शनिवार, 28 जुलाई 2012

मारूति, मजदूर और मौत


            किसी भी उद्योग की सबसे बड़ी पूंजी उसके कर्मचारी होते हैं। कंपनी का सबसे अहम हिस्सा। जिनकी मेहनत के बूते उद्योगपति या कंपनी के मालिक को फायदा होता है। ऐसे में अगर उद्योग या कंपनी से जुड़े कर्मचारियों के हितों की अनदेखी की जाएगी तो क्या परिणाम हो सकते हैं ? कयास मत लगाइए। 16 जुलाई को मानेसर (गुड़गांव) में मारूति सुजूकी के प्लांट में हुई एच आर महाप्रबंधक की हत्या इसका ताजा तरीन उदाहरण है। यहां ये साफ कर दें कि हम किसी तरह की हिंसा को सही नहीं ठहरा रहे और ना ही किसी की हत्या को। लेकिन इस घटना से जो संकेत मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि गरीब मजदूर कर्मचारियों में नौकरी को लेकर कितनी उद्विग्नता है। महंगाई के इस दौर में रोजी रोटी चलाना उनकी प्राथमिकता है। बहरहाल।
दरअसल, ये पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब प्लांट में एक सुपरवाइजर ने श्रमिक जिया लाल को थप्पड़ जड़ दिया। मामला तू-तू, मैं-मैं से शुरू हुआ था जो एचआर महाप्रबंधक की मौत के बाद ही शांत हुआ। प्रबंधन ने आनन-फानन में श्रमिक जिया लाल को निलंबित कर दिया जिसके बाद दूसरे कर्मचारी एकजुट हो गये। और मामले ने तूल पकड़ लिया। आरोप हैं कि सुपरवाइजर ने जातिसूचक गालियां भी दी थीं। 

मारूति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने बताया कि ‘मारूति की स्थापना से लेकर अभी तक कई आंदोलन हुए जिसका खट्टा मीठा अनुभव रहा है। इसमें उत्पादन भी ठप रहा और वर्करों ने हड़ताल भी की। लेकिन जो मानेसर प्लांट में हुआ है ऐसा कभी नहीं हुआ। अच्छे भले चल रहे उद्योग में औद्योगिक विवाद के बिना ही गुंडा तत्वों ने आग लगा दी। अधिकारियों पर जानलेवा हमला किया गया। जिसमें करीब सौ अधिकारी घायल हुए। एच आर के महाप्रबंधक अश्विनी कुमार देव की जान ले ली गई।’ अब भार्गव के इस बयान को समझने की जरूरत है। वे सीधे तौर पर कहीं भी मजदूर कर्मचारियों पर आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि सीधे तौर पर गुंडा तत्वों का हाथ होने की बात कह रहे हैं। सवाल उठता है कि हंगामें में जितने लोग शामिल थे, क्या सभी गुंडे थे? क्या सभी आउट साइडर थे? क्या सैकड़ों की भीड़ में कंपनी के प्रदर्शनकारी कर्मचारी शामिल नहीं थे? जाहिर है, थे। भार्गव का बयान सिर्फ लोगों को बरगलाने के लिए है। 

मारूति सुजूकी के मानेसर प्लांट में जानलेवा हिंसक प्रदर्शन के पीछे क्या कारण थे, ये भी समझने की जरूरत है। इसे कंपनी के सबसे निचले स्तर के कर्मचारी और सबसे ऊपर के कर्मचारी के बीच मेहनताने के फर्क से उपजे अवसाद से भी जोड़कर देखा जा सकता है। इनके रहन-सहन, खान-पान में जमीन-आसमान का अंतर है। मानेसर में करीब 50 हजार मजदूर रहते हैं, जिनकी उम्र 20 से 25 साल के बीच है। मारूति और इसके लिए कलपुर्जे बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम करने वाले हजारों मजदूर अलियार, ढाणा, नाहरपुर, कासन और खौ जैसे कई गांवों में भी बड़ी तादाद में रहते हैं। लेकिन इनके रहने के कमरों के बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। आठ बाइ आठ फीट के कमरे तीन से चार मजदूरों को किराए पर दिए जाते हैं, जिनमें ये लोग किसी तरह सिर्फ रात गुजारते हैं। इतना ही नहीं, मजदूरों को मिलने वाली सुविधाओं का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 300 लोगों पर सिर्फ 2 शौचालय हैं। खासी मशक्कत के बाद जब ये लोग फैक्ट्री पहुंचते हैं तो उनींदे होते हैं। परेशान भी। ऐसे में जब कंपनी का सुपरवाइजर किसी को जरा भी जोर से बोलता है तो ये फट पड़ते हैं। जबकि इन्हीं फैक्ट्रियों और कंपनियों के आला अधिकारी गुड़गांव और दिल्ली में तमाम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहे होते हैं। ये जो सामाजिक अंतर है, आर्थिक वर्ग भेद है, इसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यहां आपको याद दिला दें कि पिछले साल भी इस प्लांट में तीन बार हड़ताल हो चुकी है। 

मानेसर प्लांट में हुए हादसे के बाद कयास लगने लगे हैं कि मारूति सुजूकी प्लांट को गुजरात की तरफ शिफ्ट करने के बारे में भी सोच सकती है। हालांकि अभी कंपनी के चेयरमैन आर सी भार्गव कह चुके हैं कि ‘ये सब अफवाह है। मारूति मानेसर में ही रहेगी। हम अपना काम करेंगे लेकिन इसमें वक्त लग सकता है।’ हालांकि जानकारों का मानना है कि आनन फानन में शिफ्टिंग का फैसला नहीं होगा। कंपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से ऐसा करने की कोशिश करेगी। इन अफवाहों ने प्रदेश सरकार के कान खड़े कर दिये हैं। केंद्र सरकार भी मामले को संजीदगी से ले रही है। कॉर्पोरेट अफेयर मिनिस्टर वीरप्पा मोइली ने भी कह दिया है कि ‘मामले को सुलझाने के रास्ते निकालने के लिए वे शेयरधारकों के साथ साथ दूसरे मंत्रालयों से भी चर्चा करेंगे।’ हालांकि इसके लिए किस तरह के कदम उठाए जाएंगे, इस बारे में उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया है। वहीं रोहतक से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने इस घटना को दुखदायी बताते हुए कहा-‘मारुति उद्योग को हरियाणा पर पूरा विश्वास है। मारूति सुजूकी ने रोहतक में भी काफी निवेश किया है।’ विपक्ष की साजिश के आरोप पर उन्होंने कहा कि, ‘मामले की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।’ दरअसल इस मामले पर विपक्ष ने भी प्रदेश की कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया। इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने इस हिंसक घटना के लिए सीधे तौर पर हुड्डा सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा-‘उनकी सरकार के समय में ही मानेसर में डीजल कार बनाने वाले प्लांट की नींव रखी गई थी। लेकिन हुड्डा सरकार प्रदेश की साख बढ़ाने वाली कंपनियों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है। जिसकी वजह से भारी संख्या में उद्योग और कंपनियां यहां से पलायन कर रही हैं।’

 ये मामला राजनीतिक भी होता जा रहा है। ऐसे में कंपनी ने मानेसर प्लांट में अनिश्चितकाल के लिए तालाबंदी कर दी है। प्रबंधन का कहना है कि ‘प्लांट और कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी के बाद प्लांट में काम शुरू होगा।’ हर कंपनी में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच विवाद होते रहते हैं। लेकिन मारूति सुजूकी में हुई घटना ने एक बार मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के माथे पर भी बल ला दिया है। 

         कंपनी के आसपास के गांवों के सरपंचों ने आरोप लगाया है कि बीते कुछ वर्षों में राजनीतिक सिफारिश पर रोहतक, जींद, सोनीपत, झज्जर के लोगों को मारुति सुजूकी में काफी नौकरियां दिलाई गई हैं। राजनीतिक संरक्षण वाले ये लड़के काम कम और प्रबंधन पर दादागीरी ज्यादा करते हैं। यही वजह है कि जींद निवासी जिया लाल ने पहले तो सुपरवाइजर के साथ विवाद किया और बाद में उसके समर्थन में लोगों ने माहौल को हिंसक बना दिया। ये लोग कुछ प्रतियोगी कंपनियों पर भी इस राजनीतिक साजिश में शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं क्योंकि बीते दो साल में मारूति में हुई हड़ताल की वजह से इन्हें काफी फायदा मिला है। 

           आरोप और प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन हकीकत यही है कि इसका असर किसी एक कंपनी या इलाके तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि व्यापक होगा। मारूति ने 19 जुलाई को जारी एक बयान में कहा था कि ‘कंपनियों के प्रति लोगों में बढ़ रही नकारात्मकता का देश में निवेश और रोजगार के अवसरों पर विपरीत असर पड़ेगा।’ लेकिन क्या इसे मजदूरों के हित से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए ? देश के हजारों-लाखों मजदूरों की अनदेखी करके कोई भी कंपनी या उद्योग सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता।


ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है.

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