गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

तोड़ो-तोड़ो, जोड़ना मुश्किल है

इन दिनों कुछ लोग जोड़ तोड़ में लगे हैं। ये लोग अपने अगुवा से तोड़ने की कला सीख चुके हैं। और अब अपने स्तर से प्रयास भी कर रहे हैं कि कैसे तोड़ा जाए? अगुवा ने रास्ता दिखा दिया है। और ये ‘कुछ लोग’ अब उस रास्ते पर चल पड़े हैं। ‘कुछ बड़े लोग’ उनके तोड़े जाने का समर्थन भी कर रहे हैं। वे इस बात को पूरी तरह भूल चुके हैं कि जब घर टूटता है तो परिवार के लोगों को मुश्किलों का ही सामना करना पड़ता है। संयुक्त की जगह एकल परिवार को ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। लेकिन वे लोग तोड़ने में लगे हैं, और जब तक तोड़ नहीं लेंगे, तब तक कोशिश करते रहेंगे। हालांकि जिसको कामयाबी मिली है, वो अभी भी पूरी तरह से खुश नहीं हैं। वो तोड़े जाने पर मुहर लगाए जाने का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि बिना मुहर के सब बेमानी है। हालांकि तोड़े जाने के आश्वासन भर से उन लोगों की नींद उड़ी हुई है, जो इस कतार में खड़े थे। अब उनकी आकांक्षाएं हिलोरें मारने लगी है। अब उन्होंने भी आमरण अनशन का रास्ता अख्तियार कर लिया है। तोड़ने के लिए आमरण अनशन का रास्ता अब बेहद आसान लगने लगा है। लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था, तब महात्मा गांधी ही आमरण अनशन करते थे, लेकिन अब तो कोई भी आमरण अनशन करने लगा है। कुछ लोगों ने अपनी बात मनवाने के लिए ये बढ़िया रास्ता चुन लिया है। ये दीगर बात है कि इक्का दुक्का लोगों को ही ये रास्ता रास आया है। एक महिला अपनी मांग मनवाने के लिए दस साल से आमरण अनशन पर है, लेकिन उसे नसों के जरिए दवा पानी और खुराक देकर जिंदा रखा जा रहा है। दरअसल वो तोड़ने की बात नहीं करती, वो राजनेता नहीं है, इसलिए उसकी सुनने वाला कोई नहीं। लेकिन तोड़ने वालों का अनशन कामयाब हो रहा है। देखादेखी और लोग भी आमरण अनशन पर उतारू हैं। कई बरसों से ये लोग सोए हुए थे। उन्हें लगता था तोड़ने की पाॅलिसी कामयाब नहीं होगी। इसलिए वे सुस्त थे। लेकिन तोड़ने के सिर्फ एक आश्वासन ने उनकी नींद उड़ा दी। अब वे तोड़ने के लिए जी जान लगाने की सोच रहे हैं। उन्होंने पहले भी तोड़ने की कोशिश की है, लेकिन कामयाब नहीं हुए। दरअसल, उन्होंने पहले जान ही नहीं लगाई थी, लेकिन जब एक जान लगाने के बाद तेलंगाना टूटने की आहट सुनी तो हिम्मत आ गई है, अब वे भी जान लगाने को तैयार हैं। सब तोड़ने में लगे हैं, जोड़ने की पहल करने वाला कोई नहीं है। जो था वो दशकों पहले चला गया। जोड़ने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए हर कोई तोड़ने में लगा है, अगर सफलता मिली तो पौ बारह है, नहीं मिली तो भी दिक्कत की बात नहीं है। राजनीति चल ही रही है। चलती रहेगी। लेकिन उन्हें उपर पहुंचना है और उपर। इसलिए सब मिलकर तोड़ने में जुट गए हैं। पहले के टूटे से कोई सीख नहीं ले रहा है। कुछ लोग तो टूटे को ही फिर से तोड़ने में लगे हैं। पता नहीं कितनी बार तोड़ेंगे और टूटते टूटते कुछ बचेगा भी या नहीं?

1 टिप्पणी:

prabhatojha ने कहा…

doosri tarah kee jameen aatmik hoti hai. uski talash bhi jaroo hai