मंगलवार, 22 मई 2012

फिर सड़ने के लिए तैयार है गेहूं

                  ‘मेहनत की कमाई है, बेकार कैसे जाएगी।’ ये बात आपने भी जरूर सुनी होगी। लेकिन हरियाणा पहुंचते ही ये बात गलत साबित होने लगती है। गेहूं की फसल के लिए प्रदेश के किसान जमकर मेहनत करते हैं। कड़ी धूप में पसीना बहाते हैं। और जब चमकदार कनक लेकर अनाज मंडियों में पहुंचते हैं तो उनकी मेहनत पर पानी फिरने लगता है। अनाज मंडियों की अव्यवस्था उनका गला घोंटने को तैयार दिखाई देती है। कभी समय पर खरीद शुरू नहीं होती। अगर खरीद हो जाए तो भुगतान नहीं होता। खरीद होने के बाद अनाज उठान की भी बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से बाद में अनाज लेकर मंडी पहुंचने वाले किसानों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। कई बार तो पूरा हफ्ता इंतजार में बीत जाता है। किसानों के लिए समस्या तब और विकट हो जाती है, जब मौसम उनके प्रतिकूल हो जाता है। प्रदेश की कई अनाज मंडियों में किसानों के बैठने के लिए शेड तक नहीं होती, ऐसे में अनाज रखने की व्यवस्था कैसी होगी ये बताने की जरूरत नहीं है। अगर दो चार बूंदे भी पड़ गयी तो किसानों के लिए लागत निकालना भी मुशि्कल हो जाता है।
    किसानों को अनाज उपजाने से लेकर मंडियों तक पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं होती। असल दिक्कत मंडी पहुंचने के बाद ही शुरू होती है। जब उन्हें वहां खरीद के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इस बार भी सरकार ने 1 अप्रैल से अनाज खरीद की घोषणा की थी। किसान अपनी उपज लेकर मंडियों में पहुंचने लगे थे लेकिन 7 दिनों तक सरकारी खरीद एजेंसियों का रवैया लापरवाही वाला ही रहा। हालांकि छह सरकारी एजेंसियां गेहूं खरीद रही हैं। इनमें खाद्य और आपूर्ति विभाग, हैफेड, कॅान्फेड, हरियाणा वेयर हाउसिंग काॅरपोरेशन, हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज काॅरपोरेशन और फूड काॅरपोरेशन अॅाफ इंडिया शामिल हैं। इसके बावजूद किसान बार बार गेहूं नहीं खरीदे जाने की बात कहते हैं। समस्या सिर्फ यही नहीं है। जिन किसानों के गेहूं खरीद लिये गये हैं, उन्हें भुगतान नहीं हुआ है। और जो किसान बाद में मंडी पहुंच रहे हैं, उनके सामने खरीद की ही समस्या है। क्योंकि पहले खरीदे गये अनाज का समय पर उठान नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह से मंडियों में अनाज रखने की जगह ही नहीं बची है। प्रदेश में तमाम तरह के गोदामों को मिला कर कुल 90 लाख टन अनाज रखने की क्षमता है। लेकिन यहां के गोदामों में पहले से ही 50 लाख टन अनाज पड़ा है। ऐसे में इस बार खरीद होने के बाद अनाज कहां रखा जाएगा ये सबसे अहम सवाल है। देश के प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य हरियाणा में इस बार गेहूं की बंपर पैदावार हुई है। इस बार यहां 70 लाख टन गेहूं पैदा होने की उम्मीद है। 

                        पिछले दो तीन वर्षौं से हम हरियाणा में ही कई जगहों पर अनाज की बर्बादी की कहानी देख और सुन चुके हैं। बारिश और बाढ़ की वजह से रानियां, पानीपत और करनाल सहित कई जगहों पर गेहूं सड़ गया था। इसके बावजूद सरकार नहीं चेती। खरीद के बाद भंडारण की व्यवस्था करने की बजाए जैसे तैसे खरीद बढ़ाने पर जोर दे दिया गया। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि, ‘‘सरकारी खरीद के मामले में हरियाणा का सिस्टम सबसे बेहतरीन सिस्टम है। 27 अप्रैल तक करीब 60 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। जगह बनते ही किसान का एक एक दाना खरीद लिया जाएगा। किसान का हित सरकार के लिए सर्वोपरि है।’’ सरकार और उसके मंत्री अपनी ही पीठ थपथपाने में लगे हैं। दौरे पर दौरे हो रहे हैं। सहकारिता मंत्री सतपाल सांगवान तोशाम अनाज मंडी जा रहे हैं तो उन्हें ” शिकायतें सुनने को मिल रही हैं। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री करनाल की अनाज मंडी में लिफ्टिंग में तेजी लाने का आदेश दे रहे हैं। कई और मंत्री दौरे पर दौरा कर रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफर है।

                       मंडियों में खुले में पड़े अनाज के उठान के लिए कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं दिखाई पड़ता। कुछ जगहों पर अनाज रखने के लिए शेड तो हैं लेकिन इनकी संख्या काफी कम है। जिसकी वजह से खरीद का ज्यादातर हिस्सा खुले में ही पड़ा है। बारिश से बचाने के लिए गेहूं के बोरों पर तिरपाल डाल दी जाती है। लेकिन हर जगह ऐसा कर पाना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा है। सरकार को किसानों की चिंता है। एक एक दाना खरीदे जाने की बात बार-बार कहती है। लेकिन खरीदे गये गेहूं की फिक्र जरा भी नहीं दिखाई देती। और इंडियन ने”ानल लोकदल इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती। पार्टी के प्रधान महासचिव अजय चैटाला कहते हैं, ‘‘मंडियों में अव्यवस्था फैली है। जिसकी वजह से किसानों का गेहूं भीग रहा है। इस (हुड्डा) सरकार को किसानों के हितों का जरा भी ख्याल नहीं है। सरकार किसानों को बर्बाद करने पर तुली हुई है।’’
हालांकि खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं- ‘‘हरियाणा सरकार का मार्केटिंग सिस्टम सबसे बढि़या है इसलिए यूपी का किसान भी अपना गेहूं यहां लाना चाहता है। लेकिन हमारा कर्तव्य है कि यहां के किसान के गेहूं को पहले खरीदें।’’ दरअसल उत्तर प्रदेश के किसान दाम में अंतर की वजह से अपना गेहूं यहां लाते हैं। यूपी में जहां गेहूं का समर्थन मूल्य 1140 रुपये क्विंटल है, वहीं हरियाणा में 1285 रुपये। और जब हरियाणा की सीमा कई जगहों पर ( सोनीपत, पानीपत, करनाल) यूपी से लगती है तो किसान इसका फायदा क्यों नहीं उठाना चाहेगा। हालांकि हरियाणा सरकार ने फिलहाल यूपी से आने वाले गेहूं की खरीद पर रोक लगा रखी है।

अगर सरकार की मानें तो अब तक 60 लाख टन अनाज खरीदा जा चुका है। लेकिन स्टोरेज की व्यवस्था नहीं होने से खुले आसमान के नीचे पड़ा है। मानों बारिश का ही इंतजार कर रहा हो। एक तरफ तो देश की आधी से ज्यादा आबादी को दो जून की रोटी नसीब नहीं है। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा में स्टोरेज की कमी की वजह से लाखों टन गेहूं सड़ने के लिए तैयार है।



नोट -
देश के कुल गेहूं उत्पादन में हरियाणा का योगदान 13;3 प्रतिशत है। जबकि गेहूं उत्पादन भूमि का सिर्फ 8;9 फीसदी हिस्सा ही प्रदेश के पास है।


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