सिस्टम बहुत
जरूरी है. कोई भी जगह हो, अगर सिस्टम नहीं होगा तो व्यवस्था ढह जाएगी. आप किसी भी
मशीन को ले लीजिए. छोटी हो या बड़ी. अगर एक नट भी इधर से उधर हुआ नहीं कि मशीन चलने
में दिक्कत आने लगेगी. जोर से आवाज होगी, मशीन कांपेगी और फिर काम करना बंद कर
देगी. कुछ ऐसा ही हमारे समाज के साथ भी है. संपूर्णता में देंखे तो ये भी मशीन की
तरह ही काम करता है. लेकिन हमारा समाज ऐसी मशीन में तब्दील हो चुका है जो चलती कम
है, बंद ज्यादा रहती है. दरअसल, इसके सिस्टम में जंग लग चुका है. जो इसे धीरे-धीरे
और खोखला बनाता जा रहा है. बानगी देखिए. मेरे पड़ोसी हैं जियो चेरियन. मूलतः केरल
के रहने वाले हैं. पिछले दिनों उनका पर्स खो गया. वे शिकायत दर्ज करवाने बुराड़ी
(दिल्ली) थाने पहुंचे. लेकिन थाने में मौजूद 8-10 पुलिसकर्मी बातचीत में मशरूफ थे.
उनसे कहा गया कि शिकायत दर्ज करने वाला कर्मी अभी आने वाला है. 2 घंटे बीत गये.
जियो शिकायत दर्ज करवाने के लिए डटे रहे. लेकिन किसी पुलिसकर्मी ने उनकी तरफ ध्यान
नहीं दिया. उनका 6 साल का बेटा गाड़ी में पापा का इंतजार करता रहा. जब वो रोने लगा
तो पिता जियो उसे लेकर घर लौट आये. ये महज एक वाकया है कि मशीन में खराबी कहां से
शुरू होती है. सोचिए, जब दिल्ली पुलिस पर्स गुम होने की शिकायत दर्ज करने में इतनी
आनाकानी करती है तो बड़ी वारदातों पर (जो मीडिया में नहीं आते) पर उसकी कैसी
प्रतिक्रिया होती होगी?
सिर्फ
पुलिस विभाग का ही सिस्टम बिगड़ा हो, ऐसा भी नहीं है. नेता जी भी हाथ धो रहे हैं.
सर्दी में हुई बारिश के निशान आपको आज भी बाहरी दिल्ली के बुराड़ी इलाके में मिल
जाएंगे. यहां के विधायक जी के आवास के बाहर के जोहड़ में पानी जमा हो गया. गांव का
पानी लगातार आ ही रहा था. बदबू उठने लगी तो विधायक जी ने पंप सेट लगवा दिया. जोहड़
खाली करवाया जा रहा है और ये बदबूदार पानी बुराड़ी से स्वरूप नगर जाने वाली सड़क
पर निकाला जा रहा है. विधायक जी के घर के बाहर जो बदबू उठती थी उसने अब पूरी सड़क
पर कब्जा कर लिया है. उस रास्ते से गुजरने वाले हलकान हो रहे हैं. शिकायतों की
सुनवाई कहीं नहीं हो रही है, आखिर विधायक जी का मामला है. ये भी एक सिस्टम है जो
स्वार्थी हो चुका है.
दिल्ली
से निकलिये. बिहार चलते हैं. सुपौल. जहां 2008 में जबरदस्त बाढ़ आयी थी. शिक्षा
विभाग ने हैंडीकैप्ड बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए
रिक्तियां निकाली थीं. पद से कम ही लोंगों ने आवेदन किया था. लेकिन इन लोगों को भी
उस दिन बुलावा मिला जिस दिन भर्ती की आखिरी तारिख थी. आखिर ऐसा क्यों है \
सिस्टम ऐसा क्यों हो गया है\
मशीन में जंग लग जाए तो खराब हो जाती है... सिस्टम का क्या करोगे जिसमें भ्रष्टाचार
की दीमक लग चुकी है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें