मंगलवार, 11 जनवरी 2011

आओ तो, भले पैसा मत देना

पैसा किसे प्यारा नहीं लगता? कोई है जो आती लक्ष्मी को ना कह सके? ऐसे इंसान विरले ही होते हैं। नहीं तो काहे का सादा जीवन और काहे का उच्च विचार? अपने यहां ही देखिए, आज कल यही हो रहा है। विदेश में रहने वाले भारतीयों को पहले तो बुलाया। उनका जमकर स्वागत किया, फिर कहते हैं हमें आपके पैसों से लगाव नहीं है। वो तो हम आपको जमीन से जोड़े रखना चाहते हैं, बस इसलिए। क्यों भइया? क्यों आपने गरीब प्रवासियों को न्यौता नहीं दिया? क्यों आप सिर्फ उद्योगपतियों को ही बुलाते हैं? बार बार कहते हैं पैसा नहीं लगाना तो मत लगाओ, लेकिन अपने बच्चों को घूमने के लिए तो भेजो। पर्यटन उद्योग को चमकाना है क्या? या देश में फैले भ्रष्टाचार की नयी तस्वीर उन्हें भी दिखानी है। जो संसद से सड़क तक पसरा पड़ा है। अगर नहीं, तो क्यों बुला रहे हो गुजरात, बिहार, हरियाणा और पंजाब। पूरा देश कहिए जनाब। सभी अपनी नयी तस्वीर दिखा रहे हैं। लेकिन याद भी दिलाते हैं कि पैसा ना लगाना हो मत लगाओ, लेकिन घूमने तो चलो। ये अजीब जबरदस्ती है। अगर कोई घूमना चाहेगा तो अपने आप आएगा, इतना गिड़गिड़ाना क्यों है भाई? जिनने देश छोड़ दिया, जबरदस्ती उन्हें जड़ों से जोड़े रखने की जिद है। अरे, जो यहां हैं उन्हें तो बचा लो।

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