रेल मंत्रालय नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास बनाने में जुटा है। स्टेशन की इमारत का कायाकल्प हो चुका है। और बहुत ही तेजी से बाकी बचा काम पूरा किया जा रहा है। पुरानी इमारत के खंडहर ही बचे हैं, जहां काम पूरी तरह से बंद हैं। कुछ दिन में वे खंडहर भी गायब हो जाएंगे। और आप जब अगली बार दिल्ली आएंगे तो नई दिल्ली स्टेशन आपको नया-नया अनजाना सा दिखेगा। निर्माणाधीन होने के बावजूद काफी खूबसूरत लग रही है इमारत। कॉमनवेल्थ गेम्स और पश्चिमी दुनिया की बराबरी करने की होड़ के मद्देनजर स्टेशन तो वर्ल्ड क्लास बन रहा है लेकिन व्यवस्था वही पुरानी है आदम बाबा के जमाने की। अजमेरी गेट की तरफ नई टिकट खिड़कियां बन गई हैं। वहां काम भी चालू हो गया है। इनमें महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अलग खिड़की की व्यवस्था है, लेकिन वर्ल्ड क्लास व्यवस्था के तहत वो दोनों ही खिड़कियां बंद हैं।
आज सुबह अपनी पत्नी को ट्रेन में चढ़ाने स्टेशन गया था। आधी से ज्यादा टिकट खिड़की बंद थी। तो स्वाभाविक था कि बाकियों पर लंबी लंबी लाइनें ही मिलतीं। मैंने उसे महिला वाली खिड़की पर जाने को कहा। वो बंद थी, सबकी एक ही लाइन थी। महिलाएं, पुरूषों से कंधे से कंधा मिलाए खड़ी थीं, बुजुर्ग भी जवानों को टक्कर देते उसी लाइन में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। तो आखिर क्या मतलब इन खिड़कियों का। खिड़की बनाई तो कर्मचारी भी रखो ना। प्लेटफार्म पर जाने के लिए मुझे प्लेटफार्म टिकट भी चाहिए था। टिकट खिड़की के उपर एक बड़े से बोर्ड पर लिखा था, कि हर खिड़की पर प्लेटफार्म टिकट मिलते हैं, लेकिन कमोबेश हर खिड़की पर एक पर्चा चिपका था कि प्लेटफार्म टिकट खिड़की नंबर 13 पर मिलते हैं। तो उस बड़े से बोर्ड की जरूरत क्या है। ऊपर, तस्वीर में गौर से देखिए, दोनों लाइनों के बीच में आपको एक कागज नजर आएगा। वो इसी सूचना को प्रेषित करने के लिए लगाया गया है। ये 31 और 32 नंबर खिड़की के बीच में चिपका है। हालांकि ये पढ़ने लायक नहीं है।
ट्रेन में देरी होने पर यात्रियों को इंतजार करने के लिए बनने वाला प्रतीक्षालय खुद प्रतीक्षारत है। ऐसे में नई वर्ल्ड क्लास इमारत में चारों ओर फर्श पर लेटे-सोये यात्री दिखाई पड़ते हैं। और सफाईकर्मी भी अपना काम मुस्तैदी से अंजाम देते हैं। एक कर्मचारी सोये हुए लोगों पर पानी के छींटे मारता है। पीछे से दूसरा पानी की बाल्टी उड़ेलता जाता है। तीसरा झाडू लेकर आता है और चौथा वाइपर से पानी हटाता हुआ, फर्श साफ करता हुआ चला जाता है। फर्श साफ होने के बाद नींद से अनमनाया यात्री फिर से वहीं सो जाता है, जहां से उसे उठाया गया था।
इसमें नया कुछ भी नहीं है, ये सब आप भी जानते और समझते हैं। रोज इन चीजों का सामना करते हैं। जो बात मैं कहना चाह रहा हूं वो ये है कि रेल मंत्रालय देश की राजधानी के नई दिल्ली स्टेशन की इमारत को वर्ल्ड क्लास भले ही बना ले, लेकिन सरकारी नौकरी को आरामदायक मानने वाले कर्मचारियों और सरकारी संपत्ति को अपनी संपत्ति समझने वाले यात्रियों की सोच में बदलाव कैसे कर पाएगा? ये यक्ष प्रश्न है।