सोमवार, 13 दिसंबर 2010

कौन बचा रहा है संसद की गरिमा

संसद के हमले की नौंवी बरसी। नौ साल पहले आज के ही दिन हुआ था देश की संसद पर हमला। देश की गरिमा को तार तार करने की कोशिश हुई थी। आतंकवादी संसद तक पहुंच भी गये थे, लेकिन हमारे जवानों ने जान की बाजी लगाकर उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया था। इस कार्रवाही में आठ जवान शहीद हो गये थे। हर साल की तरह इस बार भी संसद परिसर में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई। सभी राजनैतिक दल आतंकवाद के खिलाफ एकजुट दिखाई दिये। मानों कह रहे हों, हम साथ साथ हैं। और हमारा ये साथ कभी नहीं छूटने वाला है। जब सभी राजनीतिक दल एकजुटता दिखा रहे थे तब समय हुआ था दस बज कर पैंतालिस मिनट। करीब दस मिनट तक चला श्रद्धांजलि कार्यक्रम... इसके बाद फिर सभी माननीय सदस्य बढ़ चले सदन की तरफ। अब समय हुआ था.... ग्यारह बजकर दो मिनट। सदन के बाहर जो माननीय सदस्य एक साथ दिख रहे थे, वे हंगामा करने लगे। सदन की कार्यवाही में बाधा डालने लगे, जो शीतकालीन सत्र के शुरू होने के बाद से एक दिन भी नहीं चल पाई है। लेकिन इसकी फिक्र किसे है। बाहर साथ साथ थे, लेकिन सदन में जैसे एक दूसरे से मतलब ही नहीं है। जिस संसद की गरिमा बचाने के लिए आठ जाबांज शहीद हो गये थे, उसी संसद की गरिमा को अपने ही लोग लहूलुहान करने में लगे हैं... क्या अच्छा नहीं होता... कि जैसी एकजुटता इन लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ दिखाई, वैसी ही भ्रष्टाचार के खिलाफ भी दिखाते।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मुन्नी बदनाम हुई...

पिछले महीने एक गाना लोगों की जुबां पर चढ़ बैठा। मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए। मुन्नी कुछ इस तरह बदनाम हुई कि सिर्फ देष में नहीं, बल्कि पाकिस्तान में भी ‘मुन्नियों’ के लिए घर से निकलना जी का जंजाल बन गया। जिधर जातीं, बदनामी पहले ही पहुंच जाती। लेकिन भैया जी कहते हैं, बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा। लगता है भैया जी की बात सुनी जा रही है। आजकल भ्रश्टाचार का बोलबाला है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ किसी न किसी तरह से इसके षिकार हैं। भ्रश्टाचार की चर्चा सरेआम है। हर वो आदमी इसकी चर्चा कर रहा है, जो खुद भी भ्रश्ट है! अगर भ्रश्ट नहीं है तो मौके की फिराक में है। बस, एक बार की चाहत है, उसके बाद जरूरत ही नहीं पड़ेगी। रोज नये खुलासे। चाहे क्रिकेट का खेल हो या फिर राजनीति का। सबकुछ बिक रहा है। जमीर की तो कीमत सबसे ज्यादा है। सस्ता नहीं बिकता! जब तक लाखों करोड की बात ना हो, इसका बिकना नामुमकिन है। अपने मुलायम सिंह यादव को ही देखिए। बताया जा रहा है कि मुलायम सिंह उतने मुलायम नहीं हैं, जितने दिखते हैं। तभी तो गरीबों के हक का दो लाख करोड़ का अनाज डकार गये, और भनक तक नहीं लगने दी। वो तो लालू यादव थे जो महज नौ हजार करोड रूपये का चारा चुपचाप नहीं पचा सके। आखिर जानवरों का था, हजम भी कैसे होता। लेकिन कहते हैं ना, ज्यादा खाओ तो अपच हो जाता है, वैसा ही मुलायम सिंह के साथ होता दिख रहा है। घोटालेबाजों के पास घोटालों का पूरा इतिहास भी है। कहते हैं आजाद भारत में पहला घोटाला जीप घोटाला था, जाहिर है, तब हम इतने आधुनिक नहीं थे। और जीप भी महंगी सवारी ही थी। इतना ही नहीं, करने वालों ने तो साइकिल आयात के नाम पर भी घोटाला किया था। ऐसा नहीं है कि घोटाला सिर्फ नेताओं की बपौती है। अब तो सभी घोटाला कर रहे हैं। पहुंच-पहुंच की बात है। जिसके हाथ जितने लंबे हैं, वो उतना बड़ा घोटाला कर सकता है। बस आप कुछ भी हों, आम आदमी ना हों, नही ंतो आपके जिम्मे बिजली चोरी या कर चोरी जैसी छोटी चोरियां ही आएंगी, क्योंकि मोटी चोरी पर तो उनका एकाधिकार है, जो किसी न किसी तरह से रसूख वाले हैं। ये अलग बात है कि पिछले कुछ महीनों से केंद्र सरकार के मंत्री घोटालों को लेकर उतने बदनाम हो गये हैं जितनी बदनाम झंडू बाम लगाने वाली मुन्नी भी ना हुई।