हाय कर रहे हैं। लेकिन कर कुछ भी नहीं रहे।

अकेले मैंने देश की सरकार गिरवा दी थी। वो भी सिर्फ प्याज पर सवार होकर। लेकिन पता नहीं, इस बार इन सरकारों को क्या हो गया है? सभी जानबूझ कर मुझे जरूरी चीजों पर सवार करा रहे हैं। विपक्षी नेता मेरे बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं, लेकिन उन्हें भी पता है, जब मेरे चढ़ते जाने के पीछे सरकार ही है तो कोई उसका और मेरा भी क्या बिगाड़ लेगा। अब किसी के पास रीढ़ नहीं बची है, सभी बिना रीढ़ वाले जीव की तरह रेंग रहे हैं। और जनता पिस रही है।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

पैरोल पर रिहाई चाहिए

मुझे भी पैरोल पर रिहाई चाहिए। उसे भी पैरोल पर रिहाई चाहिए। उसकी बाजू वाले कारागार में जो कैदी बंद है उसे भी पैरोल पर रिहाई चाहिए। सिर्फ तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को ही नहीं, देश भर की जेलों में बंद कैदियों में से ज्यादातर कैदियों के घर पर कोई ना कोई बीमार है। इसलिए इन सबको पैरोल पर रिहाई चाहिए। आखिर परिवार के बुजुर्गों की सेवा करना उनका कर्त्तव्य है और अब जेल में बंद होने के बाद हमें, उन्हें, सबको अपने कर्त्तव्य की याद आई है। इसलिए मुझे और उन सबको पैरोल पर रिहाई मिलनी चाहिए। जेल में रहने से मेरे और उनके और उनके भी पड़ोसियों के सामाजिक संबंध खत्म होते जा रहे हैं, सबको उन्हें बनाए रखना है। और जेल में रहकर ऐसा नहीं हो सकता इसलिए पैरोल पर बाहर आकर सभी अपने संबंधों को पुनर्जीवित करना चाहते हैं, ताकि भविष्य में इन संबंधों के सहारे ही कुछ ‘विशेष कार्य निष्पादित’ किया जा सके। मैंने, उसने और उसके भी पड़ोस वाले ने पैरोल पर रिहाई के लिए आवेदन किया हुआ है। लेकिन उस पर अब तक सुनवाई नहीं हुई है। सुना है मर्डर केस में आजीवन कैद काट रहे किसी ‘बड़े आदमी’ को पैरोल मिलने पर मीडिया का बाजार गर्म हुआ पड़ा है। मां की बीमारी की वजह से उसे पैरोल पर रिहा किया गया था। रिहाई के बाद वो दिल्ली के एक पब में मौज मस्ती करता हुआ पाया गया। वो ‘बड़ा आदमी’ था इसलिए मीडिया ने हाथोंहाथ लिया, सबने खूब चलाया। या कहें खूब बेचा। मामला संगीन है। इसलिए फिलहाल मेरे, उसके और उसके भी पड़ोस वाले कैदी की पैरोल पर रिहाई के आवेदन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। भला हो दिल्ली हाईकोर्ट का जिसने गरीबों के पैरोल पर रिहाई के आवेदन पर जल्द सुनवाई नहीं करने के लिए दिल्ली सरकार के प्रति नाराजगी जताई है, जिससे उम्मीद बनी हुई है कि मुझे, उसे और उसके पड़ोस वाले को पैरोल पर रिहाई मिल जाएगी। और मैंने, उसने या उसके पड़ोस वाले ने तो मर्डर भी नहीं किया है, कहीं इसलिए तो पैरोल मिलने में देर नहीं हो रही। अगर ऐसी ही बात है तो हमें एक बार तो जरूर ही पैरोल मिलनी चाहिए, जिससे हम सभी बाहर जाकर किसी का खून करें और फिर आजीवन कारावास की सजा पाएं, और उसके बाद जब जेल आएं और पैरोल पर रिहाई के लिए आवेदन करें तो दिल्ली की मुख्यमंत्री हम सब पर भी मेहरबान हों, और उपराज्यपाल के पास हम सबकी रिहाई की संस्तुति भेजें, ताकि हमें भी एक महीने की न सही, पंद्रह दिन की ही रिहाई मिल सके, जिससे हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें। सामाजिक संबंध बना सकें। और अगर थोड़ा समय बच जाए तो थोड़ी मौज मस्ती भी कर सकें। ये lekh २८/११/०९ के हिन्दुस्तान में छपा है।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

नक्सली, नक्सली और नक्सली

देश भर में नक्सलियों की चर्चा गर्म है
हर तरफ एक ही शोर है
नक्सली, नक्सली और नक्सली।
कभी,
पुलिस वाले को किडनेप कर लिया
तो
कभी
राजधानी जाने वाली एक्सप्रेस के जरिए रखी अपनी बात
लेकिन नहीं पूरी हुई मुराद,
वे अब भी नक्सली ही हैं।
झारखंड के एक नक्सली से पूछा गया-
क्यों कर रहे हो ये सब,
क्यों अड़ा रहे हो विकास की राह में रोड़ा
उसने मायूसी से छोटा सा जवाब दिया-
मधु कोड़ा।

बुधवार, 4 नवंबर 2009

फिट रहने का मामला है

आज हमारे समाज का हर युवा अपनी फिटनेस को लेकर पागल है। हर कोई स्लिम ट्रीम दिखना चाहता/चाहती है। सबका बस एक ही ख्वाब है कि खूबसूरत दिखने की होड़ में वो दूसरे से पीछे ना छूट जाए। फिटनेस की फिक्र करने वाला कोई भी टीनेजर ऐसा कुछ नहीं खाना चाहता जिससे उसकी चर्बी बढ़ जाए और वो अपने साथियों के बीच सबसे मोटा और भौंडा दिखाई दे। हालांकि इसके बावजूद फास्ट फूड खाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मेरी एक सहकर्मी ने भी पिछले कुछ दिनों से खाना पीना लगभग छोड़ रखा है, दरअसल उसे दुबला होना है। फरवरी में उसकी शादी है और उसके होने वाले पति ने उससे शादी से पहले स्लीम होने को कहा है। हालांकि उन्होंने शर्त नहीं रखी है और ये राहत की बात है। आप किसी भी शादी या समारोह में चले जाइए, लोग खाने का सिर्फ स्वाद चखते ही दिखाई देंगे। पूछने पर जवाब मिलेगा। डाइटिंग पर हूं। हर दूसरा बंदा आपसे यही कहेगा। ऐसे में मेजबान की मुसीबत बढ़ जाती है। वो खुद से ही पूछता है - क्या खाना अच्छा नहीं बना? या लोग नाराज हैं? लेकिन ऐसा होता नहीं है। दरअसल सलमान की तंदुरूस्त बॉडी के बाद शाहरूख के सिक्स पैक ऐब्स और उसके बाद आमिर के ऐट पैक ऐब्स ने तो जैसे लोगों को पागल ही कर दिया है। करीना के जीरो फीगर ने भी लड़कियों को खूब आकर्षित किया। लड़के ‘खान्स’ जैसे बनना चाहते हैं, तो लड़कियां करीना जैसी काया पाने के फेर में लगी हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में शादियों में मेहमानों की खातिरदारी करने के लिए मेजबान अगर छोटे मोटे जिम की व्यवस्था भी करें तो चैंकिएगा मत। कैलोरी कंशस मेहमानों के लिए खाने की टेबल के पास कुछेक ‘ट्रेड मिल’, ‘क्राॅस ट्रेनर’ या ‘ट्विस्टर’ देखने को मिल सकते है। ताकि वो जितनी कैलोरी खाएं इन मशीनों के जरिए उतना ही बर्न भी कर सकें। और अपनी स्लिमनेस बनाए रख सकें। युवाओं के लिए ‘डंबल’ और ‘पुल अप’ की व्यवस्था भी की जा सकती है, ताकि वो अपनी बाईसेप्श बना सकें। और शादी में बेकार होने वाले समय का सदुपयोग कर सकें।