कई बार कुछ बातें सिर्फ़ कहने के लिए कही जाती है,जिनका कोई मतलब नहीं होता। लेकिन कई बार कुछ बातों का नही होते हुए भी मतलब होता है।
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
कौन बचा रहा है संसद की गरिमा
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
मुन्नी बदनाम हुई...
सोमवार, 4 अक्टूबर 2010
दिल्ली, दुनिया और ग्रामीण संस्कृति
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
हिन्दू ऐसे क्यों होते हैं?

सोमवार, 30 अगस्त 2010
खाऊओं का देश

गुरुवार, 26 अगस्त 2010
नामची से गंगटोक



गुरुवार, 5 अगस्त 2010
एक चिट्ठी कलमाड़ी ‘जी’ के नाम
गुरुवार, 29 जुलाई 2010
चामलिंग का नामची!
बुधवार, 23 जून 2010
क्या हमें भी डरना चाहिए?
गुरुवार, 6 मई 2010
एकता में बल है।
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
पीएम बोलते रहे, सीएम सोते रहे

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010
राहुल का मुंबई आना
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
औरों के भी दिन बहुरैं...
शनिवार, 16 जनवरी 2010
पढ़ना लिखना सीखो, लेकिन किससे ?
गुरुवार, 14 जनवरी 2010
आसमान में जमीन
अब जमीन के भाव आसमान पर पहुंच गए हैं। लोगों के पास खूब पैसा आ रहा है, इसलिए वे जमीन में पैसे लगा रहे हैं। जिससे जमीन और महंगी होती जा रही है। दिल्ली में भी जमीन की दिक्कत है। इसलिए लोगों ने ग्राउंड फ्लोर के उपर वाली मंजिलों के छज्जे बाहर गली में बना दिए हैं। कुछ ने तो पूरा कमरा ही निकाल लिया है। जमीन की किल्लत है, करें क्या? हवा में ही अतिक्रमण कर रहे हैं। जीने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है। तो अतिक्रमण में क्या बुराई है?
इन दिनों जमीन काफी अहम हो गई है। हर कोई ज्यादा से ज्यादा जमीन की जुगत में लगा है। मजूर, किसान, शिक्षक, उद्योगपति, खिलाड़ी, कलाकार हर कोई पूरी कोशिश कर रहा है कि उसे यहां, वहां या जहां भी थोड़ी जमीन मिल जाए। लेकिन कामयाबी किसी किसी को ही मिलती है। जमीन पाने की कोशिश में लगे किसानों के जमीन गंवाने की ही कहानियां सुनाई देती हैं। वहीं बाॅलीवुड कलाकारों के किसान बनने के किस्से भी चर्चेआम रहे। अमिताभ बच्चन, आमिर खान, रानी मुखर्जी और भी कितने नाम हैं। डाॅक्टर, इंजीनियर और वकील सभी जमीन के जुगाड़ में हैं। औरों की तो छोड़िए, अब तो सेना के बड़े अधिकारी भी जमीन के पीछे भागते दिखाई देने लगे हैं। बड़े, बड़े उससे भी बड़े अधिकारी जमीन चाहते हैं। पता नहीं, अपने लिए चाहते हैं या देश के लिए चाहते हैं। चीन एक एक इंच करके भारत की जमीन हड़प रहा है, उसे नहीं रोक रहे हैं। थोड़ा थोड़ा करके वो हमारे ही देश में घुसा चला आ रहा है, लेकिन लोग सिलीगुड़ी की जमीन में ही उलझे हैं। सीमा से बहुत दूर, इसलिए लगता है कि ये लोग जमीन अपने लिए ही चाहते होंगे।
एक मित्र के दादा जी ने बताया कि उन्नीस सौ छियासी में दिल्ली आए थे तो कुतुबमीनार के पास सिर्फ जंगल होता था, गुड़गांव में भी बसावट नहीं थी। मित्र ने छूटते ही कहा - तभी कुछ जमीन खरीद ली होती तो वे भी आज करोड़पति होते। लेकिन उसने अपने दादा जी की गलती से सीख ले ली है। वो समझदारी दिखा रहा है। उसने अभी से ही चांद पर जमीन खरीद ली है, ताकि कल को अगर चांद पर काॅलोनी बने, तो उसके बच्चे पोते उसे न कोसें। उन्हें पृथ्वी जैसा गरीबी भरा जीवन वहां न जीना पड़े। चांद पर ये जमीन खरीदने के लिए उसे अपने परिवार का पेट काटना पड़ा तो क्या हुआ? बच्चों का ट्यूशन छुड़ाना पड़ा तो क्या हुआ? जमीन भी तो बच्चों के लिए खरीदी है ना!