गांधी जयंती पर, जब पूरा देश छुट्टी मना रहा था, दिल्ली के झंडेवालान का एक सेमिनार हॉल गुलजार था। देश के तमाम नवोदय विद्यालयों से निकले छात्र इकट्ठा हुए थे। पहले बैच से लेकर इस साल पास आउट करने वाले भी। ज्यादातर सेटल्ड। कोई नौकरी कर रहा था, तो कोई व्यापार। मेडिकल, इंजीनियरिंग, वकालत, एकाउंटेंसी, पत्रकारिता हर क्षेत्र में नवोदय के छात्रों की पहुंच है, पकड़ है। तमाम पेशे से जुड़े नवोदय के इन पुराने छात्रों के एकजुट होने का एक मकसद था। नवोदय में पढ़ रहे या इस साल 12वीं पास आउट करने वाले छात्रों की कॅरियर काउंसलिंग। नेक विचार है। अगर ईमानदार भी हो ? जिस संस्था से आप बरसों जुड़े रहे हों, वहां तमाम सुविधाओं का फायदा उठाकर अपना कॅरियर बनाया हो, वहां के छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचना, सोच कर ही अच्छा लगता है।
नवोदय विद्यालयों में पढ़ाई के साथ-साथ रहने, खाने से लेकर खेल-कूद तक हर तरह की सुविधा दी जाती है। ऐसे में जब इस मीटिंग के अगले ही दिन तीन अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों को सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाने का आदेश दिया तो अनायास ही अपने नवोदय विद्यालय की याद ताजा हो गई। जहां हर तरह की सुविधा मिलती थी।
एक तरफ तो सरकारी स्कूलों में पीने का पानी, शौचालय, किचन शेड, बिजली, और चारदीवारी तक की व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों की कमी है। जो हैं, उनके पास पढ़ाने के अलावा और कई दूसरे काम हैं। ये दो तस्वीरें हैं सरकारी शिक्षा व्यवस्था की। एक तरफ सरकारी स्कूलों में जहां पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं है, वहीं दूसरी ओर नवोदय विद्यालय में नहाने और कपड़े धोने का साबून, तेल, टूथेपस्ट, ब्रश, कपड़े, तमाम चीजें मुफ्त मिलती थीं। यहां विद्यालय परिसर में ही शिक्षक भी रहते थे, जो 24 घंटे मदद के लिए तैयार रहते थे। मुझे जवाहर नवोदय विद्यालय, सुपौल, (बिहार) से निकले हुए 13 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी लगता है कि जैसे कल ही बात हो। काश! सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हो, और नवोदय जैसी सुविधाएं तमाम सरकारी स्कूलों में भी मिलें तो कितना अच्छा हो ?
1 टिप्पणी:
Aap ne sahi kaha bhaiya .. really dt was our golden period of our life....
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