शुक्रवार, 29 मई 2009

2. पत्रकार परांठें वाला ?

पिछली बार हमने बात की थी, पत्रकारों के नए कॅरियर की। अगर आपको याद न हो तो मैं दिला देता हूं। पिछले लेख हमने एक पराठे वाले पत्रकार भाई साहब का जिक्र किया था जो पिछले तीन साल से सिर्फ पराठे की दुकान खोलने की बात कहते थे, लेकिन कभी पहल नहीं करते थे, जब ये चर्चा आॅफिस में आम हो गई, और आॅफिस के एचआर को भी इसकी खबर लगी तो उन्होंने भी इस आइडिए को हाथोंहाथ लिया। हालांकि वे पराठे वाले भाई साहब अपनी आदत से मजबूर सेलरी मांगते मांगते ही उन्हें अपना पराठे वाला आइडिया सुना बैठे। एचआर साहब को अच्छा लगा। और तो और उन्होंने पार्टनरशिप की पेशकश तक कर डाली। परांठें वाले पत्रकार बंधू ने भी लगे हाथों शर्त रख दी। खर्च का साठ फीसदी तुम्हारा और चालीस फीसदी हमारा। और कमाई आधी-आधी। यकीन मानिए, एचआर महोदय को ये पराठे वाला आइडिया इतना अच्छा लगा कि उन्होंने भी बिना कुछ सोचे-समझे हामी भर दी। इसके साथ ही एचआर महोदय ने तो रेहड़ी की भी पेशकश कर दी, लेकिन पराठे वाले पत्रकार भाई को थोड़ा क्लास मेनटेन करना था, इसलिए वो वैन लगाना चाहते थे, सो इस तरह से पराठे वाले पत्रकार महोदय को एक साझीदार भी मिल गया। लेकिन वैन मिलने के बाद ही बात आगे बढ़ेगी। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ दिनों में ये दोनों बंधु मिलकर पत्रकारिता के अलावा भी कुछ और कर सकने की हालत में होंगे। इस तरह से पराठे वाले पत्रकार बंधू का पहले वाला विकल्प फिर से जवां हो गया है। हालांकि ऐसा नहीं हो पाने की स्थिति में उनके पास माता के दरबार वाले इलाके में भद्र पुरूष के होटल में काम मिलना तय तो है ही। हमने पिछली बार कहा था कि उन भद्र सज्जन की वहां टैक्सी भी चलती है और जो पत्रकार बंधु अपना पेशा बदलने की चाहत रखते हैं, वे संपर्क कर सकते हैं। उसका भी असर हुआ है। कुछ पत्रकार बंधुओं ने अपना बायोडाटा भेजा है, और विकल्प की तलाश में जोर-शोर से लगे हैं, लेकिन अभी कई औपचारिकताएं बाकी हैं, ऐसे में जगह अब भी खाली है। तो जो सज्जन पत्रकार विकल्प तलाश रहे हों, वे अब भी संपर्क कर सकते हैं।

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