सोमवार, 13 जून 2011

इनका क्या कसूर...

चार जून की रात दिल्ली के रामलीला मैदान में दिल्ली पुलिस सत्याग्रह करने वालों पर लाठीचार्ज कर रही थी। आंसू गैस के गोले छोड़ रही थी। बाबा रामदेव के साथ सत्याग्रह कर रही समर्थकों की भीड़ को तितर बितर करने में लगी थी। वहीं दूसरी ओर दिल्ली से करीब तेरह सौ किलोमीटर दूर फारबिसगंज के भजनपुरा गांव में सन्नाटा पसरा था। बिहार के अररिया जिले के इस गांव में पुलिस का खौफ इस कदर छाया हुआ था कि सड़कें सूनसान पड़ी थीं। इस सन्नाटे का दिल्ली में हुए लाठीचार्ज से कोई लेना देना नहीं था। इसके पीछे दूसरी वजह थी। दिल्ली के रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ, वो तो उस घटना के पासंग में भी नहीं ठहरती जो भजनपुरा गांव में हुई थी।
बिहार पुलिस के जवानों ने सड़क पर उतरी भीड़ पर दिनदहाड़े गोलियां बरसाई। नौ या दस महीने के बच्चे सहित पांच लोगों की मौत हो गयी। एक गर्भवती महिला भी पुलिस की बर्बरता की शिकार हुई। नौ साल का सोनू तो अपने रिश्तेदारों के साथ सड़क पर उतर गया था, उसे तो मालूम भी नहीं था कि हो क्या रहा है। इन सबके अलावा बाइस और तेइस साल के दो युवक भी पुलिस की गोली का शिकार बन गये। पुलिसकर्मियों की बर्बरता इतने पर ही नहीं थमी। पुलिसकर्मी इस कदर बौखलाए हुए थे कि जमीन पर बेसुध पड़े युवक को बूट से रौंदा गया। पुलिस वाले ने उसके हाथों पर बार बार छलांग लगाई। युवक इतना बेसुध था कि दर्द होने पर प्रतिक्रिया भी नहीं कर पा रहा था। ये बिहार पुलिस की नृशंसता की हद थी।
गांववालों की मानें तो पुलिस की इस दरिंदगी पीछे राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का हाथ है। दरअसल, भजनपुरा गांव में एक स्टार्च कंपनी बननी है। गांववालों की मानें तो इसे बनाने वाली ऑरो सुंदरम इंटरनेशलन कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर सौरभ अग्रवाल के पिता अशोक अग्रवाल और मोदी करीबी हैं। अशोक अग्रवाल बीजेपी के नेता भी हैं, सो उन्हें फायदा पहुंचाने के मकसद से मोदी साहब घटना से महज चार दिन पहले उनतीस मई को फारबिसगंज भी गये थे, जहां उन्होंने स्थानीय प्रशासन पर स्टार्च कंपनी लगाने में सहयोग करने के मकसद से भजनपुरा गांव जाने वाली सड़क को बंद करने का दबाव डाला था। जब उपमुख्यमंत्री ही कह रहा हो तो अधिकारी मना भी कैसे कर सकते थे,... उन्होंने मौखिक आदेश का पालन किया और सड़क बंद कर दी।
जिसके बाद लोगों के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। वे सड़क पर उतर आए, और रास्ता बंद करने के लिए प्रशासन ने जो कुछ किया था, उसे उखाड़ फेंका। जिसके बाद बिहार पुलिस ने अपनी बंदूकों का मुंह खोल दिया, जिसने भीड़ में ना तो किसी का नाम देखा, ना उम्र और ना ही लिंग भेद किया। कुछ ही मिनटों में भीड़ तितर बितर हो गयी और पुलिस के खाते में जुड़ गयी पांच लाशें।
दिल्ली पुलिस ने सरकार के खिलाफ सत्याग्रह करने वालों पर लाठियां बरसाई, तो बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया, लेकिन अब जबकि खुद बिहार बीजेपी के बड़े नेता आरोपों के घेरे में हैं, राज्य पुलिस पर सवालिया निशान लग रहा है, तब कोई कुछ नहीं कह रहा। भजनुपरा गांव के लोग ना तो किसी काले धन को वापस लाने की मांग कर रहे थे और ना ही भ्रष्टाचार मिटाने की। उनकी तो बस यही मांग थी कि उनके गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली सड़क बंद ना की जाए। लेकिन प्रशासन पर ऊपर से दबाव था। उनके पास कोई विकल्प नहीं था, सो उन्होंने रास्ता बंद कर दिया, ये सोचे बगैर कि गांव वाले कैसे आना जाना करेंगे।
इस बात का खुलासा तब हुआ, जब स्थानीय चैनलों ने मामले को दिखाना शुरू किया। इसके बाद तो राज्य सरकार और पुलिस के खिलाफ कमजोर विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया। कांग्रेस भी शामिल हुई। लेकिन ये सिर्फ शोशेबाजी है और कुछ नहीं। जिस प्रकार दिल्ली में हुए लाठीचार्ज को बीजेपी ने हाथोंहाथ लिया था, उसी तरह बिहार में दूसरे दलों की तरह कांग्रेस भी कोशिश कर रही है, लेकिन आधार कमजोर है, सो कुछ कर नहीं पा रही।
बहरहाल, चीन जाने से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं, और इसकी रिपोर्ट का इंतजार है। बिहार में सुशासन का नारा देने वाली सरकार के आंकड़ें बताते हैं कि दो हजार दस तक करीब सैंतालिस हजार से ज्यादा अपराधियों को सजा मिली है। सरकार कहती है कि अब लोग अपराधियों से नहीं डरते, बल्कि अपराधी कानून से डरते हैं। लेकिन फारबिसगंज के भजनपुरा में हुई घटनाएं एक बार फिर वर्दी वालों को गुंडा साबित करती हैं, जिनके पीछे खाकी भी उतनी ही मुस्तैदी से जमी हुई है।

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