गुरुवार, 26 अगस्त 2010

नामची से गंगटोक

पिछली पोस्ट में चार धाम का जिक्र किया था। वहां बनी शिव की प्रतिमा की तस्वीर आपके लिए है। नामची शहर से चार धाम के बीच में भारत के नामचीन फुटबॉलर बाइचुंग भूटिया के नाम पर एक स्टेडियम भी है। यहां के लोग कहते हैं कि बाइचुंग कभी इस ग्राउंड में प्रैक्टिस किया करते थे, और प्रैक्टिस करते करते वो पेज थ्री के स्टार बन गये। अब वे यहां नहीं आते। हालांकि अपने जैसे ही कुछ नौजवानों की आंखों में सपने जरूर भर गये हैं। कुछ युवा खिलाड़ी यहां फुटबॉल से उलझते दिखाई दे जाते हैं। इसके अलावा बाइचुंग के नाम पर बने स्टेडियम का इस्तेमाल दूसरे आयोजनों के लिए होता है, ठीक वैसे ही जैसे ‘चक दे इंडिया’ फिल्म में महिला हॉकी के ग्राउंड का इस्तेमाल रामलीला कमिटी वाले करते हैं। बहरहाल, चर्चा नामची की हो रही थी। चारों ओर खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा है नामची। अगर दो कमरों वाले फ्लैट में बालकनी हो और वो बाहर यानी पहाड़ की तरफ खुलती हो तो फिर कहना ही क्या? आप बालकनी में बैठकर प्रकृति को निहारते हुए बड़े ही आराम से दिन गुजार सकते हैं। कहीं जाने या किसी और मनोरंजन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। नामची गंगटोक से कोई तीन घंटे की दूरी पर है। यहां से महिंद्रा की ‘सवारी’ गाड़ी चलती है। इसमें सोलह लोगों की सीट होती है, लेकिन नामची से गंगटोक जाने वाले अपनी सीटें पहले ही रिजर्व करा लेते हैं, क्योंकि पहली और दूसरी कतार की सीटें ही आरामदायक होती हैं। पीछे की सीटों पर बैठकर तीन घंटों की पहाड़ी घुमावदार दूरी तय करने का कष्ट सफर करने वाला ही महसूस कर सकता है। अगर सही सीट मिल गई तो समझिए सफर का मजा है, नहीं तो सजा ही कहिए। चारों ओर दूर-दूर तक आंखों को लुभाने वाली खूबसूरत वादियां, दूर कहीं किसी पहाड़ी से झर-झर कर गिरती पानी की सफेद पतली सी लकीर आपका ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेगी, और जब तक आपकी गाड़ी अगले मोड़ पर मुड़ नहीं जाए, आप उसे ही देखते रहेंगे। पूरे रास्ते तीस्ता नदी आपके साथ-साथ बहती रहेगी। कल-कल, कल-कल का मधुर संगीत आपको सुनाई देता रहेगा। थोड़ा आगे बढ़ते ही रंगित नदी भी दिखाई देगी, जो आगे जाकर तीस्ता से मिल जाती है। टेढे़-मेढे़ रास्तों पर तीन घंटे के सफर के बाद पहाड़ की उंची चोटी पर बिखरा-बिखरा सा गंगटोक उगने लगता है। शहर की झलक मिलने के साथ ही मन उमगने लगता है। उत्साह भरने लगता है।

कोई टिप्पणी नहीं: