परांठें वाले पत्रकार बंधु इन दिनों थोड़े परेशान हैं। उनके साथ दिक्कत ये भी है कि उनकी परेशानी उनके चेहरे पर दिखने लगती है। हालांकि उनके आॅफिस में कुछ ही लोग इसे भांप पाते हैं, लेकिन हकीकत यही है कि आजकल वे परेशान हैं। दरअसल उसकी एक वजह भी है। जिन चार पत्रकारों ने मिलकर परांठें की योजना पर अमल शुरू किया था, उनमें से एक पत्रकार भाई उस ग्रुप से पीछे हट गया है। वो शायद पत्रकारिता ही करना चाहता है। असल में उसे पत्रकारिता का कीड़ा काट गया है। वे स्थानीय खबरों में रूचि ही नहीं लेते, जितनी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरों में। तो परांठें वाले पत्रकार के लिए थोड़ी परेशानी जरूर हो गई है। हालांकि कुछ नये लोग जरूर शामिल होना चाहते हैं, लेकिन जब पुराने ही छिटक रहे हैं तो नये पर कैसे भरोसा किया जाए।
आजकल परांठें वाले पत्रकार बंधु की जेब फिर से गरम हो गई है। तो उन्हें भी गर्मी ज्यादा लगने लगी है। वे भी अक्सर कहीं न कहीं आराम करते हुए पाए जाते हैं। जब उनसे परांठें वाली योजना के बारे में पूछो तो अनमना सा उत्तर देते हैं- ‘वो तो करेंगे ही, बस टाईम का इंतजार है।’ अब ये तो वही जानते हैं या फिर भगवान जानता है कि उनका ये टाईम कब आने वाला है?
हालांकि कई बार उनकी बातों से संशय भी होता है कि वे परांठें लगाएंगे या नहीं। क्योंकि कई लोग उन्हें ये राय दे चुके हैं, संभल कर करना। नौकरी मत छोड़ना। नौकरी के अलावा कर सको, तो ठीक है। ऐसे में कैसे होगा। आखिर में परेशान होकर अपने इलाके में चले आए। कहा- यार, अपने पाठकों से ही एक सर्वे करवा लो, क्या करना चाहिए? ऐसे में मैंने तो अपने एक मित्र की पंसदीदा लाइनें उन्हें सुना दी। आप भी गौर फरमाइए-
हाथ भी नहीं मिलाएगा कोई/ जो गले लगोगे तपाक से
नये मिजाज का शहर है/ फासले से मिला करो
इसका जवाब जैसे वे घर से ही सोच कर आए थे। चार तथाकथित पत्रकारों में एक बंधु ये दो लाइनें अक्सर बोलते सुने जाते हैं, उन्होंने भी उनकी वही लाइनें मुझ पर चिपका दी-
तुम मेरे बारे में कोई राय मत कायम करना
मेरा वक्त बदल जाएगा, तुम्हारी राय बदल जाएगी।
तो सवाल आपके सामने है। जैसा मूड हो, उत्तर दीजिए। जैसी बन पड़े टिप्पणी कीजिए। आपके जवाब से ही कोई पत्रकार अकाल मौत मरने से बच जाएगा, और परांठें वाला बन जाएगा।
1 टिप्पणी:
kya baat hai. narayan narayan
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