शनिवार, 26 मई 2012

शर्मसार हरियाणा


        बलात्कार और भ्रूण हत्या। दोनों पाप। दोनों हो रहे हैं। दुखद हैं। चुनौतीपूर्ण भी। हाशिाए पर जा रही हैं महिलाएं। युवतियां। बच्चियां। कोख में पल रही बेटियां भी जन्म लेने से पहले ही मार दी जाती हैं। शर्मसार हो रहा है हरियाणा। बदनामी किसे अच्छी लगती ह, लेकिन हकीकत यही है। बलात्कार और भ्रूण हत्याओं की खबरें पूरे प्रदेशा से आ रही हैं। कहीं छात्रा से बलात्कार तो कहीं शादीशुदा महिलाओं से। दरिंदगी की हद। वृद्ध महिलाएं भी वासना के भूखों की शिकार बन रही हैं। छुट्टा घूम रहे हैं मनचले। कोई रूकावट नहीं।




       देश के समृद्ध राज्यों में से एक है हरियाणा। यहीं खुला था देश का पहला महिला विश्वविद्यालय। भक्त फूलसिंह महिला विश्वविद्यालय, खानपुर कलां, सोनीपत। इन दिनों ये विश्वविद्यालय सुर्खियों में है। किसी उपलब्धि को लेकर नहीं, बल्कि एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार की वजह से। बीए एलएलबी की एक छात्रा के साथ गैंग रेप किया गया है। विवविद्यालय में मेस चलाने वाले अमित मलिक उर्फ मीता पर दो दोस्तों के मिलकर इस शर्मनाक घटना को अंजाम देने का आरोप है। मामला 16 मई का है, जब छात्रा विवविद्यालय के गेट पर किसी काम से गई थी। अमित मलिक ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसे जबरन उठा लिया। खेतों में ले जाकर उसके साथ बारी बारी से रेप किया। हवस की आग बुझाने के बाद छात्रा को यूनिवर्सिटी के गेट पर फेंक कर चले गये।

छात्रा सदमे में थी। किसी से कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। अगले दिन 17 मई को उसने अपने साथ हुए दुराचार की बात अपनी दोस्तों को बताई। एक कान से दूसरे कान होते होते बात पूरे विवविद्यालय में आग की तरह फैल गई। छात्राएं एकजुट हो गईं। आवाज उठाई। विवविद्यालय प्रशासन मामले को दबाकर साख बचाने में जुट गया। इसकी भनक मिलते ही छात्राओं ने विरोध की रणनीति अपनाते हुए गोहाना-गन्नौर रोड पर जाम लगा दिया। दबाव बढ़ा। चीफ वार्डन साहिब कौर से त्याग पत्र ले लिया गया। लेकिन लड़कियों को न्याय चाहिए था। आवाज और बुलंद हुई। चंडीगढ़ तक पहुंची। गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा ने इस शर्मनाक हरकत की निंदा की और छात्राओं को कार्रवाई का भरोसा दिलाया। गोपाल कांडा ने कहा, ‘इस घटना की पूरी तहकीकात की जाएगी। और इस शर्मनाक घटना के पीछे जो भी दोषी पाया जाएगा उसे सरकार बख्शेगी नहीं। गृह राज्यमंत्री के बयान के बाद पुलिस पर दबाव बढ़ गया था। आनन फानन में तीनों आरोपियों को दबोच लिया गया। लड़कियां इतने से ही मानने वाली नहीं थीं। उन्होंने आरोपियों को देखने की जिद की। पुलिस को मानना पड़ा। विवविद्यालय के बाहर प्रदर्ान कर रही छात्राओं में से कुछ को दो गाडि़यों में ले जाकर आरोपियों को दिखाया गया। पुलिस को इस बात का डर भी था कि अगर तीनों आरोपी उग्र लड़कियों के हाथों में पड़ गये तो मुसीबत हो जाएगी। वहीं, अलग अलग बयानों की वजह से पुलिस भी सवालों के घेरे में है। पहले कहा गया कि तीनों को खानपुर कलां गांव से ही पकड़ा गया है। बाद में कहा - हरिद्वार से गिरफ्तार किया गया।


हालांकि आरोपियों को दिखाने के बाद प्रशासन ने छात्राओं से आंदोलन खत्म करने की अपील की। लेकिन लड़कियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। चीफ वार्डन के इस्तीफे के बाद अब इन्होंने कुलपति को भी हटाने की मांग की है। शुक्रवार-शनिवार (18-19 मई) की रात लड़कियां सड़क पर ही जमी रही।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने आंदोलन करने वाली इन लड़कियों को दबाने की पूरी कोशिश की। बात नहीं बनी। लड़कियों को रात का खाना नहीं दिया गया। शर्त रखी गई कि जब वे हाॅस्टल में आएंगी तभी खाना मिलेगा। लड़कियों ने शर्त ठुकरा दी। रात में सड़क पर भूखे प्यासे रह कर पीडि़त छात्रा को न्याय दिलाने के लिए आवाज बुलंद करती रहीं। भक्त फूल सिंह महिला विवविद्यालय के हाॅस्टल में रहने वाली तीन छात्राएं फरवरी और मार्च महीने में फंदा खुदकुशी कर चुकी हैं। लेकिन इसकी वजह क्या थी, इसका पता नहीं चल पाया है। ऐसे में एक के बाद एक घटनाओं ने विपक्ष को एक और मौका दे दिया। मुख्य विपक्षी दल इनेलो के प्रधान महासचिव अजय चैटाला 19 मई (शनिवार) को महिला विश्वविद्यालय पहुंच गये। सरकार पर हमले किये। छात्राओं को साथ देने का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा, ‘अगर महिला विश्वविद्यालय की छात्राओं के साथ बलात्कार हो, आत्महत्या करने की घटना घटे, तो बजाए इंसाफ दिलवाने के, बजाए दोषी लोगों को सजा देने के उन्हीं से जांच करवाई जाती है और उनको बचाने का काम किया जाता है। अब बच्चियों ने सीधे तौर पर कहा है कि वीसी के रहते इस तरह की कई घटनाएं घटी हैं। रजिस्ट्रार, वीसी और हाॅस्टल वार्डन की जरूरत नहीं है।अजय चैटाला ने मामले की जांच हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से करवाने की भी मांग की।
वहीं, इस मामले में जब हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन सुशीला शर्मा से बात की गई तो उन्होंने प्रशासन की तारीफ में कसीदे ही पढ़े। उन्होंने कहा, ‘आरोपियों को पकड़ लिया गया है। प्रशासन ने तत्परता दिखाई है। आज समाज के हर तबके से कहना चाहेंगे कि जितनी नैतिकता की जरूरत है, उसे बचाए और बनाए रखने की कोशिश करें। जो उद्दंडता समाज में आ गई है उसे दूर करने की जरूरत है। युवाओं को नैतिकता और सद्गुण के पाठ पढ़ाए जाने चाहिए। समाज के सभी वर्ग के लोगों को दल, जाति, धर्म से उपर उठकर इसके लिए कोशिश करनी चाहिए। ताकि इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकें।बजाए इसके कि वे ठोस कार्रवाई की मांग करतीं, समाज से उम्मीद कर रही हैं। उस समाज से जो रोज अपने प्रतिनिधियों से नित नये सबक सीख रहा है।

दरअसल, हरियाणा में छात्राओं से बलात्कार का ये कोई पहला मामला नहीं हैं। आए दिन प्रदेषा के किसी न किसी इलाके से बलात्कार की खबरें आती रहती हैं। आप यकीन नहीं कर पाएंगे लेकिन ये सच है। जनवरी के आखिरी सप्ताह में 80 साल की एक वृद्ध महिला के साथ बलात्कार किया गया। रेवाड़ी से 12 किलोमीटर दूर नांगल गांव में 35 साल के एक शादीशुदा युवक की इस हरकत ने प्रदेष को शर्मसार कर दिया। मार्च में भिवानी में पड़ोसी ने ही एक नाबालिग की अस्मत तार-तार कर दी। अप्रैल में ही पानीपत में 5 साल की बच्ची से दुकर्म किया गया। मई के पहले हफ्ते में ही फतेहाबाद में 7 साल की एक बच्ची के साथ 60 साल के बुजुर्ग ने बलात्कार किया। एक के बाद एक कई खबरें आईं। लेकिन किसी में भी कार्रवाई नहीं हुई। हां, गुड़गांव में एक युवती से सामूहिक बलात्कार के सभी 6 आरोपियों को पुलिस ने 15 दिनों के भीतर जरूर पकड़ लिया था। ये मार्च के दूसरे हफ्ते की घटना है। युवती गुड़गांव के एक माॅल के बाहर टैक्सी में सवार हो रही थी। तभी कुछ युवकों ने उसे उठा लिया और एक फ्लैट में ले जाकर गैंग रेप किया। इस घटना के बाद भी गुड़गांव पुलिस सचेत नहीं हुई थी। क्योंकि इसके अगले ही दिन एक और महिला के साथ बलात्कार की खबर आई।

ये तो हुई छात्राओं, युवतियों और महिलाओं की बात। जो प्रदेषा सरकार की पोल खोलने के लिए काफी है। प्रदेष में बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं। खास तौर से वे बच्चियां जो किसी अनाथ आश्रम में रहती हैं। ऐसे ज्यादातर अनाथ आश्रम कोई न कोई एनजीओ चलाता है। इन अनाथ आश्रम में रहने वाली बच्चियों का जमकर यौन शोषाण किया जाता है। गुड़गांव के वजीराबाद गांव में चल रहे अनाथ आश्रम सुपर्णा का आंगनमें रहने वाली अनाथ नाबालिग बच्चियों का यौन शोषण उनके केयर टेकर रचित राज ने ही किया था। जबकि सीएम सिटी रोहतक में अपना घरनाम से चलने वाली एक और संस्था में बच्चियों और युवतियों के संरक्षण के नाम पर यौन शोषण, शारीरिक उत्पीड़न का सनसनीखेज मामला पिछले हफ्ते ही सामने आया है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण परिषद की टीम ने छापा मारा तो कई अनियमितताएं देखने को मिलीं। यहां रहने वाली बच्चियों ने जरा सी सहानुभूति पाई तो फट पड़ीं। जबरन काम करवाना तो समझा जा सकता है। लेकिन अधिकारियों को यकीन ही नहीं हुआ जब बच्चियों ने जिस्मफरोशी करवाने की शिकायत भी की। ये भी बताया कि कुछ युवतियों को छापे से एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंचाया गया है।

संचालिका जसवंती, उसकी बेटी सिमी, दामाद जय भगवान और उसके ममेरे भाई सतीश को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन दोनों ही मामलों में क्या सिर्फ गिरफ्तारी से बात खत्म हो जाएगी? नहीं। आखिर प्रशासन की भी लापरवाही है। ऐसे में रोहतक प्रशासन को राष्ट्रीय बाल संरक्षण परिषद की टीम ने तलब कर लिया।
मामला दिल्ली तक पहुंच गया था। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को इतनी फुरसत नहीं थी कि अपना घरका परायापन देख आते। देख आते कि इस तरह के आश्रम चलाने वाले एनजीओ को सरकार जो पैसा दे रही है, उसका सही इस्तेमाल हो भी रहा है या नहीं। सिर्फ हुड्डा साहब को ही क्यों दोष देना। किसी भी राजनीतिक दल के नेता ने यहां कदम रखना उचित नहीं समझा। तब समझ में आया कि महिला विश्वविद्यालय की छात्रा से गैंग रेप के बाद गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा ने क्यों बयान दिया। इनेलो के प्रधान महासचिव अजय चैटाला क्यों खानपुर कलां पहुंच गये। मामला छात्राओं का था। उनके परिजनों के रूप में वोट बैंक है। लेकिन अनाथ आश्रमों में रहने वालों के पीछे कौन है ? जनवादी महिला समिति ने अगर मोर्चा नहीं खोला होता तो रोहतक का मामला ठंडा भी पड़ गया होता। समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमती सांगवान ने अपना घरको ग्रांट देने में शामिल होने वाले अधिकारियों की भी न्यायिक जांच की मांग की है ताकि असलियत सामने आ सके।

बच्चियों, युवतियों, या फिर वृद्ध महिलाओं के साथ बलात्कार की वजह क्या है? हरियाणा समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष सुमित्रा चैहान का मानना है कि प्रदेश में असंतुलित लिंगानुपात की वजह से कई समस्याएं जन्म ले रही हैं। लड़कियों की कम संख्या के कारण बलात्कार और आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। प्रदेश के किसी न किसी हिस्से में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए लगातार कार्यक्रम चलते रहते हैं। सरकारी स्तर पर और सामाजिक स्तर पर भी। लेकिन कुछ खास फायदा होता नहीं दिखाई देता। 2001 के मुकाबले 2011 में बच्चियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

दरअसल, हरियाणा का लिंगानुपात देश के लिंगानुपात से काफी पीछे है। 2011 की जनगणना के हिसाब से प्रदेश में 1000 लड़कों के पीछे सिर्फ 877 लड़कियां हैं। हालांकि हरियाणा में लिंगानुपात 2001 के मुकाबले बेहतर हुआ है। 2001 में 1000 लड़कों पर सिर्फ 861 लड़कियां थीं, जिनकी संख्या बढ़कर 877 हो गई है। लेकिन बच्चों के लिंगानुपात में भारी गिरावट दर्ज की गई है। 2001 में 1000 बच्चों (0-6 साल तक) में 964 बच्चियां थीं, जबकि 2011 में इनकी संख्या 830 तक पहुंच गई है।

यानि अभी भले ही 1000 लड़कों पर 877 लड़कियां हों, लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में स्थिति भयावह हो सकती है। क्योंकि 0 से 6 साल तक के बच्चों के मामले में लड़कियों की संख्या चिंताजनक है। पिछले 30 वर्षों में देश भर में कन्या भ्रूण हत्या की वजह से बच्चियों की संख्या में भारी गिरावट आई है।

एक तरफ प्रदेशा अपनी बेटियों पर गर्व करता नहीं अघाता। हरियाणा की बेटियां सेना के तीनों अंगों में जा रही हैं। पुलिस सेवा में भर्ती हो रही हैं। देश और राज्य की सेवा-सुरक्षा कर रही हैं। खेल की दुनिया में भी इन्होंने अपना दबदबा बनाया है। राजनीति में भी रसूख रखती हैं। राज्य में तो मंत्री बनीं ही हैं, केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी हरियाणा की बेटियों की दखलअंदाजी है। अंतरिक्ष और एवरेस्ट पर तिरंगा फहरानी वाली बेटियां भी हरियाणा की ही हैं। इस साल आई ए एस की परीक्षा में टाॅप करनी वाली लड़की भी यमुनानगर की है। यानी किसी भी क्षेत्र में यहां की बेटियां पीछे नहीं हैं। फिर भी यहां कन्या भ्रूण हत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। पिता का सिर उंचा करने वाली बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है। वंश चलाने के लिए एक बेटे की चाहत में पता नहीं कितने लोग इतना बड़ा पाप करते हैं। लेकिन सोचते नहीं कि अगर बेटियों से ये भेदभाव किया गया तो बहू कैसे आएगी ? वंश कैसे चलेगा ? इस दिशा में कौन सोचेगा? क्या अकेला बेटा ही वंश चला पाएगा ? सुमित्रा महाजन कह चुकी हैं कि असंतुलित लिंगानुपात की वजह से ही बलात्कार और आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे में आंकड़ों के बरक्स उठने वाले सवालों का जवाब भी आंकड़े ही देंगे। जब स्थिति पहले जैसी हो जाएगी। बेटियों के साथ भेदभाव छोड़ कर उन्हें पैदा होने दिया जाएगा। वहीं बलात्कार से बचने के लिए लड़कियों को भी खुद को मजबूत करना होगा। आत्मरक्षा के उपाय सीखने होंगे। प्रशिक्षण लेना होगा। ताकि कभी विकट स्थिति आने पर खुद ही उससे निपट सकें। उन्हें किसी का मोहताज नहीं होना पड़े।



ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है.

मंगलवार, 22 मई 2012

फिर सड़ने के लिए तैयार है गेहूं

                  ‘मेहनत की कमाई है, बेकार कैसे जाएगी।’ ये बात आपने भी जरूर सुनी होगी। लेकिन हरियाणा पहुंचते ही ये बात गलत साबित होने लगती है। गेहूं की फसल के लिए प्रदेश के किसान जमकर मेहनत करते हैं। कड़ी धूप में पसीना बहाते हैं। और जब चमकदार कनक लेकर अनाज मंडियों में पहुंचते हैं तो उनकी मेहनत पर पानी फिरने लगता है। अनाज मंडियों की अव्यवस्था उनका गला घोंटने को तैयार दिखाई देती है। कभी समय पर खरीद शुरू नहीं होती। अगर खरीद हो जाए तो भुगतान नहीं होता। खरीद होने के बाद अनाज उठान की भी बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से बाद में अनाज लेकर मंडी पहुंचने वाले किसानों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। कई बार तो पूरा हफ्ता इंतजार में बीत जाता है। किसानों के लिए समस्या तब और विकट हो जाती है, जब मौसम उनके प्रतिकूल हो जाता है। प्रदेश की कई अनाज मंडियों में किसानों के बैठने के लिए शेड तक नहीं होती, ऐसे में अनाज रखने की व्यवस्था कैसी होगी ये बताने की जरूरत नहीं है। अगर दो चार बूंदे भी पड़ गयी तो किसानों के लिए लागत निकालना भी मुशि्कल हो जाता है।
    किसानों को अनाज उपजाने से लेकर मंडियों तक पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं होती। असल दिक्कत मंडी पहुंचने के बाद ही शुरू होती है। जब उन्हें वहां खरीद के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इस बार भी सरकार ने 1 अप्रैल से अनाज खरीद की घोषणा की थी। किसान अपनी उपज लेकर मंडियों में पहुंचने लगे थे लेकिन 7 दिनों तक सरकारी खरीद एजेंसियों का रवैया लापरवाही वाला ही रहा। हालांकि छह सरकारी एजेंसियां गेहूं खरीद रही हैं। इनमें खाद्य और आपूर्ति विभाग, हैफेड, कॅान्फेड, हरियाणा वेयर हाउसिंग काॅरपोरेशन, हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज काॅरपोरेशन और फूड काॅरपोरेशन अॅाफ इंडिया शामिल हैं। इसके बावजूद किसान बार बार गेहूं नहीं खरीदे जाने की बात कहते हैं। समस्या सिर्फ यही नहीं है। जिन किसानों के गेहूं खरीद लिये गये हैं, उन्हें भुगतान नहीं हुआ है। और जो किसान बाद में मंडी पहुंच रहे हैं, उनके सामने खरीद की ही समस्या है। क्योंकि पहले खरीदे गये अनाज का समय पर उठान नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह से मंडियों में अनाज रखने की जगह ही नहीं बची है। प्रदेश में तमाम तरह के गोदामों को मिला कर कुल 90 लाख टन अनाज रखने की क्षमता है। लेकिन यहां के गोदामों में पहले से ही 50 लाख टन अनाज पड़ा है। ऐसे में इस बार खरीद होने के बाद अनाज कहां रखा जाएगा ये सबसे अहम सवाल है। देश के प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य हरियाणा में इस बार गेहूं की बंपर पैदावार हुई है। इस बार यहां 70 लाख टन गेहूं पैदा होने की उम्मीद है। 

                        पिछले दो तीन वर्षौं से हम हरियाणा में ही कई जगहों पर अनाज की बर्बादी की कहानी देख और सुन चुके हैं। बारिश और बाढ़ की वजह से रानियां, पानीपत और करनाल सहित कई जगहों पर गेहूं सड़ गया था। इसके बावजूद सरकार नहीं चेती। खरीद के बाद भंडारण की व्यवस्था करने की बजाए जैसे तैसे खरीद बढ़ाने पर जोर दे दिया गया। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि, ‘‘सरकारी खरीद के मामले में हरियाणा का सिस्टम सबसे बेहतरीन सिस्टम है। 27 अप्रैल तक करीब 60 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। जगह बनते ही किसान का एक एक दाना खरीद लिया जाएगा। किसान का हित सरकार के लिए सर्वोपरि है।’’ सरकार और उसके मंत्री अपनी ही पीठ थपथपाने में लगे हैं। दौरे पर दौरे हो रहे हैं। सहकारिता मंत्री सतपाल सांगवान तोशाम अनाज मंडी जा रहे हैं तो उन्हें ” शिकायतें सुनने को मिल रही हैं। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री करनाल की अनाज मंडी में लिफ्टिंग में तेजी लाने का आदेश दे रहे हैं। कई और मंत्री दौरे पर दौरा कर रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफर है।

                       मंडियों में खुले में पड़े अनाज के उठान के लिए कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं दिखाई पड़ता। कुछ जगहों पर अनाज रखने के लिए शेड तो हैं लेकिन इनकी संख्या काफी कम है। जिसकी वजह से खरीद का ज्यादातर हिस्सा खुले में ही पड़ा है। बारिश से बचाने के लिए गेहूं के बोरों पर तिरपाल डाल दी जाती है। लेकिन हर जगह ऐसा कर पाना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा है। सरकार को किसानों की चिंता है। एक एक दाना खरीदे जाने की बात बार-बार कहती है। लेकिन खरीदे गये गेहूं की फिक्र जरा भी नहीं दिखाई देती। और इंडियन ने”ानल लोकदल इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती। पार्टी के प्रधान महासचिव अजय चैटाला कहते हैं, ‘‘मंडियों में अव्यवस्था फैली है। जिसकी वजह से किसानों का गेहूं भीग रहा है। इस (हुड्डा) सरकार को किसानों के हितों का जरा भी ख्याल नहीं है। सरकार किसानों को बर्बाद करने पर तुली हुई है।’’
हालांकि खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं- ‘‘हरियाणा सरकार का मार्केटिंग सिस्टम सबसे बढि़या है इसलिए यूपी का किसान भी अपना गेहूं यहां लाना चाहता है। लेकिन हमारा कर्तव्य है कि यहां के किसान के गेहूं को पहले खरीदें।’’ दरअसल उत्तर प्रदेश के किसान दाम में अंतर की वजह से अपना गेहूं यहां लाते हैं। यूपी में जहां गेहूं का समर्थन मूल्य 1140 रुपये क्विंटल है, वहीं हरियाणा में 1285 रुपये। और जब हरियाणा की सीमा कई जगहों पर ( सोनीपत, पानीपत, करनाल) यूपी से लगती है तो किसान इसका फायदा क्यों नहीं उठाना चाहेगा। हालांकि हरियाणा सरकार ने फिलहाल यूपी से आने वाले गेहूं की खरीद पर रोक लगा रखी है।

अगर सरकार की मानें तो अब तक 60 लाख टन अनाज खरीदा जा चुका है। लेकिन स्टोरेज की व्यवस्था नहीं होने से खुले आसमान के नीचे पड़ा है। मानों बारिश का ही इंतजार कर रहा हो। एक तरफ तो देश की आधी से ज्यादा आबादी को दो जून की रोटी नसीब नहीं है। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा में स्टोरेज की कमी की वजह से लाखों टन गेहूं सड़ने के लिए तैयार है।



नोट -
देश के कुल गेहूं उत्पादन में हरियाणा का योगदान 13;3 प्रतिशत है। जबकि गेहूं उत्पादन भूमि का सिर्फ 8;9 फीसदी हिस्सा ही प्रदेश के पास है।


ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है