डेनमार्क से खबर आई है कि पुरूलिया में हथियार गिराने के आरोपी किम डेवी का भारत प्रत्यर्पण नहीं हो सकता। इसलिए नहीं कि कोई कानूनी मजबूरी है, बल्कि इसलिए कि यहां की जेलों की हालत अच्छी नहीं है। यहां की जेलों में कैदियों के मानवाधिकार का ख्याल नहीं रखा जाता है। जी हां, ये कहना है डेनमार्क की हाईकोर्ट का, जिसने इसी आधार पर सीबीआई की याचिका खारिज कर दी। अब कोई कैसे समझाए, कि इस बात से भारतीय जेलों का कितना बड़ा अपमान हुआ है? जिन जेलों को भारतीय मंत्रियों, बड़े बड़े अधिकारियों को रखने का अवसर मिल चुका है, उनमें हथियार गिराने के आरोपी को भेजने से मना कर दिया। ये दुस्साहस नहीं तो और क्या है। गांवों-कस्बों में चले जाइए, हर दूसरे-तीसरे आदमी के पास हथियार मिल जाएगा। लाइसेंस हो या ना हो, ये अलग बात है। तो फिर किम डेवी की क्या औकात? ए. राजा, कनिमोझी, सुरेश कलमाड़ी, लालू प्रसाद यादव, पप्पू यादव, अमरमणि त्रिपाठी पता नहीं कितने राजनेता अपनी जेलों की शोभा बढ़ा चुके हैं। मनु शर्मा, विकास यादव जैसे युवा भी जेलों की शोभा बढ़ा रहे हैं। अबू सलेम और कसाब जैसे लोग भी अपनी जेलों में सुरक्षित हैं, तो फिर किम डेवी को क्या खतरा हो सकता है? जब हमने अपने लोगों के लिए जेल का मैन्यूअल बदल दिया तो इतना ख्याल तो किम डेवी का भी रखा ही जाएगा। जब साधारण दाल रोटी की जगह इडली, डोसा, सांबर और वड़ा बन सकता है तो किम के लिए नॉन वेज क्यों नहीं बनेगा? उसे दूसरी सुविधाएं क्यों नहीं मिलेंगी? इसलिए डरिए मत भेज दीजिए, क्योंकि दुनिया जानती है कि हम अपने मेहमानों की कितनी खातिरी करते हैं?
1 टिप्पणी:
good ! good ! aapka ye view Denmark ko kim devy ko bharat bhajne par majboor karne ke dish mai achha paryas hai.
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