रविवार, 28 जून 2009

जब कभी बेचैन होता हूं,

अकेले में गमगीन होता हूँ,

तब मुझे याद आती हो

तुम।

दिन तो फ़िर भी कट जाता है,

रात नही कटने पाती है,

फ़िर तो मेरे सिरहाने में

आ जाती हो

तुम।

यूँ ही तारे गिनते गिनते,

खुली आँख ही सपने बुनते,

सपनो में मुस्काती हो,

मुझे सारी रात जगाती हो,

तुम।

देखता हूँ तुमको हरदम,

हरवक्त मेरे पास हो तुम,

सपना हो या,

सच हो मगर,

एक सुखद एहसास हो

तुम।

3 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

यूँ ही तारे गिनते गिनते,


खुली आँख ही सपने बुनते,


सपनो में मुस्काती हो,


मुझे सारी रात जगाती हो,


तुम।

ati sunder ...bhaawpurn

tripurari kumar sharma ने कहा…

जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें
ये ज़मीन चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

एक हकीक़त को साफगोई से बयां करना कोई आपसे सीखे

आपही का
त्रिपुरारि

tripurari kumar sharma ने कहा…

जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें
ये ज़मीन चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

एक हकीक़त को साफगोई से बयां करना कोई आपसे सीखे

आपही का
त्रिपुरारि