हरियाणा की राजनीति नई करवट ले रही है। कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले चंद्रमोहन ने पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने ‘घर वापसी’ की है। चंद्रमोहन ने कांग्रेस छोड़कर भाई कुलदीप बिश्नोई की पार्टी (हरियाणा जनहित कांग्रेस ) ज्वाइन कर ली है। पिता भजनलाल की पहली पुण्यतिथि पर मंडी आदमपुर में उन्होंने इस बात की घोषणा की। बड़े भाई चंद्रमोहन ने जैसे ही इस बात का सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया, छोटे भाई कुलदीप ने तुरंत बड़े भाई का जोर शोर से स्वागत किया। मंच पर ही चरण स्पर्श करके आशीर्वाद भी लिया। उन्होंने कहा कि, ‘अब संघर्ष में पिता तुल्य भाई का साथ मिल गया है। कोई भी बाधा अब नहीं रोक पाएगी।’ समर्थक पहले से यह प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह से दोनों भाई एक हो जाएं। इस ‘भरत मिलाप’ के पीछे पूर्व सांसद धर्मपाल मलिक का भी योगदान माना जा रहा है।

लोगों को एक बार फिर अनुराधा बाली और चांद मोहम्मद का प्रेम प्रसंग याद आ रहा है। 2008 के आखिरी दिनों में चंद्रमोहन, अनुराधा बाली ऊर्फ फिजा की वजह से खासी सुर्खियों में थे। लोग उन्हें प्रदे”ा के उपमुख्यमंत्री होने की वजह से कम और प्रेमी के तौर पर ज्यादा जानते थे। चूंकि चंद्रमोहन “ाादी”ाुदा थे, ऐसे में वे बाली के साथ विवाह नहीं कर सकते थे। ऐसे में साल 2008 के आखिरी दिनों में चंद्रमोहन और अनुराधा ने धर्म परिवर्तन किया और क्रम”ाः चांद मोहम्मद और फिजा बनकर निकाह कबूल कर लिया। इस निकाह के बदले चंद्रमोहन ऊर्फ चांद मोहम्मद को राजनीतिक और पारिवारिक तौर पर भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। अनुराधा बाली ऊर्फ फिजा तब हरियाणा सरकार की सहायक अधिवक्ता थीं। सरकार ने बाली को भी चलता कर दिया। स्थितियां प्रतिकूल थीं। तब भी चंद्रमोहन ने फिजा का साथ देने की ही बात कही थी। ‘राजनीति से ज्यादा मेरे लिए मेरा प्यार जरूरी है। राजनीतिक ओहदे तो आते-जाते रहते हैं। लेकिन किसी से किया गया वायदा निभाना महत्वपूर्ण है।’
साल 2009 चुनावी साल था। ऐसे में पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। चंद्रमोहन से फौरन उपमुख्यमंत्री का पद छीन लिया गया। हालांकि वजह दूसरी बताई गई। मुख्यालय और कार्यालय से लंबी गैरहाजिरी को हटाने का कारण बताया गया था। हालांकि चंद्रमोहन को पार्टी से नहीं निकाला गया था। लेकिन विधानसभा चुनाव के समय चंद्रमोहन को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा। पंचकूला सीट से चार बार विधायक बनने वाले चंद्रमोहन का टिकट काट दिया गया था। 2005 में हरियाणा में कांग्रेस की भारी जीत के बाद पिता भजनलाल को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से कुलदीप बि”नोई नाराज चल रहे थे। केंद्र के नेताओं पर लगातार हमले कर रहे थे। ऐसे में पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। तब भजनलाल ने 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई और 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान इनेलो के संपत सिंह और कांग्रेस के जयप्रकाश को हरा कर संसद पहुंचे। इसके बावजूद चंद्रमोहन ने कांग्रेस में आस्था दिखाते हुए पार्टी में बने रहने की बात कही थी। कुलदीप के पार्टी बनाने पर उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि, ‘मेरे पिता भजनलाल और भाई कुलदीप बिश्नोई ने नई राजनीतिक पार्टी बना ली है। मेरा उनसे राजनीतिक तौर पर कोई संबंध नहीं है। अगर मेरे क्षेत्र की जनता चाहेगी तो मैं फिर चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा भी।’ लेकिन अब जबकि विधानसभा का आधा समय बीत चुका है। चंद्रमोहन को आशंका है कि अगली बार भी उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं, इसलिए वे एक आधार चाहते थे। ऐसे में घर की पार्टी से अच्छी कौन सी पार्टी हो सकती थी?
2009 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई सहित हरियाणा जनहित कांग्रेस के 6 सदस्यों ने जीत दर्ज की थी। लेकिन इनमें से 5 कांग्रेस सरकार बनने के बाद उसमें शामिल हो गये। दलबदल का मामला विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा के पास चल रहा है। पिता के निधन के बाद कुलदीप ने हिसार लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की थी। और उनकी खाली सीट पर पत्नी रेणुका बिश्नोई ने विजय पताका फहराई थी। यानी मौजूदा समय में हजका से सिर्फ विधायक और एक सांसद हैं। और दोनों पति पत्नी हैं।
फिजा और चांद मोहम्मद का प्रकरण भी ज्यादा लंबा नहीं चला। चार महीने तक सुर्खियों में रहने के बाद फिजा और चांद ने दूरी बना ली। दोनों के बीच दरार की खबरें भी आईं। और फिर ज्यादा भद्द पिटने के बाद चांद ने फिजा को तलाक दे दिया। तब वो बीमारी का इलाज करवाने के लिए लंदन में थे। और वहीं से फोन पर तलाक दे दिया था। चंद्रमोहन भी अपने परिवार में लौट आए हैं। विरोधी राजनीतिक परिवारों में हलचल है। हुड्डा परिवार, चैटाला परिवार और चैधरी बंसीलाल सहित प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति करने वाले तमाम परिवार इस घटनाक्रम पर नजरें बनाए हुए है। क्योंकि कुलदीप बि”नोई के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, चंद्रमोहन भी खाली हाथ हैं। लेकिन हिसार और पंचकूला में दोनों भाइयों का जनाधार विरोधियों के लिए चिंता का सबब है। क्योंकि दोनों भाई मिलकर कुछ भी हासिल करेंगे तो नुकसान इन्हीं कुछ परिवारों को हो सकता है।
ये लेख इतवार पत्रिका में छप चुका है.