कई बार कुछ बातें सिर्फ़ कहने के लिए कही जाती है,जिनका कोई मतलब नहीं होता। लेकिन कई बार कुछ बातों का नही होते हुए भी मतलब होता है।
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
सम्मानित होने का सपना
एक सम्मान समारोह चल रहा था। देश के कोने कोने से अपने अपने क्षेत्र के दिग्गज लोग पहुंचे थे। सबको सम्मानित किया जाना था। सभी शांति से बैठे थे। इस तरह के भारतीय कार्यक्रमों की परम्परानुसार ही अभी मुख्य अतिथि के आने में टाइम था। अगर कार्यक्रम समय पर शुरू हो जाए तो आयोजकों का तो पता नहीं, लेकिन मुख्य अतिथि की तौहीन जरूर हो जाती है। सो भला, सम्मानित होने की मंशा पाले दिग्गज शांति से इंतजार कर रहे थे कि कब मुख्य अतिथि आएंगे और कब वे उनसे सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस करेंगे। ‘कर्मण्ये वा धिकारस्ते, मा फलेशू कदाचन्’ के ठीक उलट ये सभी बिना कर्म किए ही फल की इच्छा रखते थे। क्योंकि अब कर्म करने वालों को कोई नहीं पूछता, हामी भरने वालों की, चमचागिरी करने वालों की चांदी ही चांदी दिखाई पड़ती है। इनके साथ ही साम, दाम, दंड, भेद के सहारे भी लोग पता नहीं क्या क्या हासिल करते देखे जाते हैं। सो सम्मान पाने वालों ऐसे लोग ज्यादा थे जिन्होंने अपने जीवन में कभी सम्मान पाने लायक काम नहीं किया था, लेकिन वो संस्था उन्हें सम्मानित करना चाहती थी, और वे भी खुद को सम्मानित होने के गौरव को महसूस करना चाहते थे, सो एक ही बुलावे पर बिना भाव खाए सम्मान समारोह में चले आए थे। सम्मानित होने वालों में करीब करीब सभी क्षेत्रों के लोग थे। कुछ सरकारी तो कुछ प्राइवेट नौकरीपेशा। सबको सम्मानित होना था सो इंतजार कर रहे थे। इनमें कुछ ऐसे सरकारी कर्मचारी भी थे, जो महंगाई से निपटने के मुद्दे पर हो रही सरकारी बैठक छोड़कर सम्मान पाने आए थे। अब सोचिए जरा, उन कर्मचारियों की बीवियों को अगर ये बात मालूम हो जाए तो उनका क्या होगा? आप कुछ भी इधर उधर का सोचें, उससे पहले जान लीजिए कि दो बातें होंगी। अगर पति ईमानदार होगा तो घरवाली की मार या डांट (जिसकी भी उसे आदत होगी) वो झेलनी होगी, लेकिन अगर बेइमान होगा तो कोई बात नहीं, क्योंकि तब उनके घर महंगाई का ज्यादा असर तो क्या बिलकुल भी असर नहीं होगा। क्योंकि सरकारी महकमों का भ्रष्टचार किसी से छुपा है भला? और अगर वो ईमानदार होगा, तब भी बच जाएगा, क्योंकि तब वो इतनी जरूरी मीटिंग छोड़कर सम्मान लेने जाएगा ही नहीं। खैर, अब ईमानदार हो या बेईमान, ये विषयांतर हो गया। बात सम्मान समारोह की हो रही थी, तो तय समय से करीब दो घंटे की देरी से मुख्य अतिथि आए तो, लेकिन दो मिनट में ही अपनी बात कहकर, नहीं नहीं, थोपकर निकल लिए। और जो दिग्गज उनसे सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस करने का ख्वाब देख रहे थे, वे ख्वाब ही देखते रह गए।
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2 टिप्पणियां:
का हो भ्इया..... सम्मानौ झटक लिए अउर गरियाये भी रहे हो...???
यही है आज कल के दस्तूर का.... पाठकन का बतावा ता कि आपओ पाए रहेओ...!!!
अच्छा व्यंग्य है.....
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