शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

सरकार पर भारी...



लो जी, राहुल जी का मुंह खोलना था कि पूरी सरकार साष्टांग दंडवत करने के लिए जमीन पर लोट गई। उन्होंने दागी नेताओं की नैया पार लगाने वाले अध्यादेश को बकवास क्या बताया, उन सभी नेताओं के सीने पर सांप लोट गया जो इसकी तारीफ करते नहीं अघाते थे। कुलांचे भरते थे। दूसरों को कोई कुछ समझ ही नहीं रहा था। वो तो भला हो भारतीय जनता पार्टी का, जिसने अध्यादेश पर सहमति जताने के बाद उतनी ही तेजी से कन्नी मारी जैसे अचानक तेज हवा चलने से पतंग मारती है। कन्नी मारी। सीधा राष्ट्रपति भवन। पार्टी अध्यक्ष से लेकर पुछल्ले तक, सभी जोश में थे। दादा से मिले। लौटे। बयानबाजी की। गेंद उनके पाले में। कांग्रेस किंकर्तव्यविमूढ़। गेंद को जाती देख रही थी। लेकिन वो कांग्रेस ही क्या जो राजनीति को अपने हिसाब से न चलाए। बन गई रणनीति। सज गई दुकान। राहुल जी ने मोर्चा संभाला। सीधे प्रेस क्लब। पूरे देश का मीडिया जुटता है यहां। कोई दिक्कत नहीं। राहुल के नाम पर कुछ और आ गये। रुके नहीं राहुल। आये। बोले। चले गये। बवाल पीछे छोड़ गये। बकवास अध्यादेश। फाड़ देना चाहिए। देश में बकवास अध्यादेश पर बवाल हो गया। अखबारों में पहले पन्ने पर खबर छापने की तैयारी हो रही थी। हर समाचार चैनल पर बहसबाजी हो रही थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा से मिल रहे थे। बकवास अध्यादेश पर बवाल सुना तो आवाज हलक में ही रह गई। वैसे भी, वे यहां तो बोलते नहीं हैं, लेकिन पहली बार हुआ कि बाहर भी बोलने में मुश्किल हो रही थी। लेकिन यहां कांग्रेसी नेता बेखौफ बोल रहे थे। राहुल की हां में हां मिला रहे थे। ना मिलाते तो करते क्या ? कांग्रेस पार्टी और सरकार में पद पाना और बात है। पद को बचाए रखना और बात। चापलूसी भी कोई चीज होती है ना! अगर वो नहीं आती तो राजनीति (!) कैसे करते ? रातोंरात राहुल हीरो हो गये। जनता का दिल जीत लिया। प्रधानमंत्री ने भी राहुल की बात को जनता की बात मान कर माथे से लगाया। याद आई लोकपाल के लिए अन्ना की लड़ाई की। तब तो लोग भी थे। नहीं सुनना था, नहीं सुनी गई। लेकिन राहुल के पीछे कौन लोग थे भाई ? जनता को कौन समझाए ? ये राजनीति की रणनीति है भैया। जो दिखता है, वो होता नहीं है और जो हो जाता है, उसका पता भी नहीं चलता। फिर राहुल को नेता भी तो बनाना है। अब तक तो सभी उन्हें बच्चा ही मानते थे। लेकिन उन्होंने बता दिया है कि गंभीरता से लेना सीख लो। कलावती को भूल गये तो क्या हुआ ? नियामगिरी की लड़ाई दिल्ली में नहीं लड़ सके तो क्या हुआ ? कुछ वादे करने के लिए भी किये जाते हैं। अब वे भी राजनीति सीख गये हैं। जी। अब राहुल सरकार से बड़े हो गये हैं। पार्टी ने उपाध्यक्ष बना कर पहले ही संकेत दे दिया था। लेकिन वे सरकार से बड़े हो जाएंगे, ये किसी ने नहीं सोचा था। विपक्ष के पाले से गेंद छीनकर अपनी ही सरकार को हिट विकेट कर दिया। सरकार बैकफुट पर। मुगालते में मत रहियेगा। अब बारी विपक्षी दलों की है। जिनने खुद भी कई दागी पाल रखे हैं। नंबर उनका भी आना है। बीजेपी के कई सांसद हैं, जिनके केस बीसियों साल से चल रहे हैं। समाजवाद का मुखौटा लगाए मुलायम सीधे तौर पर भले ही बच गये, लेकिन उनके भी कई चेले-चपाटी खतरे में हैं। सरकार की लंगड़ी कुर्सी को भले मायावती ने भी थाम रखा है, लेकिन नंबर उनके सांसदों का भी आना है। लालू यादव और राशिद मसूद साहब का हश्र आप देख चुके हैं। आजम खान हैं कि नेताओं को हो रही सजा पर भी दुख जता रहे हैं। दरअसल, ये हताशा है। निराशा है। आज कांग्रेस और उसकी गोद में बैठे लालू गये हैं। कल को औरों की भी बारी आ सकती है। लिस्ट कितनी भी लंबी हो सकती है। टू जी के तार चुराने का मामला हो, कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए भ्रष्टाचार का या कोयला खदानों से निकली कालिख का, जो अभी तक सही चेहरे पर नहीं लग पाई है। सरकार से उपर पहुंच चुके राहुल गांधी ने रास्ता तैयार करवा दिया है। बलि के बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी ?



Rajan Kumar Agrawal
B-14, Surya Apartment
Kh no. 476, Near Shalimar palace
Swaroop Nagar road
Burari
Delhi 110084

Mob 9811343224
9911343224

बुधवार, 26 जून 2013

घीसू कैसे जाएगा उत्तराखंड?

प्रेमचंद के घीसू और माधव रात सपने में आये थे। कह रहे थे-बबुआ हमलोगन को भी उत्तराखंड दौरे पर जाना है.. कोई रास्ता बताओ। मैंने कहा- घीसू काका, तुम्हारा तो पता नहीं लेकिन माधव तो हो भी आया। घीसू काका चौंके। चौड़ी हो रही आंखों में सवाल था। मानों पूछ रही हों-कब?

मैंने जवाब दिया- माधव ने ही तो गांधी परिवार में जन्म लिया है काका। अब तो उसी का राज है। घीसू काका ईर्ष्या से जल भून रहे थे। वो भी जाना चाहते थे उत्तराखंड। बेटा हो आया था। कंपीटिशन था। ठीक वैसा ही जैसा दोनों बाप-बेटों के बीच गरमा गरम आलू भकोस लेने का था (गर्भवती बहू अंदर प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी, लेकिन उसकी चिंता दोनों को नहीं थी)

पुनश्च: घीसू माधव चाहे जिसे समझिए, लेकिन प्रसव पीड़ा से तड़प रही गर्भवती बहू तो वहां फंसी जनता ही है...

मंगलवार, 25 जून 2013

'आफत के बीच मेले सा रोमांच!'

बौरा गया मीडिया... राहुल जी गुप्तकाशी में हैं... सुना फंस गये हैं... अब वे खबरों में हैं... पीड़ित पीछे छूट गये भैया... सब तरफ राहुल ही राहुल...
हे भगवान, कोई कुछ देता क्यों नहीं... कोई इनको समझाता क्यों नहीं.. गये क्यों थे... लाव लश्कर के साथ... तामझाम से लैस होकर... कोई मेला थोड़े ना लगा था कि बच्चे ने जिद कर ली... 'हमें तो मेला देखने जाना है और मां ने हिदायत देकर भेज दिया। बेटा, ध्यान से जाना। पानी बरस रहा है, पैर ना फिसल जाए!'

अरे! किसी ने मां को ही बता दिया होता- 'बहन जी, मेला नहीं लगा। आफत आई है... घूमने के लिए विदेश में जगह कम है क्या जो उत्तराखंड भेज रही हैं...' लगता है कांग्रेस के रागदरबारियों में ये सलाह देने की भी हिम्मत नहीं बची। और रही सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी। राहुल बाबा फंस गये ... गुप्तकाशी में फंसे राहुल बाबा - ब्रेकिंग न्यूज हो गई है। टीवी को क्या चाहिए... एक अदद चेहरा.. और राहुल से खूबसूरत और कुंवारा चेहरा कौन है? चेहरा चमका रहे हैं टीवी वाले... पीड़ितों की खबर ब्रेक के बाद...

(विषयांतर) सलमान खान ही हैं.. वो भी चर्चा में ही हैं

शुक्रवार, 7 जून 2013

टिप, टिप, टिप...


टिप... हेलमेट पर पहली बूंद पड़ते ही कानों में जोर की आवाज आई... टनाक। टिप, टिप, टिप... टनाक, टनाक, टनाक। हेलमेट बज रहा था। कान झेल रहे थे मोटी मोटी बूंदे। जब वे ऑफिस से निकले थे, तब तक बादलों ने पूरी दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। तेज हवाएं चल रही थीं, सड़कों पर धूल भरी थी, हेलमेट से कुछ दिख नहीं रहा था, शीशा उठाया तो आंखों पर सीधे धूल ने हमला कर दिया। उन्हें कहीं इंटरव्यू में जाना था, लेकिन ऐन मौके पर टाइम नहीं मिला तो घर निकल लिये। कुछ ही दूर चले होंगे कि बारिश। दिल्ली की तेज गर्मी के बाद की बारिश! तेज हवाओं की वजह से तापमान तो गिरा था लेकिन मौसम में गर्मी थी। और ऐसी वैसी नहीं, जोरदार। इतनी कि बादलों को भी पसीना आ गया। पहले तो कम रहा, लेकिन दिल्ली की गर्मी तो दिल्ली की ही है। देखते देखते पसीना चूने लगा। लगातार। अंधाधूंध। कुछ लोग इसे बारिश भी कहते हैं। काली सड़कें साफ होती दिखाईं दीं, लेकिन तेज हवाओं ने हरी भरी दिल्ली का कुछ हिस्सा काली सड़कों पर ला पटका और सड़कें हरी हरी काली सी हो गईं। बाइक वालों ने फ्लाई ओवरों और बस स्टाफ के नीचे जगह बना ली थी... सड़क पर सिर्फ कारें दिखाई दे रही थीं... छोटी कार, बड़ी कार, ऊंची कार, नीची कार, मोटी कार, चपटी कार... तरह तरह की कारें। उन कारों के बीच वे अकेले बाइक पर चले जा रहे थे। इस एहसास में कि चारों तरफ उनका काफिला चल रहा है और काफिले के बीच शहंशाह बाइक पर सवारी कर रहे हों। कंधे भीग चुके थे। बाजुएं तरबतर हो रही थीं, अचानक उन्हें अपने मोबाइल फोन का ख्याल आया और झट से बाइक किनारे करके उन्होंने उसे और अपने पर्स को पॉलिथीन के हवाले किया। शर्ट की बटन खोली और थैली शर्ट के अंदर। अब उनके चेहरे पर इत्मीनान था। बाइक फिर दौड़ रही थी। 60-70-80 की रफ्तार। दिल में डर भी कि बाइक फिसल ना जाये! कई दिनों से बाइक पर ही चिलचिलाती गर्मी में फ्राई होने के बाद उनके पास मौका था बारिश (बादलों के पसीने) में भीगने का।


पारा कभी 45 तो कभी 47। धरती सूखी हुई थी और सूखी हुई धरती को फिर से हरा भरा बनाने के लिए बादल मेहनत कर रहे थे तो पसीना तो आना ही था। पसीने का असर मौसम पर था। खुशगवार। उनके शरीर पर भी था। पहले शर्ट भीगी। फिर बनियान और फिर आत्मा तृप्त होती सी महसूस हुई। बरसों बाद। अकेले। बाइक पर भीगते हुए घर जाने का एहसास ऑफिस की मायूसी और खटपट पर भारी पड़ रहा था... लेकिन कुछ था जो पीछा नहीं छोड़ रहा था। पिछली कुछ बातें, कुछ यादें, कुछ सुनहरे पल उनके दिमाग में आ-जा रही थीं। बहरहाल। प्रगति मैदान से होते हुए वे रिंग रोड पर पहुंच चुके थे। उन्होंने एक बार फिर हेलमेट का शीशा उठाया लेकिन तेज हवाओं ने उन्हें बता दिया कि सही सलामत घर पहुंचना है तो शीशा बंद रखने में ही समझदारी है। राजघाट पर तीन मिनट की लाल बत्ती इंतजार कर रही थी। धीमी होती हुई बाइक जेब्रा क्रॉसिंग पर पहुंच कर रूक गई। इंजन बंद। नजरें आसमान पर। उन्होंने हेलमेट उतारा और चेहरे पर बूंदों को महसूस किया। इतने में उन्हें महसूस हुआ कि जूते पानी से लबालब भर गये हैं। मन ही मन सोचा जैसे पैरों में घड़ा बांध कर चल रहे हों। एक बार जूता उतारने का ख्याल मन में आया लेकिन अगले ही पल झटक दिया। प्रकृति के साथ चलने की छोटी सी कोशिश। पूरा शरीर तरबतर हो चुका था। गीलेपन का ये अनोखा सुखद अहसास था, बरसों बाद। कैसे छोड़ा जा सकता था। वे प्रकृति के साथ भरपूर रोमांस कर रहे थे। दिमाग में जो चल रहा था, उसे बिना हटाए वे बारिश का मजा ले रहे थे। उन्हें कुछ याद आ रहा था, लाँग ड्राइव, भाटी माइंस, सर्पीली चौड़ी सड़कें, दोहरे इंद्रधनुष... वो गलियां... इतने में पीछे से हॉर्न का शोर सुनकर यादों से ध्यान हटा तो देखा कि बत्ती हरी हो चुकी है और उनके पीछे खड़े लोग उन्हें खा जाने वाली नजरों से देख रहे हैं।


बाइक आगे बढ़ी। तेज। यादों का स्पीडोमीटर बाइक के स्पीडोमीटर से रेस करता हुआ। 50-60-70-80... आगे तेज मोड़ था। यादों पर ब्रेक के साथ ही बाइक की रफ्तार भी धीमी हुई, फिसलने का डर जो सता रहा था। इतने में हनुमान मंदिर आ गया। सामने ही निगम बोध श्मशान घाट भी है... एक अनजाना सा डर भी उनके मन में था। लेकिन इन दिनों डर के आगे ही जीत है। वे चले जा रहे थे। बस अड्डे के बाद जैसे बाइक ने सड़क को पहचान लिया हो। रफ्तार की सूई 80 से नीचे आ ही नहीं रही थी। वे कारों से रेस कर रहे थे। हेलमेट के शीशे पर जमा बूंदे रास्ता देखने में बाधक हो रही थीं, लेकिन वे रेस कर रहे थे। वजीराबाद फ्लाई ओवर से ठीक पहले उनके आगे-आगे एक काली कार चली जा रही थी। सड़क पर जमा पानी को चीरती हुई। वे उस पानी में खुद को भिगाना चाहते थे, अचानक लगा जैसे कार की रफ्तार कम हुई और वो बाईं तरफ मुड़ रही है, वे सहम गये थे। रफ्तार रेस वाली थी और संभलने का कोई मौका नहीं था... उन्होंने और रेस दी। जब तक कार उनके पास आती वे कार से आगे थे, लेकिन अब तक उनकी बाइक सड़क पर जमा दो फीट पानी में घुस चुकी थी। रफ्तार कम हो गई थी... अगर बाइक बंद हो जाती तो घर तक धक्का लगाना पड़ता। उन्होंने खट से गीयर बदला और एक नंबर लगा कर पूरा एक्सीलेटर घुमा दिया। घर्र-घर्र करती बाइक पानी से बाहर आ गई थी और उनकी सांस सदमे से। फ्लाई ओवर से उतरते-उतरते बारिश धीमी हो चुकी थी। हवा की ठंडक ने शायद बादलों का पसीना सुखा दिया था। वे चले जा रहे थे। घर अब भी 8 किलोमीटर दूर था। गीले हो चुके कपड़े सूख रहे थे। उनकी आत्मा तृप्त हो चुकी थी। पुरानी पड़ चुकी बाइक पर बारिश में करीब पैंतीस किलोमीटर का सफर रोमांस और रोमांच से भरपूर था। मौज भी थी और खतरा भी। लेकिन अब वे खतरों को जीना चाहते थे.. वे जीना सीख रहे थे...

रविवार, 19 मई 2013

चरित्र को समझिए ना...


तीन क्रिकेटरों पर स्पॉट फिक्सिंग के आरोप हैं. अब जोरों का शोर है कि आईपीएल पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए... वे ज्यादा जोर से कह रहे हैं जो संसद में बैठते हैं लेकिन सीधे आईपीएल से उनका कोई सरोकार नहीं है, लेकिन उन्हीं के भाई बंधू बचाव कर रहे हैं जो किसी न किसी (सीधे या परोक्ष) रूप में इससे जुड़े हैं... अगर 162 आपराधिक प्रवृति वालों से संसद पर दाग नहीं लगता तो सिर्फ तीन पर आरोप लगने से क्रिकेट पर दाग कैसे लग जाता है भैया...
और बताइए कि जब नेताओं की रैलियों में लड़कियों के नाचने से संस्कृति खराब नहीं होती तो आईपीएल में चीयरलीडर्स के नाचने से संस्कृति पर डाका कैसे पड़ जाता है...
जब बड़े बड़े नेता जी (अक्सर रिटायरमेंट के करीब वाले) के अश्लील वीडियो आने से किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगती तो युवा क्रिकेटर अगर किसी के साथ कुछ पल गुजारता है आपत्ति क्यों होने लगती है भाई...

चरित्र को समझिए ना...
एक वीके सिंह थे.. उनकी उम्र को लेकर कितना बवेला मचा था... लेकिन अपने प्रधानमंत्री की उम्र को लेकर कहीं कोई चर्चा नहीं... पिछली बार राज्यसभा का पर्चा दाखिल करते समय वे 74 साल के थे और 6 साल बाद इस बार नॉमिनेशन के वक्त उनकी उम्र 82 साल है। आखिर नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र की सीमा जो नहीं होती... 6 साल के दौरान उम्र 8 साल बढ़ जाये तो किसी को क्यों आपति होनी चाहिए भला... विवाद तो सेना प्रमुख के पद को लेकर था... देश के प्रमुख की उम्र में 2 साल की हेराफेरी तो चलती है यार...

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

महाकुंभ का एक फोटो फीचर

महाकुंभ से आने के बाद पहला फोटो फीचर पेश कर रहा हूं. ऐसे कई हैं. फिलहाल एक ये देखिए.  

महाकुंभ में गीजर, हीटर और इमरसन रॉड के इस्तेमाल पर पाबंदी है. आग लगने का खतरा है. बात तो ठीक है और विद्युत विभाग, उत्तर प्रदेश का ये बोर्ड भी इसकी जानकारी देता है, 



लेकिन मेले में नीचे रेत और ऊपर आसमान. ठंढ ने परेशान कर रखा है. ऐसे में नहाने के लिए गीजर का खुलेआम प्रयोग हो रहा है.



मेले में विद्युत विभाग के कई दफ्तर हैं. वहां शिकायत कक्ष भी हैं, 





लेकिन सरकारी कर्मचारियों का हाल किससे छुपा है? जी हां, यहां भी भाई साहब नदारद हैं....

अब आप भी क्या कीजिएगा. इसी मेले से तो तय होगा कि बीजेपी की ओर से देश के प्रधानमंत्री पद का अगला उम्मीदवार कौन होगा ???

बुधवार, 23 जनवरी 2013

सिस्टम का क्या करोगे ?



सिस्टम बहुत जरूरी है. कोई भी जगह हो, अगर सिस्टम नहीं होगा तो व्यवस्था ढह जाएगी. आप किसी भी मशीन को ले लीजिए. छोटी हो या बड़ी. अगर एक नट भी इधर से उधर हुआ नहीं कि मशीन चलने में दिक्कत आने लगेगी. जोर से आवाज होगी, मशीन कांपेगी और फिर काम करना बंद कर देगी. कुछ ऐसा ही हमारे समाज के साथ भी है. संपूर्णता में देंखे तो ये भी मशीन की तरह ही काम करता है. लेकिन हमारा समाज ऐसी मशीन में तब्दील हो चुका है जो चलती कम है, बंद ज्यादा रहती है. दरअसल, इसके सिस्टम में जंग लग चुका है. जो इसे धीरे-धीरे और खोखला बनाता जा रहा है. बानगी देखिए. मेरे पड़ोसी हैं जियो चेरियन. मूलतः केरल के रहने वाले हैं. पिछले दिनों उनका पर्स खो गया. वे शिकायत दर्ज करवाने बुराड़ी (दिल्ली) थाने पहुंचे. लेकिन थाने में मौजूद 8-10 पुलिसकर्मी बातचीत में मशरूफ थे. उनसे कहा गया कि शिकायत दर्ज करने वाला कर्मी अभी आने वाला है. 2 घंटे बीत गये. जियो शिकायत दर्ज करवाने के लिए डटे रहे. लेकिन किसी पुलिसकर्मी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया. उनका 6 साल का बेटा गाड़ी में पापा का इंतजार करता रहा. जब वो रोने लगा तो पिता जियो उसे लेकर घर लौट आये. ये महज एक वाकया है कि मशीन में खराबी कहां से शुरू होती है. सोचिए, जब दिल्ली पुलिस पर्स गुम होने की शिकायत दर्ज करने में इतनी आनाकानी करती है तो बड़ी वारदातों पर (जो मीडिया में नहीं आते) पर उसकी कैसी प्रतिक्रिया होती होगी?


सिर्फ पुलिस विभाग का ही सिस्टम बिगड़ा हो, ऐसा भी नहीं है. नेता जी भी हाथ धो रहे हैं. सर्दी में हुई बारिश के निशान आपको आज भी बाहरी दिल्ली के बुराड़ी इलाके में मिल जाएंगे. यहां के विधायक जी के आवास के बाहर के जोहड़ में पानी जमा हो गया. गांव का पानी लगातार आ ही रहा था. बदबू उठने लगी तो विधायक जी ने पंप सेट लगवा दिया. जोहड़ खाली करवाया जा रहा है और ये बदबूदार पानी बुराड़ी से स्वरूप नगर जाने वाली सड़क पर निकाला जा रहा है. विधायक जी के घर के बाहर जो बदबू उठती थी उसने अब पूरी सड़क पर कब्जा कर लिया है. उस रास्ते से गुजरने वाले हलकान हो रहे हैं. शिकायतों की सुनवाई कहीं नहीं हो रही है, आखिर विधायक जी का मामला है. ये भी एक सिस्टम है जो स्वार्थी हो चुका है.


दिल्ली से निकलिये. बिहार चलते हैं. सुपौल. जहां 2008 में जबरदस्त बाढ़ आयी थी. शिक्षा विभाग ने हैंडीकैप्ड बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए रिक्तियां निकाली थीं. पद से कम ही लोंगों ने आवेदन किया था. लेकिन इन लोगों को भी उस दिन बुलावा मिला जिस दिन भर्ती की आखिरी तारिख थी. आखिर ऐसा क्यों है \ सिस्टम ऐसा क्यों हो गया है\ मशीन में जंग लग जाए तो खराब हो जाती है... सिस्टम का क्या करोगे जिसमें भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है? 

बुधवार, 9 जनवरी 2013

खतरे में हरियाणा सरकार?



क्या बच पाएगी हरियाणा की कांग्रेस सरकार?  2009 में कांग्रेस की दोबारा सरकार बनवाने के लिए समर्थन देने वाले हजकां के 5 विधायकों के मामले में 13 जनवरी से पहले विधानसभा अध्यक्ष को फैसला सुनाना है. तब हजकां ने 6 सीटें जीती थी, जिनमें से 5 सरकार में शामिल हो गये. इन सभी को मंत्री या सीपीएस बना दिया गया. लेकिन अब जान सांसत में फंसी है. इनमें से 3 एक बार कांग्रेस की गोद में बैठे और 2 अलग-अलग. यानी पार्टी टूटने की बात भी सिरे नहीं चढ़ती. सारा दारोमदार विधानसभाध्यक्ष कुलदीप शर्मा पर है. उनके फैसले पर पूरे प्रदेश की निगाहें लगी हुई है. 13 जनवरी की तारीख ऐतिहासिक होने जा रही है. अगर कुलदीप शर्मा हजकां से टूट कर आये पांचों विधायकों के समर्थन को असंवैधानिक ठहराते हैं तब भी और उनके हक में फैसला सुनाते हैं तब भी. समर्थन को असंवैधानिक ठहराने पर प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर असंवैधानिक सरकार चलाने का आरोप अपने आप लग जाएगा और समर्थन को सही बताने पर दल-बदल कानून की धज्जियां उड़ना तय है.

अगर फैसला इन विधायकों के खिलाफ होता है तो सरकार के जाने का खतरा भी है. अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि इतने समय तक कांडा के जेल में रहने के पीछे भी मुख्यमंत्री हुड्डा का ही हाथ है. सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के निर्दलीय विधायक हुड्डा सरकार से खुश नहीं हैं. गोपाल कांडा जेल में हैं, लेकिन उनके जन्मदिन पर सिरसा में जुटे 3 निर्दलीय विधायकों ने अपनी उपस्थिति से संकेत दे दिया है कि वे गोपाल कांडा के साथ हैं. ऐसे में हुड्डा चाहते हैं कि कांडा अपने समर्थक विधायकों सहित सरकार को समर्थन की चिट्ठी सौंप दें. अगर ऐसा नहीं होता और कांग्रेस को समर्थन देने वाले हजकां के पांचों विधायकों का समर्थन असंवैधानिक ठहरा दिया जाता है तो सिर्फ 40 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के पास 3 और निर्दलीय विधायकों का ही समर्थन रह जाएगा. जबकि 90 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बचाने के लिए 46 सदस्यों का समर्थन जरूरी है.

ऐसे में इंतजार कीजिए विधानसभाध्यक्ष कुलदीप शर्मा के फैसले का. अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं. आखिर बलि के बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी?