कई महीनों से अपने लिए लिखना लगभग बंद है। फेसबुक पर एक
महीने की छुट्टी लेने से पहले कुछ पंक्तियों में अपनी बात कहता रहा, लेकिन बहुत मुकम्मल तौर पर नहीं। एक महीने
की छुट्टी के बाद आज ही फेसबुक पर वापसी की है। पिछले एक महीने में कुछ लिखा तो वो
थीं-खबरें। न्यूज़ बुलेटिन की खबरें, प्रोमो, पैकेज, एंकर विजुअल।
मन को पता नहीं क्या हो गया है? सिर्फ खबरों में ही जीता है। घर जैसे छूट रहा हो! जीवन में जैसे रस ही नहीं बचा। जितनी भी है, लेकिन रचनात्मकता भी खबरों से बाहर नहीं
निकल पाती।
आज शाम सूर्यास्त देख रहा था। लगा एक दिन हम भी डूब जाएंगे।
हमारे डूबने के बाद उगने की बात नहीं हो सकती। सोचा, आज निराशा को डूबाया जाए। आशा को फिर से उगाया जाए। जितना
हो सके रचनात्मकता की ओर बढ़ा जाए। चाहे 4 लाइन हो या 40। कुछ लिखा जाए। अपने लिए।
आप भी पढ़ सकते हैं। चाहें तो पढ़ें, या ना पढ़ें। आपकी मर्जी।
अब मिलते रहेंगे।
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