गुरुवार, 25 जून 2009

कौन मानता है?

मेरे मित्र हैं, असम यूनिवर्सिटी में पढाते हैं, उनसे puch कर उनकी एक कविता डालरहा हूँ, पढिये और सोचिये, क्या हम भी ऐसे ही नहीं हो गए हैं?

आने पर दादी ने कहा

मेरी पोथी तो देना

मैंने कहा-

अभी जा रहा हूँ सुनने

परिवार की अवधारणा पर

एक व्याख्यान,

आने पर दूंगा।

उनका ब्लॉग है...

http://www.bavraaheri.blogspot.com/

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या कहें..जाते हैं उनके ब्लॉग पर भी.

बेनामी ने कहा…

भैय्या अच्छी कविता है....
आपका कविता प्रेम बना रहे....

Bhuwan ने कहा…

आज के समय में ज्यादातर परिवारों में यही हाल है.

भुवन वेणु
लूज़ शंटिंग

Unknown ने कहा…

achhi kavita
badhaai !