शनिवार, 28 जुलाई 2012

मारूति, मजदूर और मौत


            किसी भी उद्योग की सबसे बड़ी पूंजी उसके कर्मचारी होते हैं। कंपनी का सबसे अहम हिस्सा। जिनकी मेहनत के बूते उद्योगपति या कंपनी के मालिक को फायदा होता है। ऐसे में अगर उद्योग या कंपनी से जुड़े कर्मचारियों के हितों की अनदेखी की जाएगी तो क्या परिणाम हो सकते हैं ? कयास मत लगाइए। 16 जुलाई को मानेसर (गुड़गांव) में मारूति सुजूकी के प्लांट में हुई एच आर महाप्रबंधक की हत्या इसका ताजा तरीन उदाहरण है। यहां ये साफ कर दें कि हम किसी तरह की हिंसा को सही नहीं ठहरा रहे और ना ही किसी की हत्या को। लेकिन इस घटना से जो संकेत मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि गरीब मजदूर कर्मचारियों में नौकरी को लेकर कितनी उद्विग्नता है। महंगाई के इस दौर में रोजी रोटी चलाना उनकी प्राथमिकता है। बहरहाल।
दरअसल, ये पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब प्लांट में एक सुपरवाइजर ने श्रमिक जिया लाल को थप्पड़ जड़ दिया। मामला तू-तू, मैं-मैं से शुरू हुआ था जो एचआर महाप्रबंधक की मौत के बाद ही शांत हुआ। प्रबंधन ने आनन-फानन में श्रमिक जिया लाल को निलंबित कर दिया जिसके बाद दूसरे कर्मचारी एकजुट हो गये। और मामले ने तूल पकड़ लिया। आरोप हैं कि सुपरवाइजर ने जातिसूचक गालियां भी दी थीं। 

मारूति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने बताया कि ‘मारूति की स्थापना से लेकर अभी तक कई आंदोलन हुए जिसका खट्टा मीठा अनुभव रहा है। इसमें उत्पादन भी ठप रहा और वर्करों ने हड़ताल भी की। लेकिन जो मानेसर प्लांट में हुआ है ऐसा कभी नहीं हुआ। अच्छे भले चल रहे उद्योग में औद्योगिक विवाद के बिना ही गुंडा तत्वों ने आग लगा दी। अधिकारियों पर जानलेवा हमला किया गया। जिसमें करीब सौ अधिकारी घायल हुए। एच आर के महाप्रबंधक अश्विनी कुमार देव की जान ले ली गई।’ अब भार्गव के इस बयान को समझने की जरूरत है। वे सीधे तौर पर कहीं भी मजदूर कर्मचारियों पर आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि सीधे तौर पर गुंडा तत्वों का हाथ होने की बात कह रहे हैं। सवाल उठता है कि हंगामें में जितने लोग शामिल थे, क्या सभी गुंडे थे? क्या सभी आउट साइडर थे? क्या सैकड़ों की भीड़ में कंपनी के प्रदर्शनकारी कर्मचारी शामिल नहीं थे? जाहिर है, थे। भार्गव का बयान सिर्फ लोगों को बरगलाने के लिए है। 

मारूति सुजूकी के मानेसर प्लांट में जानलेवा हिंसक प्रदर्शन के पीछे क्या कारण थे, ये भी समझने की जरूरत है। इसे कंपनी के सबसे निचले स्तर के कर्मचारी और सबसे ऊपर के कर्मचारी के बीच मेहनताने के फर्क से उपजे अवसाद से भी जोड़कर देखा जा सकता है। इनके रहन-सहन, खान-पान में जमीन-आसमान का अंतर है। मानेसर में करीब 50 हजार मजदूर रहते हैं, जिनकी उम्र 20 से 25 साल के बीच है। मारूति और इसके लिए कलपुर्जे बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम करने वाले हजारों मजदूर अलियार, ढाणा, नाहरपुर, कासन और खौ जैसे कई गांवों में भी बड़ी तादाद में रहते हैं। लेकिन इनके रहने के कमरों के बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। आठ बाइ आठ फीट के कमरे तीन से चार मजदूरों को किराए पर दिए जाते हैं, जिनमें ये लोग किसी तरह सिर्फ रात गुजारते हैं। इतना ही नहीं, मजदूरों को मिलने वाली सुविधाओं का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 300 लोगों पर सिर्फ 2 शौचालय हैं। खासी मशक्कत के बाद जब ये लोग फैक्ट्री पहुंचते हैं तो उनींदे होते हैं। परेशान भी। ऐसे में जब कंपनी का सुपरवाइजर किसी को जरा भी जोर से बोलता है तो ये फट पड़ते हैं। जबकि इन्हीं फैक्ट्रियों और कंपनियों के आला अधिकारी गुड़गांव और दिल्ली में तमाम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहे होते हैं। ये जो सामाजिक अंतर है, आर्थिक वर्ग भेद है, इसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यहां आपको याद दिला दें कि पिछले साल भी इस प्लांट में तीन बार हड़ताल हो चुकी है। 

मानेसर प्लांट में हुए हादसे के बाद कयास लगने लगे हैं कि मारूति सुजूकी प्लांट को गुजरात की तरफ शिफ्ट करने के बारे में भी सोच सकती है। हालांकि अभी कंपनी के चेयरमैन आर सी भार्गव कह चुके हैं कि ‘ये सब अफवाह है। मारूति मानेसर में ही रहेगी। हम अपना काम करेंगे लेकिन इसमें वक्त लग सकता है।’ हालांकि जानकारों का मानना है कि आनन फानन में शिफ्टिंग का फैसला नहीं होगा। कंपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से ऐसा करने की कोशिश करेगी। इन अफवाहों ने प्रदेश सरकार के कान खड़े कर दिये हैं। केंद्र सरकार भी मामले को संजीदगी से ले रही है। कॉर्पोरेट अफेयर मिनिस्टर वीरप्पा मोइली ने भी कह दिया है कि ‘मामले को सुलझाने के रास्ते निकालने के लिए वे शेयरधारकों के साथ साथ दूसरे मंत्रालयों से भी चर्चा करेंगे।’ हालांकि इसके लिए किस तरह के कदम उठाए जाएंगे, इस बारे में उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया है। वहीं रोहतक से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने इस घटना को दुखदायी बताते हुए कहा-‘मारुति उद्योग को हरियाणा पर पूरा विश्वास है। मारूति सुजूकी ने रोहतक में भी काफी निवेश किया है।’ विपक्ष की साजिश के आरोप पर उन्होंने कहा कि, ‘मामले की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।’ दरअसल इस मामले पर विपक्ष ने भी प्रदेश की कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया। इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने इस हिंसक घटना के लिए सीधे तौर पर हुड्डा सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा-‘उनकी सरकार के समय में ही मानेसर में डीजल कार बनाने वाले प्लांट की नींव रखी गई थी। लेकिन हुड्डा सरकार प्रदेश की साख बढ़ाने वाली कंपनियों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है। जिसकी वजह से भारी संख्या में उद्योग और कंपनियां यहां से पलायन कर रही हैं।’

 ये मामला राजनीतिक भी होता जा रहा है। ऐसे में कंपनी ने मानेसर प्लांट में अनिश्चितकाल के लिए तालाबंदी कर दी है। प्रबंधन का कहना है कि ‘प्लांट और कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी के बाद प्लांट में काम शुरू होगा।’ हर कंपनी में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच विवाद होते रहते हैं। लेकिन मारूति सुजूकी में हुई घटना ने एक बार मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के माथे पर भी बल ला दिया है। 

         कंपनी के आसपास के गांवों के सरपंचों ने आरोप लगाया है कि बीते कुछ वर्षों में राजनीतिक सिफारिश पर रोहतक, जींद, सोनीपत, झज्जर के लोगों को मारुति सुजूकी में काफी नौकरियां दिलाई गई हैं। राजनीतिक संरक्षण वाले ये लड़के काम कम और प्रबंधन पर दादागीरी ज्यादा करते हैं। यही वजह है कि जींद निवासी जिया लाल ने पहले तो सुपरवाइजर के साथ विवाद किया और बाद में उसके समर्थन में लोगों ने माहौल को हिंसक बना दिया। ये लोग कुछ प्रतियोगी कंपनियों पर भी इस राजनीतिक साजिश में शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं क्योंकि बीते दो साल में मारूति में हुई हड़ताल की वजह से इन्हें काफी फायदा मिला है। 

           आरोप और प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन हकीकत यही है कि इसका असर किसी एक कंपनी या इलाके तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि व्यापक होगा। मारूति ने 19 जुलाई को जारी एक बयान में कहा था कि ‘कंपनियों के प्रति लोगों में बढ़ रही नकारात्मकता का देश में निवेश और रोजगार के अवसरों पर विपरीत असर पड़ेगा।’ लेकिन क्या इसे मजदूरों के हित से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए ? देश के हजारों-लाखों मजदूरों की अनदेखी करके कोई भी कंपनी या उद्योग सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता।


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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

मीडिया से डरे मुख्यमंत्री


      इन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा डरे हुए हैं। डर है जनता का। डर है आगामी विधानसभा चुनाव का। डर है मीडिया का, साथ ही अपनी ही पार्टी के विधायकों का भी। हालांकि प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी दो साल से भी ज्यादा का समय बाकी है, लेकिन माननीय मुख्यमंत्री के पसीने छूटने लगे हैं। 

        राजधानी चंडीगढ़ में 7 जुलाई को प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस कप्तानों और विभागीय सचिवों की बैठक को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। ये बैठक करीब सात घंटे चली और हुड्डा पूरे समय तक बैठक में मौजूद रहे। मुख्यमंत्री के लिए ये बैठक कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने करनाल में पहले से निर्धारित कार्यक्रम भी रद्द कर दिया। ऐसे में इस मैराथन बैठक के क्या मायने हैं, इसे लेकर कयास लगने शुरू हो गये हैं। खुद कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों को ही इस बैठक की जानकारी नहीं थी। बैठक की खबर को गुप्त रखा गया था। किसी को कानोंकान खबर नहीं। दरअसल, हरियाणा के मुख्यमंत्री इन दिनों किसी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। ना तो अपने मंत्रियों पर, ना ही अपने विधायकों पर। ऐसे में प्रदेश के अधिकारी ही उनके आंख, नाक और कान बने हुए हैं। कांग्रेस के ही एक विधायक ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर ये बात बताई है। इनका तो यहां तक कहना है कि मुख्यमंत्री भले ही ‘नंबर वन हरियाणा’ का डंका पीट रहे हों, पिटवां रहे हों, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। आम आदमी बेहद परेशान है। लेकिन मुख्यमंत्री ये बात सुनने को तैयार नहीं हैं। उन्हें तो वही दिखाई और सुनाई देता है जो प्रदेश के चुनिंदा दो बड़े अधिकारी उनसे कहते हैं। मामला गंभीर हो उठता है, जब सत्तारूढ़ दल का ही कोई विधायक अपने मुखिया पर इस तरह के आरोप लगाता है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार निर्दलीयों और हजकां छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के भरोसे चल रही है। ऐसे में ये आरोप सच भी लगने लगते हैं। खास तौर से उन विधायकों को लेकर जो हजकां छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। जो नेता अपनी पार्टी के नहीं हुए वे कांग्रेस के क्या होंगे? और शायद मुख्यमंत्री हुड्डा को इसी बात का डर भी है।

     वहीं दूसरी तरफ विपक्षी विधायक मुख्यमंत्री को ‘घोषणाओं का मुख्यमंत्री’ बताते हैं। इन दिनों मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जहां भी जाते हैं, घोषणाओं की झड़ी लगा देते हैं। खास तौर पर कांग्रेसी विधायकों और सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों के हलकों में। शिक्षा संस्थान, अस्पताल, नहर, पीने के पानी और तमाम दूसरी योजनाओं के लिए वे सरकार का खजाना खोलने की बात कहते हैं। ये और बात है कि इन घोषणाओं पर अमल की तारीख तय नहीं होती और घोषणाएं वर्षों तक फाइलों में दबी रहती हैं। सोनीपत से बीजेपी विधायक कविता जैन का कहना है कि, ‘ सड़क, बिजली और पानी की दिक्कत झेल रहा समाज का हर तबका सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रहा है। इनमें व्यापारी, महिलाएं और किसान भी शामिल हैं। हुड्डा सरकार डरी हुई है। और इसी वजह से जनता को दबाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन घड़ा भर चुका है। जब भी चुनाव होंगे, जनता जवाब देगी।’ वे कहती हैं-‘जो सरकार आम आदमी को आधारभूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रही है, उसे बने रहने का कोई हक नहीं है। प्रदेश में कानून व्यवस्था बदहाल होने की वजह से कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है। महिलाएं डरी हुई हैं। खानपुर कलां की घटना आप देख चुके हैं।’ वहीं प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल इनेलो ने भी मुख्यमंत्री को डरा हुआ बताया। पटौदी से इनेलो विधायक गंगाराम ने कहा कि, ‘भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सबसे ज्यादा डर इंडियन नेशनल लोकदल का है। और इसी डर की वजह से वे जो भी काम करते हैं उसमें गड़बड़ हो जाती है। जनता तो नाराज है ही। इनेलो सिर्फ और सिर्फ जनता के हित में विकास चाहती है।’ 

       मुख्यमंत्री को मीडिया का भी डर है। खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्र बताते हैं कि जिन टीवी चैनलों पर हरियाणा को नंबर वन बताने वाले विज्ञापन चलते हैं, उन्हीं चैनलों पर चलने वाली खबरों ने मुख्यमंत्री को परेशान कर दिया है। जनसमस्याओं को सामने लानी वाली रिपोर्टों से मुख्यमंत्री आहत हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह की खबरें गढ़ीं जा रही हैं। प्रदेश के न्यूज चैनल जो दिखा रहे हैं, वो सच नहीं है। इस तरह की खबरें प्रायोजित हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री अपने दो बहुत करीबी अधिकारियों पर ही भरोसा करते हैं। वे जो कहते हैं, हुड्डा साहब उसे ही सच मानते हैं। वे प्रदेश की जैसी हालत बताते हैं, मुख्यमंत्री उससे इतर कुछ सुनना ही नहीं चाहते। निर्दलीय और हजका से आए विधायकों के साथ साथ उन्हें अपने विधायकों पर भी भरोसा नहीं रहा। ऐसे में मीडिया में दिखाई जाने वाली आम जनता की समस्याएं उन्हें प्रायोजित लगती हैं। उन्होंने डर का डंडा दिखा भी दिया है। अब हरियाणा में चलने वाले कई चैनलों की भाषा बदल गई है, उनका कंटेंट बदल गया है। 

       टीवी चैनलों का कंटेट भले बदल गया हो, लेकिन अब लगता है कि उन पर दिखाई गई जनसमस्याओं पर सीएम साहब ने कुछ ध्यान दिया है। शायद इसी का असर है कि मुख्यमंत्री को जुलाई के पहले हफ्ते में प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों, पुलिस कप्तानों और विभागीय सचिवों की बैठक बुलानी पड़ी। इस तरह की बैठक करीब एक साल बाद हुई है। इस मैराथन बैठक में मुख्यमंत्री ने सभी जिला उपायुक्तों को आपदा प्रबंधन पर जोर देने के निर्देष दिये हैं। बाढ़ से बचाव के लिए पुख्ता प्रबंध करने के आदेश दिए हैं। दरअसल, सीएम साहब गर्मी और बिजली की किल्लत से जूझ रही जनता की गुहार देख चुके हैं। पिछले साल बाढ़ से हुई बर्बादी भी उनके जेहन में होगी ही। ऐसे में आने वाले दिनों में वे किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते। 6 जुलाई को प्रदेष के कुछ इलाकों में हुई बारिश ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोल दी है। ऐसे में मानसून और उपरी इलाकों में बारिश का खौफ भी हरियाणा सरकार को डरा रहा है। सभी जिला उपायुक्तों से कहा गया है कि इलाके का दौरा करें, ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें और विकास कार्यों पर जोर दें। बैठक में शामिल सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश में ढीली हो रही कानून व्यवस्था को लेकर जिला प्रशासन की भी खिंचाई की। इतना ही नहीं, तहसील स्तर पर भी पटवारी को हफ्ते में दो दिन बैठने, सभी विभागों में सिटिजन चार्टर के मुताबिक काम करने को सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।

      बैठक में राज्य के सभी बोरवेल को लेकर सर्वे करवाकर इन्हें बंद करवाने के निर्देश दिये गये। गौरतलब है कि पिछले तीन हफ्तों में सिर्फ गुड़गांव में ही तीन बच्चे बोरवेल और खुले सीवर में गिर चुके हैं। जिनमें से दो को अपनी जान गंवानी पड़ी। सरकार और प्रशासन के खिलाफ लोगों की भावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री (डरे हुए) अब जरा भी लापरवाही बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं। सात घंटे तक चली प्रदेश के मुखिया और आलाधिकारियों की इस बैठक में सिर्फ निर्देश ही नहीं दिये गये, बल्कि निर्देशों का पालन करने और पत्रकारों के जरिए ही जनता को जानकारी देने की बात भी कही गई है। 

    एक मैराथन बैठक में इतनी हिदायतें ये बताने के लिए काफी हैं कि मुख्यमंत्री परेशान चल रहे हैं। विधायकों की वे सुनते नहीं हैं। अपना डर मीडिया पर थोप कर मुख्यमंत्री ने मीडिया से मिलने वाले फीडबैक को भी बंद कर दिया है। हुड्डा साहब चाहते तो मीडिया में दिखाई जाने वाली समस्याओं का समाधान करवा कर पार्टी को राहत दिलवा सकते थे। लेकिन लगता है कि उनके जो तथाकथित सिपाहसालार हैं, वे ऐसा नहीं चाहते। दरअसल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पास उपलब्धि के नाम पर गिनाने के लिए अपनी खेल नीति और साफ सुथरे नेशनल हाइवे के अलावा और कुछ है नहीं। क्योंकि उनके पॉवर प्लांट्स की पोल खुल चुकी है और विकास कार्य रोहतक लोकसभा सीट तक ही सिमटे हुए हैं। आप जानते हैं कि काठ की हांडी बार बार चढ़ नहीं सकती। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री की पेशानी पर बल पड़ना लाजिमी है। 

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शनिवार, 14 जुलाई 2012

लक्ष्य चंडीगढ़: वाया परमाणु संयंत्र


                चढ़ता पारा। बढ़ती गर्मी। मस्त नेता। त्रस्त जनता। गर्माती राजनीति। मुद्दा है फतेहाबाद के गोरखपुर में बनने वाला परमाणु संयंत्र। इससे बननी है बिजली, जो जनता को देगी राहत। इस संयंत्र को अमली जामा पहनाने की राज्य सरकार की योजना फिलहाल खटाई में पड़ती दिख रही है। किसानों ने आंदोलन की धमकी दी है। सर्वेक्षण करने पहुंची एक टीम की जमकर पिटाई भी कर दी। पहले तो किसान अधिग्रहित जमीन का मुआवजा बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे और अब रेडिएशन फैलने की बात कह रहे हैं। राजनीतिक दल भी किसानों के बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। इंडियन नेशनल लोकदल और हरियाणा जनहित कांग्रेस ने इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इनेलो तो मुखर होकर सामने आई है। पार्टी का मानना है कि दुनिया भर में नकारा घोषित किए जा चुके और आम लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन चुके परमाणु संयंत्रों को मुख्यमंत्री हुड्डा जानबूझ कर राजनीतिक द्वेष के चलते फतेहाबाद में लगाना चाहते हैं। पार्टी के प्रधान महासचिव और डबवाली से विधायक अजय सिंह चौटाला ने गोरखपुर में लगने वाले परमाणु संयंत्र को पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि, ‘इनेलो परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे किसानों का डटकर सहयोग करेगी और किसी भी कीमत पर गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु संयंत्र नहीं लगने दिया जाएगा।’ अजय चौटाला ने कहा, ‘जापान जैसे विकसित देश में परमाणु संयंत्र घातक साबित हुए हैं और गोरखपुर में घनी आबादी के साथ ऐसा परमाणु संयंत्र लगाना पूरी मानवता को आग में झोंकने के बराबर है।’ 

              हरियाणा जनहित कांग्रेस के सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई भी इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ आवाज बुलंद कर चुके हैं। कुल मिलाकर मामला राजनीति का है। इस संयंत्र के पूरा होने पर प्रदेश में 2800 मेगावाट बिजली का उत्पादन बढ़ेगा। इसमें से 1400 मेगावाट बिजली प्रदेशवासियों को मिलेगी। विपक्ष के तमाम आरोपों को कांग्रेस सरकार और उसके नेता आए दिन खारिज करते दिखते हैं। हर कांग्रेसी इस संयंत्र के बनने के बाद विश्व के नक्शे पर हरियाणा की अलग पहचान खोजता दिख जाता है। विकास की बयार की बात भी कही जाती है। पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस विधायक प्रो. संपत सिंह ने इस संयंत्र का विरोध करने वालों को प्रदेश का विरोधी करार दिया है। हाल ही में सोनीपत में उन्होंने कहा कि, ‘देवीलाल और भजनलाल ने भी मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्रियों को परमाणु संयंत्र लगाने के लिए खत लिखे थे।’ ये सच भी है। इन दोनों ने नेताओं ने मुख्यमंत्री रहते हुए बिजली की समस्या से निजात पाने के लिए परमाणु संयंत्र लगवाने की कोशिश की थी, लेकिन हरियाणा के दोनों ‘लाल’ अपनी कोशिश में नाकाम रहे। अब देवीलाल और भजनलाल के वारिस ही उनकी मांग को पलीता लगाने की तैयारी में हैं। मामला वोट बैंक का है। मामला नया वोटर बनाने का है। मामला कुर्सी पर कब्जा करने का है। जिसका रास्ता किसानों की दुखती रग से होकर ही जाता है। संपत सिंह ने कहा कि,‘बिजली की कमी को दूर करने के लिए सरकार तल्लीनता से कार्यरत है और उन्हें उम्मीद है कि साल के अंत तक बिजली की किल्लत से निजात मिल सकेगी।’ परमाणु संयंत्र को लेकर विपक्ष राजनीतिक रोटियां सेंकने की कवायद में है तो सरकार किसी भी तरह से इस मामले को हाथ से जाने नहीं देना चाहती। 

दरअसल, हरियाणा में बिजली की भारी किल्लत है। और पॉवर कट यहां की जनता की चुनिंदा दिक्कतों में से एक है। पूरे प्रदेश में ऐसा कोई भी शहर या गांव नहीं है जहां बिजली किल्लत की समस्या ना हो। हालांकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बिजली की समस्या को विरासत में मिली समस्या बताते रहते हैं, लेकिन पिछले साढ़े सात साल में उन्होंने इस समस्या से निजात दिलाने के लिए क्या किया है, ये समझ से परे है। प्रदेश में यमुनानगर, पानीपत, खेदड़ (बरवाला) और झाड़ली (झज्जर) सहित कई और भी पॉवर प्लांट हैं। लेकिन कोई भी प्लांट अपनी क्षमता के मुताबिक बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहा है। किसी प्लांट की एक यूनिट खराब है तो किसी की दो। पिछले दिनों तो खेदड़ प्लांट पूरी तरह से ठप हो गया था। बावजूद इसके प्रो. संपत सिंह सफाई देते दिखे। उनकी मानें तो 31 जुलाई तक ज्यादातर यूनिटें काम करना शुरू कर देंगी। हालत ऐसी है कि बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के शहर तक में बिजली आपूर्ति सही तरीके से नहीं हो पा रही है। मामला भटक गया। बात परमाणु संयंत्र की हो रही थी। विपक्ष के नेताओं के अपने तर्क हैं तो सत्ता पक्ष की अपनी ढपली और अपना राग। 
  परमाणु संयंत्र को लेकर वैज्ञानिक भी एक राय नहीं हैं। दिल्ली के प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. प्रवीर पुरकायस्त का कहना है कि,‘ जनहित को देखते हुए किसी भी स्थान पर परमाणु संयंत्र लगाया जाना सही नहीं है, क्योंकि यह किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है। बावजूद इसके भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो बिजली उत्पादन के अच्छे विकल्प तलाशने की बजाए, परमाणु संयंत्र का राग अलाप रहा है।’ डॉ. प्रवीर गोरखपुर मंे लगने वाले परमाणु संयंत्र के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि, ‘कोयले और परमाणु के प्लांट में काफी अंतर होता है। यदि इसे नियंत्रण करने में हल्की सी भी चूक  हो जाए तो पूरी मानव जाति के लिए खतरा साबित हो सकता है। इन संयंत्रों से निकलने वाली विकिरणों से कम से कम 40 किलोमीटर का क्षेत्र भयंकर गर्मी और बीमारियों की चपेट में आ जाता है। वहीं दूसरी तरफ न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डी के गोयल ने देश के सभी परमाणु बिजली संयंत्रों को पूरी तरह से सुरक्षित बताया है। उन्होंने कहा कि इसके आस पास रहने वालों के जीवन पर किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। रेडिएशन के जवाब में उन्होंने कहा कि, ‘मानव शरीर के साथ साथ दूध, चावल, मिट्टी, दाल, फल सहित सभी वस्तुएं रेडिएशन छोड़ती हैं।’ उन्होंने कहा -‘गोरखपुर में लगने वाले परमाणु बिजली संयंत्र के बारे में लोगों में अनेक भ्रांतियां हैं। यह संयंत्र अति आधुनिक तकनीक से बनाया जाएगा, जो कि पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है। इलाके की भौगोलिक और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रख कर संयंत्र का डिजाइन तैयार किया गया है। इस पर तेज भूकंप का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’ 

  फतेहाबाद के गोरखपुर में लगने वाला परमाणु बिजली संयंत्र शुरू होने से पहले ही सुर्खियां बटोर चुका है। संयंत्र के लिए जमीन देने वाले किसानों का लालच भी बढ़ रहा है। वे आंदोलन की धमकी दे रहे हैं। इनेलो उनका साथ दे रही है। बयानबाजी का दौर जारी है। अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी है। बिजली मिले ना मिले, पानी मिले ना मिले, राजनीतिक दलों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस वोट मिलने चाहिए। चाहे जो भी करना पड़े। 
  वैसे न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डी के गोयल परमाणु बिजली संयंत्र को अच्छा स्रोत मानते हैं। उनके मुताबिक हवा और सौर ऊर्जा ज्यादा महंगे साबित होंगे। लेकिन जनता ये जानना चाहती है कि किसी संकट की घड़ी में इस संयंत्र पर काबू कैसे पाया जाएगा। समुद्र के किनारे होने की वजह से जापान ने तो अपने संयंत्रों को ठंडा कर दिया था, लेकिन हरियाणा में...। जहां पीने का पानी भी अब मयस्सर नहीं है, भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है। संयंत्र को ठंडा करने के लिए पानी आएगा तो कहां से ? लोगों का कहना है-विनाश की पटकथा लिखी जा रही है। और राजनीतिक दल अभिनय कर रहे हैं। तमाशा जारी है। देखते रहिए। 


ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है।