सोमवार, 26 दिसंबर 2011

कुछ होने के इंतजार में....

नया साल आने वाला है। हर व्यक्ति बड़े उत्साह से 2012 का इंतजार कर रहा है। सबके अपने सपने हैं। नव वर्ष की पूर्व संध्या के लिए अपनी-अपनी योजनाएं हैं। किसी को शहर से बाहर जाकर नये साल का स्वागत करना है। तो किसी को अपने घर में। किसी को दोस्तों के साथ पार्टी करनी है तो कोई सड़कों पर घूमते हुए उस शाम को सेलिब्रेट करना चाहता है। जितने मन हैं, उतनी योजनाएं हैं। 31 दिसंबर की शाम वातावरण खुशनुमा होगा। मौसम में भी मस्ती होगी। युवा दिल अल्हड़ होने को मचल रहा होगा। बिना दुनिया की परवाह किये प्रेमी युगल गलबहियां डालने का इंतजार कर रहे होंगे। खुमारी सिर पर सवार होने को होगी। खुशी के मौके पर जाम छलकाने वाले दिन ढलने का इंतजार कर रहे होंगे। सब अपनी तैयारियों में जुटे हैं।
2011 का आखिरी सप्ताह बीत रहा है। लेकिन दिल्ली की शान कही जाने वाली मेट्रो न जाने क्यों महिलाओं के लिए असुरक्षित सी लगने लगी है। हालांकि दिल्ली मेट्रो रेल काॅरपोरेशन ने पहला डब्बा महिलाओं के लिए आरक्षित कर रखा है। इस डब्बे में पुरुषों के चढ़ने पर सख्त मनाही है। जबरन चढ़ने वालों पर कई बार जुर्माना भी लगाया गया है। एनसीआर में तो मनचलों को मुर्गा तक बनाया गया। लेकिन जैसे इतना सब ही काफी नहीं है। रात नौ बजे के बाद इस डब्बे में मनचले, खासतौर पर शोहदे किस्म के लोग देखे जा सकते हैं। जिनसे डर कर महिलाओं को जैसे खुद में ही सिमट कर बैठना पड़ता है। इनमें से कुछ तो नशा करके मेट्रो में सवार होते हैं। अपने आराम के लिए दूसरे की बहन-बेटियों की परेशानी इनके लिए कोई मायने नहीं रखती। इसलिए ये महिला डब्बे का रूख कर लेते हैं। लेकिन इनके मुहं से आती शराब की गंध और इनकी गंदी नजरें काफी कुछ कह रही होती हैं। कई बार सीआरपीएफ के जवान राजीव चैक या कश्मीरी गेट पर इन्हें महिलाओं के लिए आरक्षित डब्बे से बाहर निकालते भी हैं, लेकिन स्टेशन से ट्रेन के चलते ही ये लोग फिर उसी डब्बे की ओर बढ़ जाते हैं।
पता नहीं क्यों, डीएमआरसी ने मेट्रो ट्रेन में सुरक्षा बलों को रखना बंद कर दिया है। काॅमनवेल्थ खेलों के समय तो पूर्वोत्तर राज्यों से महिला कमांडोज को विशेष रूप से बुलाया गया था। क्या वो अभियान सिर्फ विदेशी मेहमानों को दिखाने के लिए था? या सिर्फ विदेशी महिला मेहमानों की सुरक्षा के लिए था? अपने घर, समाज, राज्य या देश की महिलाओं की सुरक्षा के लिए नहीं? कभी रात में मेट्रो का सफर करके देखिए, दिल्ली की महिलाएं, युवतियां कितनी जिल्लत झेलती हुई सफर करती हैं। ऐसा रोज होता है। लेकिन पता नहीं क्यों, किसी का ध्यान इस पर नहीं जाता। या जाता भी है तो ‘सब चलता है’ को ही परम सत्य मान कर आंखें मूंद ली जाती हैं। मेट्रो को आतंकवादियों का निशाना बनने से रोकने के लिए ही सीआरपीएफ की तैनाती की गयी थी, लेकिन मेट्रो में सफर करने वाली महिलाओं के मन में बैठे आतंक को खत्म करने के लिए दिल्ली सरकार या दिल्ली मेट्रो रेल काॅरपोरेशन क्या कदम उठाएगा? या इसके लिए उस दिन का इंतजार करेगा, जब किसी के साथ अनहोनी हो जाएगी? और दोष फिर देर रात सफर करने वाली महिलाओं और युवतियों पर मढ़ कर सरकार, प्रशासन और पुलिस अपने कर्तव्य का इतिश्री कर लेंगे।
नये साल की जितनी तैयारी युवा मन कर रहा है, उतनी ही तैयारी सुरक्षा एजेंसियों को भी करनी चाहिए। चाहे वो दिल्ली पुलिस हो या मेट्रो में तैनात सीआरपीएफ। या फिर यात्रियों को निर्देशित करने के लिए मेट्रो स्टेशनों पर तैनात निजी सुरक्षाकर्मी। कहीं ऐसा ना हो कि नये साल से पहले किसी ऐसे वाकये का सामना करना पड़े, जिसे थोड़ी सी मुस्तैदी से ही टाला जा सकता है। बाद में अफसोस जताने से अच्छा है कि पहले ही थोड़ी परेशानी उठा ली जाए। और नव वर्ष का स्वागत हंसी-खुशी किया जाए। थोड़ी सख्ती भी दिखानी पड़े तो इसे सहने के लिए युवा मन को तैयार रहना चाहिए।

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