सम्मानित होना और सम्मानित करना अपने आप में सम्मान की बात है। लेकिन कभी-कभी ये सम्मान कम और अपमान ज्यादा लगने लगता है। नहीं, नहीं। सम्मानितों का अपमान नहीं! जो सम्मानित नहीं हुए उनका अपमान। देखिए, अभी गणतंत्र दिवस पर देश के 128 शूरवीरों को पद्म सम्मान देने की घोषणा की गयी। तो उनकी त्योंरियां चढ़ गयीं, जो इस विस्तृत लिस्ट में जगह नहीं बना सके। विस्तृत इसलिए क्योंकि सरकार हर साल 120 लोगों को ही पद्म सम्मान देती है। बहरहाल, ये उनका सिरदर्द है कि कितनों को सम्मान देती है। हम तो ये बता रहे थे कि उन लोगों की त्योरियां चढ़ गयी जिन्हें ये सम्मान नहीं मिले। ना जी ना! प्रियंका चोपड़ा का नाम तो हम बिलकुल भी नहीं ले रहे, जिनका नाम टैक्स चुराने की वजह से कट गया। वो तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ब्रांड अंबेसडर भी रहीं हैं। उनका नाम कैसे आ सकता है? उनका तो गलती से कट गया होगा!
आपने पद्म पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट देखी क्या? सभी बड़े आदमी हैं। धनकुबेर कहिए। कईयों की तो अपनी बड़ी से बड़ी फैक्ट्रियां हैं तो कुछ बड़ी कंपनियों की देखरेख करते हैं। और तो और, विदेश में बस चुके लोगों को भी सरकार ने सम्मानित करने का फैसला किया है। इसे छोड़िए, लिस्ट तो कहीं भी मिल जाएगी। हम तो ये कह रहे हैं कि दुख उनको हुआ है, जो पैसेवाले नहीं हैं। जो गरीब हैं। जो किसी अधिकारी को नहीं पहचानते थे, जो पैरवी नहीं करवा सकते थे। इसके बावजूद जो देश का भार अपने कंधे पर उठाए हुए हैं। जिनके भरोसे इन धनकुबेरों को रोटी खाने को मिलती है। दरअसल वे लोग सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए ही पैदा हुए हैं, या फिर आत्महत्या करने के लिए। लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है कि पद्म पाने वाले में कोई किसान है या नहीं? कोई आम आदमी है या नहीं? वैसे भी इन्हें पूछता कौन है? हम तो कहते हैं कि किसानों को भी अपनी उपज की कीमत बढ़ा देनी चाहिए। फिर भले बढ़ती हो महंगाई तो बढ़ा करे। थोड़े पैसे आएंगे तो अमीरों की लिस्ट में तो शामिल होंगे। फिर पद्म पुरस्कार मिलने का चांस बढ़ जाएगा। करनी चाहिए। थोड़ी-बहुत कोशिश तो जरूर करनी चाहिए। कैसा हो अगर गेंहू एक हजार रूपये किलो और चावल पंद्रह सौ रूपये प्रति किलो मिलने लगे। आपकी जेब भले कटेगी लेकिन गरीब किसानों की उम्मीद तो बढ़ जाएगी। जैसे प्याज ने कुछ अमीर लोगों को और अमीर बना दिया उसी तरह गेहूं और चावल भी किसानों की कुछ नैया पार लगा देंगे। गरीबों का भला हो जाएगा!
अपने देश में सम्मानित करने और सम्मानित होने की एक अजब परम्परा रही है। अजब इसलिए कि कौन सम्मानित होगा और कौन सम्मानित करेगा, इसे लेकर एक बहस हमेशा से चलती रही है। पिछले साल दुनिया जीत कर आए पहलवान सुशील के साथ फोटो खिंचवाने से पहले तब खेल मंत्री रहे एम.एस. गिल ने उनके गुरू महाबली सतपाल को किनारे करवा दिया। उनके साथ फोटो ही नहीं खिंचवाई! साइना के कोच पुलेला गोपीचंद को पहचान ही नहीं पाए। गौर से देखिए, तो सम्मान और अपमान के बीच बहुत ही बारीक लाइन बन जाती है अपने यहां।
साहित्य और कला के क्षेत्र में तो हालत और ज्यादा खराब है। कभी सम्मानित होने वाले नखरे दिखाने लगते हैं तो कभी किसी को सम्मानित होता देखकर दूसरों के पेट में मरोड़ उठने लगती है। दरअसल ये सम्मान शब्द ही विवादास्पद होता जा रहा है। कई बार लगता है कि सम्मान देकर कहीं अपमानित तो नहीं किया जा रहा? यकीन मानिए, कई बार ऐसा होता है। तमाम अकादमियां इस तरह के उदाहरण पेश कर चुकी हैं।
1 टिप्पणी:
अऱे का बताएं राजन भाई.. 26 की सुबह नींद जरा देर से खुली.. टाइम पर जग कर पहुंच गए होते तो आपका भाई भी पद्मश्री जयन्त चड्ढा कहलाते.. हा हा हा...
एक टिप्पणी भेजें