शनिवार, 14 जुलाई 2012

लक्ष्य चंडीगढ़: वाया परमाणु संयंत्र


                चढ़ता पारा। बढ़ती गर्मी। मस्त नेता। त्रस्त जनता। गर्माती राजनीति। मुद्दा है फतेहाबाद के गोरखपुर में बनने वाला परमाणु संयंत्र। इससे बननी है बिजली, जो जनता को देगी राहत। इस संयंत्र को अमली जामा पहनाने की राज्य सरकार की योजना फिलहाल खटाई में पड़ती दिख रही है। किसानों ने आंदोलन की धमकी दी है। सर्वेक्षण करने पहुंची एक टीम की जमकर पिटाई भी कर दी। पहले तो किसान अधिग्रहित जमीन का मुआवजा बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे और अब रेडिएशन फैलने की बात कह रहे हैं। राजनीतिक दल भी किसानों के बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। इंडियन नेशनल लोकदल और हरियाणा जनहित कांग्रेस ने इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इनेलो तो मुखर होकर सामने आई है। पार्टी का मानना है कि दुनिया भर में नकारा घोषित किए जा चुके और आम लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन चुके परमाणु संयंत्रों को मुख्यमंत्री हुड्डा जानबूझ कर राजनीतिक द्वेष के चलते फतेहाबाद में लगाना चाहते हैं। पार्टी के प्रधान महासचिव और डबवाली से विधायक अजय सिंह चौटाला ने गोरखपुर में लगने वाले परमाणु संयंत्र को पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि, ‘इनेलो परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे किसानों का डटकर सहयोग करेगी और किसी भी कीमत पर गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु संयंत्र नहीं लगने दिया जाएगा।’ अजय चौटाला ने कहा, ‘जापान जैसे विकसित देश में परमाणु संयंत्र घातक साबित हुए हैं और गोरखपुर में घनी आबादी के साथ ऐसा परमाणु संयंत्र लगाना पूरी मानवता को आग में झोंकने के बराबर है।’ 

              हरियाणा जनहित कांग्रेस के सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई भी इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ आवाज बुलंद कर चुके हैं। कुल मिलाकर मामला राजनीति का है। इस संयंत्र के पूरा होने पर प्रदेश में 2800 मेगावाट बिजली का उत्पादन बढ़ेगा। इसमें से 1400 मेगावाट बिजली प्रदेशवासियों को मिलेगी। विपक्ष के तमाम आरोपों को कांग्रेस सरकार और उसके नेता आए दिन खारिज करते दिखते हैं। हर कांग्रेसी इस संयंत्र के बनने के बाद विश्व के नक्शे पर हरियाणा की अलग पहचान खोजता दिख जाता है। विकास की बयार की बात भी कही जाती है। पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस विधायक प्रो. संपत सिंह ने इस संयंत्र का विरोध करने वालों को प्रदेश का विरोधी करार दिया है। हाल ही में सोनीपत में उन्होंने कहा कि, ‘देवीलाल और भजनलाल ने भी मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्रियों को परमाणु संयंत्र लगाने के लिए खत लिखे थे।’ ये सच भी है। इन दोनों ने नेताओं ने मुख्यमंत्री रहते हुए बिजली की समस्या से निजात पाने के लिए परमाणु संयंत्र लगवाने की कोशिश की थी, लेकिन हरियाणा के दोनों ‘लाल’ अपनी कोशिश में नाकाम रहे। अब देवीलाल और भजनलाल के वारिस ही उनकी मांग को पलीता लगाने की तैयारी में हैं। मामला वोट बैंक का है। मामला नया वोटर बनाने का है। मामला कुर्सी पर कब्जा करने का है। जिसका रास्ता किसानों की दुखती रग से होकर ही जाता है। संपत सिंह ने कहा कि,‘बिजली की कमी को दूर करने के लिए सरकार तल्लीनता से कार्यरत है और उन्हें उम्मीद है कि साल के अंत तक बिजली की किल्लत से निजात मिल सकेगी।’ परमाणु संयंत्र को लेकर विपक्ष राजनीतिक रोटियां सेंकने की कवायद में है तो सरकार किसी भी तरह से इस मामले को हाथ से जाने नहीं देना चाहती। 

दरअसल, हरियाणा में बिजली की भारी किल्लत है। और पॉवर कट यहां की जनता की चुनिंदा दिक्कतों में से एक है। पूरे प्रदेश में ऐसा कोई भी शहर या गांव नहीं है जहां बिजली किल्लत की समस्या ना हो। हालांकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बिजली की समस्या को विरासत में मिली समस्या बताते रहते हैं, लेकिन पिछले साढ़े सात साल में उन्होंने इस समस्या से निजात दिलाने के लिए क्या किया है, ये समझ से परे है। प्रदेश में यमुनानगर, पानीपत, खेदड़ (बरवाला) और झाड़ली (झज्जर) सहित कई और भी पॉवर प्लांट हैं। लेकिन कोई भी प्लांट अपनी क्षमता के मुताबिक बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहा है। किसी प्लांट की एक यूनिट खराब है तो किसी की दो। पिछले दिनों तो खेदड़ प्लांट पूरी तरह से ठप हो गया था। बावजूद इसके प्रो. संपत सिंह सफाई देते दिखे। उनकी मानें तो 31 जुलाई तक ज्यादातर यूनिटें काम करना शुरू कर देंगी। हालत ऐसी है कि बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के शहर तक में बिजली आपूर्ति सही तरीके से नहीं हो पा रही है। मामला भटक गया। बात परमाणु संयंत्र की हो रही थी। विपक्ष के नेताओं के अपने तर्क हैं तो सत्ता पक्ष की अपनी ढपली और अपना राग। 
  परमाणु संयंत्र को लेकर वैज्ञानिक भी एक राय नहीं हैं। दिल्ली के प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. प्रवीर पुरकायस्त का कहना है कि,‘ जनहित को देखते हुए किसी भी स्थान पर परमाणु संयंत्र लगाया जाना सही नहीं है, क्योंकि यह किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है। बावजूद इसके भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो बिजली उत्पादन के अच्छे विकल्प तलाशने की बजाए, परमाणु संयंत्र का राग अलाप रहा है।’ डॉ. प्रवीर गोरखपुर मंे लगने वाले परमाणु संयंत्र के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि, ‘कोयले और परमाणु के प्लांट में काफी अंतर होता है। यदि इसे नियंत्रण करने में हल्की सी भी चूक  हो जाए तो पूरी मानव जाति के लिए खतरा साबित हो सकता है। इन संयंत्रों से निकलने वाली विकिरणों से कम से कम 40 किलोमीटर का क्षेत्र भयंकर गर्मी और बीमारियों की चपेट में आ जाता है। वहीं दूसरी तरफ न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डी के गोयल ने देश के सभी परमाणु बिजली संयंत्रों को पूरी तरह से सुरक्षित बताया है। उन्होंने कहा कि इसके आस पास रहने वालों के जीवन पर किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। रेडिएशन के जवाब में उन्होंने कहा कि, ‘मानव शरीर के साथ साथ दूध, चावल, मिट्टी, दाल, फल सहित सभी वस्तुएं रेडिएशन छोड़ती हैं।’ उन्होंने कहा -‘गोरखपुर में लगने वाले परमाणु बिजली संयंत्र के बारे में लोगों में अनेक भ्रांतियां हैं। यह संयंत्र अति आधुनिक तकनीक से बनाया जाएगा, जो कि पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है। इलाके की भौगोलिक और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रख कर संयंत्र का डिजाइन तैयार किया गया है। इस पर तेज भूकंप का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’ 

  फतेहाबाद के गोरखपुर में लगने वाला परमाणु बिजली संयंत्र शुरू होने से पहले ही सुर्खियां बटोर चुका है। संयंत्र के लिए जमीन देने वाले किसानों का लालच भी बढ़ रहा है। वे आंदोलन की धमकी दे रहे हैं। इनेलो उनका साथ दे रही है। बयानबाजी का दौर जारी है। अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी है। बिजली मिले ना मिले, पानी मिले ना मिले, राजनीतिक दलों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस वोट मिलने चाहिए। चाहे जो भी करना पड़े। 
  वैसे न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डी के गोयल परमाणु बिजली संयंत्र को अच्छा स्रोत मानते हैं। उनके मुताबिक हवा और सौर ऊर्जा ज्यादा महंगे साबित होंगे। लेकिन जनता ये जानना चाहती है कि किसी संकट की घड़ी में इस संयंत्र पर काबू कैसे पाया जाएगा। समुद्र के किनारे होने की वजह से जापान ने तो अपने संयंत्रों को ठंडा कर दिया था, लेकिन हरियाणा में...। जहां पीने का पानी भी अब मयस्सर नहीं है, भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है। संयंत्र को ठंडा करने के लिए पानी आएगा तो कहां से ? लोगों का कहना है-विनाश की पटकथा लिखी जा रही है। और राजनीतिक दल अभिनय कर रहे हैं। तमाशा जारी है। देखते रहिए। 


ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है।

कोई टिप्पणी नहीं: