बुधवार, 11 नवंबर 2009

पैरोल पर रिहाई चाहिए

मुझे भी पैरोल पर रिहाई चाहिए। उसे भी पैरोल पर रिहाई चाहिए। उसकी बाजू वाले कारागार में जो कैदी बंद है उसे भी पैरोल पर रिहाई चाहिए। सिर्फ तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को ही नहीं, देश भर की जेलों में बंद कैदियों में से ज्यादातर कैदियों के घर पर कोई ना कोई बीमार है। इसलिए इन सबको पैरोल पर रिहाई चाहिए। आखिर परिवार के बुजुर्गों की सेवा करना उनका कर्त्तव्य है और अब जेल में बंद होने के बाद हमें, उन्हें, सबको अपने कर्त्तव्य की याद आई है। इसलिए मुझे और उन सबको पैरोल पर रिहाई मिलनी चाहिए। जेल में रहने से मेरे और उनके और उनके भी पड़ोसियों के सामाजिक संबंध खत्म होते जा रहे हैं, सबको उन्हें बनाए रखना है। और जेल में रहकर ऐसा नहीं हो सकता इसलिए पैरोल पर बाहर आकर सभी अपने संबंधों को पुनर्जीवित करना चाहते हैं, ताकि भविष्य में इन संबंधों के सहारे ही कुछ ‘विशेष कार्य निष्पादित’ किया जा सके। मैंने, उसने और उसके भी पड़ोस वाले ने पैरोल पर रिहाई के लिए आवेदन किया हुआ है। लेकिन उस पर अब तक सुनवाई नहीं हुई है। सुना है मर्डर केस में आजीवन कैद काट रहे किसी ‘बड़े आदमी’ को पैरोल मिलने पर मीडिया का बाजार गर्म हुआ पड़ा है। मां की बीमारी की वजह से उसे पैरोल पर रिहा किया गया था। रिहाई के बाद वो दिल्ली के एक पब में मौज मस्ती करता हुआ पाया गया। वो ‘बड़ा आदमी’ था इसलिए मीडिया ने हाथोंहाथ लिया, सबने खूब चलाया। या कहें खूब बेचा। मामला संगीन है। इसलिए फिलहाल मेरे, उसके और उसके भी पड़ोस वाले कैदी की पैरोल पर रिहाई के आवेदन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। भला हो दिल्ली हाईकोर्ट का जिसने गरीबों के पैरोल पर रिहाई के आवेदन पर जल्द सुनवाई नहीं करने के लिए दिल्ली सरकार के प्रति नाराजगी जताई है, जिससे उम्मीद बनी हुई है कि मुझे, उसे और उसके पड़ोस वाले को पैरोल पर रिहाई मिल जाएगी। और मैंने, उसने या उसके पड़ोस वाले ने तो मर्डर भी नहीं किया है, कहीं इसलिए तो पैरोल मिलने में देर नहीं हो रही। अगर ऐसी ही बात है तो हमें एक बार तो जरूर ही पैरोल मिलनी चाहिए, जिससे हम सभी बाहर जाकर किसी का खून करें और फिर आजीवन कारावास की सजा पाएं, और उसके बाद जब जेल आएं और पैरोल पर रिहाई के लिए आवेदन करें तो दिल्ली की मुख्यमंत्री हम सब पर भी मेहरबान हों, और उपराज्यपाल के पास हम सबकी रिहाई की संस्तुति भेजें, ताकि हमें भी एक महीने की न सही, पंद्रह दिन की ही रिहाई मिल सके, जिससे हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें। सामाजिक संबंध बना सकें। और अगर थोड़ा समय बच जाए तो थोड़ी मौज मस्ती भी कर सकें। ये lekh २८/११/०९ के हिन्दुस्तान में छपा है।

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